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खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य में भूख से मौत!

credit: google, representational image

एनके पाण्डेय “नीरज”

नई दिल्ली: झारखण्ड जैसे राज्य में प्रचुर मात्रा में खनिज संपदा है और यह बिजली उत्पादित कर देश की राजधानी दिल्ली समेत कई शहरों को रौशन भी कर रहा है, लेकिन इसी राज्य में कुछ महीने के अंतराल में एक बच्ची समेत दो लोगों की भूख से मौत हो जाती है। इसे राज्य के नीति निर्माताओं की विफलता कहें या फिर भाग्य का दोष कि उसके बाद प्रशासन कुम्भकरणी नींद से जागता है और हर बार की तरह इस बार भी जांच का हवाला देता है। साथ ही दावा किया जाता है कि पीड़ित परिवार को हर संभव मदद की जाएगी। पता नहीं ऐसी खबरें सुनने के बाद राज्य के अधिकारियों और हमारे भाग्यविधात्यों को कैसे रात को चैन की नींद आती होगी, जिनके जिम्मे राज्य को खुशहाल बनाने की बड़ी जिम्मेदारी है। आमजन तो केवल यह सोच कर हैरान और परेशान है कि अच्छे दिन लेकर आने का दावा करने वाले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावों के विपरीत देश में यह क्या हो रहा है? एक महिला और मासूम बच्ची की मौत केवल इस कारण से हो जाती है कि उन दोनों के घर मे खाने को घर मे अन्न का एक दाना नहीं था। इस कारण कई दिनों से उनके घर में चूल्हा नहीं जला था और खाली पेट को पानी पीकर भरा जा रहा था। आखिरकार पानी पीकर कितने दिन काटे जा सकते हैं? थक हार कर दोनों ने दम तोड़ ही दिया।

झारखंडवासियों को वर्ष 2000 के 15 नवंबर को बड़ी खुशी हुई थी कि अब यह नया राज्य बन गया है। काफी विकास होगा और लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा, लेकिन ठीक इसके विपरीत राज्य लूट-खसोट का चारागाह बन गया। सत्ता में आने के बाद हर किसी ने अपनी तिजोरियां भरीं। कई मामले उजागर हुए हैं। कइयों पर आज भी धूल जमी है। उम्मीद है कि समय के साथ इनका भी खुलासा होगा। जिस राज्य के गर्भ में लोहा और कोयला का भंडार हो और अगर उस राज्य में लोगों की मौत भूख से होती हो तो इससे तो यही सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकारी तंत्र इस कदर निष्क्रिय हो चुका है कि वह अपने गरीब और असहाय नागरिकों का पेट नहीं भर पा रहा है। उन योजनाओं का क्या हुआ, जिसमें दावा किया जाता है कि गरीबों के लिए एक व दो रुपये में चावल और गेहूं दिया जा रहा है। क्या ये दावे कागजी हैं या फिर उन जरूरतमंद लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है, जो वाकई में इस योजना के हकदार हैं। कहीं न कहीं तो गलती हो रही है और जिम्मेदार लोग इससे बच रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि सिमडेगा जिले में 11 साल की संतोषी कुमारी सिर्फ इसलिए भूख से तड़प-तड़प कर मर गई थी, क्योंकि उसका परिवार राशन कार्ड को आधार से लिंक नहीं करा पाया। संतोषी के पेट में आठ दिन तक अन्न का एक दाना तक नहीं गया था, जिसके चलते बीते साल 2017 के 28 सितंबर को भूख से उसकी मौत हो गई थी। हालांकि, मीडिया में कई दिनों तक यह मामला चर्चा में रहा, लेकिन बाद में सब शांत हो गया। हर बार की तहर जिला स्तर पर एक रिपोर्ट तैयार की गई और केंद्र सरकार को भेजी गई। मीडिया में आयी खबरों पर भरोसा करें तो रिपोर्ट तैयार करने वाली उस वक्त की सिमडेगा की डीसी मंजूनाथ भंजतरी ने दावा किया कि बच्ची की मौत मलेरिया से हुई है। अब डीसी को कोई बताए कि जब आठ दिन तक पेट मे अन्न का एक दाना नहीं जाएगा तो व्यक्ति बीमार नहीं होगा तो क्या होगा? खैर कार्रवाई के नाम पर राशन डीलर के लाइसेंस को रद्द कर दिया गया और इस प्रकार पूरे मामले को इतिश्री कर दिया गया।

इस बार गिरिडीह जिले के मंगरगड्डी गांव में एक 58 वर्षीय महिला सविता देवी की मौत बीते दो जून को भूख से हो जाती है। प्रारंभिक स्तर पर पता चला है कि उसके घर में तीन दिनों से चूल्हा नहीं जला था। क्योंकि घर में अन्न का एक दाना नहीं था। महिला की बहुएं आस-पड़ोस के घरों से खाना मांग कर बच्चों को दे रहे थे। आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से महिला के दोनों बेटे कमाने गए हुए थे। पर कुछ ही दिन हुआ था इस कारण एक फूटी कौड़ी भी नहीं कमा पाए थे। अब फिर से जिला प्रशासन ने जांच टीम बना दी है। इस मामले में सबसे हैरान और परेशान करने वाली बात यह है कि इस परिवार का राशन कार्ड भी नहीं है, जिसकी मदद से इस परिवार को राशन मिलता। सिमडेगा की तरह इस मामले में भी देखा गया है कि गरीब परिवार को कोई सरकारी मदद भी नहीं मिल रही थी। अंत मे राज्य के लालफीताशाही और भाग्यविधाताओं को इसका जवाब देना होगा कि गरीबों के उत्थान और मदद के नाम पर हर साल लाखों करोड़ों जो खर्च किए जा रहें हैं। इसका लाभ किसको मिल रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि जरूरतमंद आज भी आस लगाए बैठा है और मलाई कोई और हजम कर रहा है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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