दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में सितंबर से छात्र संघ चुनाव और सभी कॉलेजों में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में ऑल इंडिया विश्वविद्यालय एंड कॉलेजिज एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसिएशन ने राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षों को खुला पत्र लिखकर मांग की है कि 50 फीसद सीटों पर एससी, एसटी, ओबीसी के छात्रों को प्रतिनिधित्व दिया जाए।
शिक्षक संघ के चेयरमैन और विद्वत परिषद सदस्य प्रो. सुमन का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय देश का सबसे बड़ा केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जिसमें केवल देशभर के छात्र ही नहीं बल्कि कई देशों के छात्र पढ़ते हैं। सबसे ज्यादा संख्या छात्रों की यहीं पर है। छात्र संघ चुनाव युवाओं को राजनीति में प्रशिक्षण देने की नर्सरी है। इसी विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में आज उच्च पदों पर आसीन हैं।
उनका कहना है कि जिस प्रकार निगम, विधान सभा और सांसदों के चुनावों में एससी और एसटी को आरक्षण दिया जा रहा है। ठीक उसी प्रकार छात्र संघ चुनावों में आरक्षित वर्ग के छात्रों को टिकट देने की पहल कर एक नये अध्याय की शुरुआत की जा सकती है। कुछ विश्लेषणकर्ताओं का यह मानना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनावों की जीत देश के युवाओं का भविष्य तय करता है।
आरक्षित वर्गों के छात्र जब राजनैतिक पार्टियों के छात्र संगठनों में जाएंगे तो चुनाव जीतने के बाद वे अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा जागरूक और गंभीर होंगे। एससी, एसटी और ओबीसी के छात्रों की समस्याएं केवल छात्रसंघ चुनावों के समय उठाई जाती हैं। इन वर्गों के छात्रों से वोट तो ले लिए जाते हैं, पर जीतने के बाद उनके मुद्दों से राजनीतिक पार्टियों का कोई सरोकार नहीं रहता। हर साल चुनाव में अपने घोषणा पत्रों में छात्रों के लिए बड़े-बड़े वायदे किये जाते हैं परंतु जीत के बाद उन वायदों पर काम नहीं होता। हर राजनैतिक पार्टियों के छात्रसंघ इनकी वोट तो लेती हैं परंतु टिकट नहीं देती, टिकट देती हैं तो जाति की संख्या के आधार पर या धन-बल को महत्व दिया जाता है।
प्रो. सुमन ने कहा है कि अच्छा राजनेता बनने के लिए यह जरूरी नहीं कि वो अपनी जाति का प्रयोग करे। जाति के आधार पर छात्र संघ के चुनाव करना यानी कि एक जहरीला पेड़ लगाना है। जहां हम जातिवाद को खत्म करने की ओर अग्रसर हो रहे है वहीं दूसरी ओर उसको बढ़ावा भी दे रहे हैं। लेकिन, इसमें दो राय नहीं है कि राजनीति जाति के बिना चल ही नहीं सकती। हर छात्र किसी न किसी विचारधारा से प्रभावित होता है। जो छात्र राजनीति में अपना करियर बनाना चाहते हैं। वैचारिक मुद्दों से प्रभावित होकर राजनैतिक पार्टी के छात्र संगठन से जुड़ते हैं। यह राजनीति की पहली सीढ़ी है। इसके जरिये ही कुछ युवा राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश कर जाते हैं।
छात्रों की कई समस्याएं हैं जिन पर कोई ध्यान नहीं
छात्रों को होने वाली कई समस्याएं जैसे बस पास की समस्या व बसों की कमी, मेट्रो में कम कीमत पर पास सुविधा का न उपलब्ध होना है। एससी, एसटी, ओबीसी के छात्रों के लिए पर्याप्त छात्रावास की सुविधा भी नहीं है। इसके अलावा छात्रों की स्कॉलरशिप, पुस्तकें कम कीमत पर व रजिस्टर, आरक्षित छात्रों के लिए रिमेडियल क्लॉसेज, सर्विस के लिए फ्री कोचिंग सेंटर, प्रोफेशनल कोर्स में दाखिल़े के लिए कोचिंग क्लास, छात्राओं की सुरक्षा, छात्राओं के लिए सर्विस के लिए कोचिंग सेंटर, जातीय भेदभाव को दूर करने आदि तमाम तरह की समस्याओं को दूर करने के प्रयास किये जाने चाहिए तथा उन्हें सुविधाएं दी जानी चाहिए, लेकिन अभी तक इस पर काम नहीं हुआ है। प्रो. सुमन का कहना है कि इन मुद्दों पर लड़ने के लिए समाज के प्रत्येक वर्गों को प्रतिनिधित्व देना चाहिए ताकि समाज के सभी वर्गों में समानता लाई जा सके। इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि इस साल अपने-अपने छात्र संगठनों से 50 फीसद सीटें विश्वविद्यालय और कॉलेज स्तर पर आरक्षित वर्ग के छात्रों को दें ताकि इन समस्याओं का समाधान हो सके।
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