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नेताओं के कोर्ट में हनुमान का मुकदमा

तस्वीर: गूगल आभार

कई दिनों से हनुमान बड़े ही चिंताग्रस्त दिखाई दे रहे थे। भोजन को लेकर उत्साहित रहने वाले हनुमान अनमने ढंग से थोड़ा बहुत खाते और मां अन्नपूर्णा का शुक्रिया अदा कर उठ जाते। भगवान राम ने पहले तो सोचा कि शायद हनुमान को सिया के सिंदूर की डिब्बी नहीं मिली होगी, जिससे खुदको रंगकर हनुमान को बहुत खुशी मिलती है। या फिर हनुमान को उनका प्रिय फल आम खाने का मन होगा और अभी आम का मौसम नहीं है, इसीलिए खाने में दिलचस्पी नहीं रही है। धीरे-धीरे हनुमान की चिंता उदासी में तब्दील होती गई। मां सीता सोच रहीं थी कि मेरे प्रिय हनुमान को तो अवध्य और नीरोग का आशीर्वाद प्राप्त है फिर यह कौन सा रोग लग गया मेरे मारुति को। आखिर में मां सीता से रहा न गया, तो उन्होंने प्रभु राम को हनुमान का सारा हाल बताया।

राम ने हनुमान को बुलाया और उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा ? हनुमान ने बड़े ही दुखी होकर कहा, “अब आपको क्या बताएं प्रभु, आप तो स्वयं भुक्तभोगी हैं। आपकी जन्मभूमि का दशकों से चला आ रहा विवाद अभी तक खत्म नहीं पाया है और अब नेताओं की अदालत में मेरा मुकदमा चालू हो गया है। उनके कोर्ट में मेरी “जाति” तय हो रही है। प्रभु कोई मुझे दलित बता रहा है, तो कोई ब्राह्मण। कोई जाट बता रहा है, तो कोई आदिवासी। इतना ही नहीं प्रभु मुझे मुसलमान बताने वाले नेता ने तो जैसे शोधपत्र लिखते हुए रेफरेंस देते हैं, वैसे ही अपनी बात साबित करने के लिए तर्क दिया है कि हनुमान मानमुसल हैं, इसीलिए तो मुसलमानों में जो नाम रखे जाते हैं उनके अंत में ‘मान’ आता है। उसने रहमान, रमजान और फरमान जैसे कई नामों का उदाहरण भी दिया है प्रभु।

अब आप ही बताओ प्रभु कि जो लोग मेरे साहस, बल, आत्मविश्वास और तेज से प्रेरित होकर मेरी पूजा करते थे। वही अब मुझे जातियों और धर्मों में बांटने में जुटे हैं। प्रभु हमारे समय में जाति प्रमाण-पत्र जैसी बला भी नहीं होती थी, अब ऐसे में अपनी जाति कैसे साबित करूं। आखिर मैं किस जाति का हूं ? किस धर्म का हूं?

अब तक दुखी दिखने वाले हनुमान के चेहरे के भाव गुस्से में परिवर्तित हो गए थे। हनुमान के शब्दों में भी उनका गुस्सा झलक रहा था। हनुमान ने आगे कहा, “प्रभु आखिर क्यों खुद को जातिनिरपेक्ष/धर्मनिरपेक्ष बताने वाले नेता मेरी जाति और धर्म के पीछे पड़े हैं?  ये लोग कौन होते हैं मेरी जाति और धर्म तय करने वाले? क्या इनके पास मेरी जाति से ज्यादा जरूरी मुद्दे नहीं बचे? क्या इनको लड़कियों के साथ हो रही हिंसा नजर नहीं आती? भूख और सर्दी से मर रहे लोगों की कोई चिंता नहीं सताती? मंहगाई की मार झेल रहे लोगों का भी कोई लिहाज नहीं आता? जनता के टैक्स से किसानों को कर्जमाफी के तौर पर फौरी राहत देकर बहलाने के बजाय कोई ठोस उपाय नहीं सूझता? प्रभु क्या इन मूर्खों को लगता है कि मैं सच में इनके कोर्ट में हाजिर होऊंगा अपनी जाति प्रमाण पत्र लेकर और साबित करूंगा कि मेरी जाति क्या है? मेरा धर्म क्या है?”

अब तक चुपचाप हनुमान के दुख और क्रोध को सुन रहे भगवान राम ने कहा, शांत हो जाओं हनुमान, तुम क्रोधित मत हो। ये लोग तुम्हारी जाति नहीं जनता के समक्ष खुद का चरित्र बता रहे हैं….। तुम्हारा धर्म नहीं खुद का वोटबैंक तय कर रहे हैं..।

-दीप्ति मिश्रा

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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