-सुकृति गुप्ता
दिल्ली में जंगल खत्म हो रहे हैं यही कारण है कि अब बंदरों के रहने के लिए जगह नहीं बची है, इसलिए ये रिहायशी इलाकों में दाखिल होने लगे हैं। अब आम लोगों को इसकी वजह से परेशानी उठानी पड़ रही है। देश का सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान एम्स भी इससे अछूता नहीं रहा है। वहाँ बड़ी मात्रा में बंदर रहते हैं जो डॉक्टरों और मरीजों से खाने-पीने की चीज़ें छीन लेते हैं। हाल ही में एक वाकया सामने आया था जब बंदरों का एक झुंड 64 वर्षीय एक मरीज गंगाराम की रिपोर्ट और यूएचआईडी पंजीकरण नंबर लेकर फरार हो गया था। आलम यह रहा कि उन्हें दोबारा से पंजीकरण कराकर जांच दोबारा करवानी पड़ी। एम्स के डॉक्टरों ने भी बंदरों वाली इस समस्या को लेकर कई मंत्रियों को पत्र लिखा है।
“21 जून को मैं डीयू की एमफिल (इतिहास) की प्रवेश परीक्षा देने गई थी। वापस घर जाने के लिए रेड लाइन लेनी थी। लिहाजा, मैं कश्मीरी गेट उतरी। वहाँ उतरकर जब रिठाला वाली मेट्रो पकड़ने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने ही जा रही थी कि बहुत सारे बंदरों ने मुझे घेर लिया। करीब 15-20 बंदर थे। मेरे पास खाने-पीने की कोई चीज़ भी नहीं थी। बस अपना झोला टांग रखा था। फिर भी उन्होंने मुझे ऐसे घेर लिया जैसे कि काट ही लेंगे! बंदरों से बचने के लिए मैं एनबीटी (राष्ट्रीय पुस्तक न्यास) की बुक शॉप में घुस गई। जब मैं बुक शॉप में घुस रही थी, तो ये बंदर दरवाजे पर भी लटक गए थे। बुक शॉप के मालिक ने किसी तरह उन्हें दूर किया”
ये राजधानी के कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन का हाल है! मैंने खुद इस हाल का अनुभव किया। इसलिए इसकी और जांच-पड़ताल की। पड़ताल करने पर पता चला कि यहाँ स्टेशन पर एक खाली जगह है जो अब इस्तेमाल में नहीं है। वहीं इन बंदरों ने डेरा जमा रखा है। करीब 30-40 बंदर हैं। हमेशा देखने पर 30-40 नहीं दिखेंगे। हो सकता है कई दफा 15-20 ही दिखाई दें। दरअसल कई दफा ये कोनों में छिपे रहते हैं। जब जी करता है, बाहर निकल आते हैं। ये बंदर वहाँ उछल-कूद करते हैं। मन करता तो दीवार टापकर पूरे स्टेशन पर घूमते हैं। सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि यहाँ के गार्ड तक को भी नहीं पता कि यहाँ इतने बंदरों ने डेरा जमा रखा है। एक सेक्युरिटी गार्ड ने तो यहाँ तक कहा कि हमने तो आज तक कोई बंदर देखा ही नहीं। फिर कहा, “आपका कोई सामान छीन लिया क्या? अगर कोई नुकसान हुआ हो तो शिकायत कर दें।” मैंने सोचा पहले रिपोर्ट लिख लूँ फिर शिकायत करती हूँ। शिकायत अगर पत्रकारों की ओर से आ जाए तो प्रशासन अपनी लापरवाही छिपा लेता है।
एनबीटी बुक शॉप के मालिक सतीश कुमार शर्मा ने भी मुझे बताया कि ये बंदर अक्सर उनकी शॉप को घेर लेते हैं। दरवाजे और घिड़कियों पर लटक जाते हैं। जब ऐसा होता है तब इन्हें दरवाजा अंदर से बंद करके अंदर ही बैठे रहना पड़ता है, जब तक कि इनका आतंक शांत न हो जाए। पर ये एक अकेली जगह नहीं है जहाँ बंदरों ने आतंक मचाया हुआ है। दिल्ली के कई पॉश इलाकों का यही हाल है। 16 जनवरी में एक सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने भी कहा था- “जल्द ही अगर सरकार बंदरों की जनसंख्या को कम करने के लिए तुरंत कोई कदम नहीं उठाती है तो हम सब लुटियन जोन से बाहर हो जाएंगे!”
पहले भी देखा गया है बंदरों का आतंक
पिछले वर्ष भी बंदरों के आतंक के कई मामले सामने आए थे। पिछले वर्ष दिल्ली विधानसभा की बैठक के दौरान एक बंदर सदन में घुस आया था और सत्तापक्ष और विपक्ष की सीटों पर घूमकर सबको हैरान कर दिया था। वहीं इंडिया गेट पर तो बंदरों का आतंक जारी है ही!
पिछले साल एक वीडियो सामने आया था जब एक बंदर को मेट्रो की सवारी करते देखा गया था। यह कश्मीरी गेट-फरीदाबाद मेट्रो लाइन का मामला था। हैरानी की बात ये थी कि डीएमआरसी को भी इस मामले की जानकारी नहीं थी। इससे पहले रिठाला मेट्रो स्टेशन पर भी ऐसा ही मामला सामने आया था जब एक बंदर मेट्रो ट्रेन में घुस गया था।
बंदरों के आतंक की समस्या महज दिल्ली की ही नहीं है, पूरे देश की है। हाल ही में मई के महीने में ताजमहल में भी बंदरों का आतंक देखा गया था। यमुना की तरफ से आए बंदरों के एक झुंड ने सैलानियों पर हमला कर दिया था। फ्रांस से आए दो विदेशी पर्यटकों को बंदरों ने घायल भी कर दिया था। सीआईएसएफ के जवानों ने जब पर्यटकों को बचाने की कोशिश की थी, तो इन बंदरों ने उन पर भी हमला कर दिया था। उसके बाद बड़ी मुश्किल से ही उन पर काबू पाया जा सका था।
बंदरों के आतंक को रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है?
बंदरों की समस्या पर लगाम कसने के लिए सरकार कोशिश कर रही है कि इनकी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण रखा जाए। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस पर चिंता जताते हुए कहा था कि लोगों के रहने के लिए ही जगह कम पड़ रही है, इसलिए इनको पकड़ना कोई हल नहीं है। ज़रूरत है इनके प्रजनन क्षमता को नियंत्रित किया जाए।
दिल्ली हाई कोर्ट ने जनवरी में हुई सुनवाई के दौरान केन्द्र से रिपोर्ट मांगी थी कि वह बंदरों के आतंक की समस्या को हल करने के लिए क्या कर रही है? 16 जनवरी को हुई इस सुनवाई में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था कि वह बंदरों की प्रजनन क्षमता पर लगाम कसने के लिए वैक्सीन तैयार करेगी, पर उसके लिए अभी वित्त मंत्रालय से धन की मंजूरी मिलना बाकी है। मंत्रालय ने यह भी कहा था कि यदि धन मिल भी जाता है तो भी शोध में 7 साल लगेंगे। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए केन्द्र को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि अब जब तक सरकार वैक्सीन नहीं तैयार कर लेती, तब तक बंदरों को तो नहीं कह सकते कि वे खुद अपनी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण रखें! कोर्ट ने यह भी कहा कि अफ्रीका जैसे देशों ने भी जब बंदरों की प्रजनन क्षमता को रोकने के लिए वैक्सीन तैयार कर ली है तो भारत इतना इंतजार क्यों कर रहा है।
बंदरों की समस्या से निपटने का यह मसला 2001 से लंबित है। हाई कोर्ट ने कहा है कि वैक्सीन तैयार करने के लिए समय बर्बाद करने की बजाए सरकार उसे आयात कर ले। हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि वैक्सीन आयात करने के लिए केन्द्र दिल्ली सरकार को धन मुहैया कराए।
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