-शीतल चौहान
पर्यावरण संरक्षण के लिए जहां एक तरफ अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए सरकार गो ग्रीन को बढावा देती है वहीं, देश की राजधानी दिल्ली में हजारों पेड़ काटकर नए पर्यावरणीय संकट को दावत दी जा रही है। दक्षिणी दिल्ली में 7 कॉलोनी बनाने के लिए 17 हजार पेड़ों को काटने की खबर जंगल में आग की तरह फैल रही है और इसको लेकर बड़ी बहस शुरू हो गई है। दरअसल, एनबीसीसी साउथ दिल्ली के इलाकों में पुरानी इमारतों को तोड़कर बहुमंजिला इमारतें बनाई जा रही है और उन्हीं इमारतों के लिए हजारों पेड़ों को काटा जा रहा है। हालांकि हाई कोर्ट ने पेड़ों को काटने के केंद्र सरकार के फैसले पर 4 जुलाई तक के लिए रोक लगा दी है। इसके लिए कोर्ट में 4 जुलाई को अगली सुनवाई होगी। दिल्ली के सरोजिनी नगर इलाके के अलावा, कस्तूरबा नगर, नौरोजी नगर, नेताजी नगर, त्यागराज नगर और मोहम्मद पुर में बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा जा रहा है। इतना ही नहीं जहां एक तरफ, आम आदमी पार्टी और भाजपा सरकार वृक्षारोपण के वादे को निभाने में विफल साबित हुई है। वहीं दूसरी तरफ, काटे गए पेड़ों की जगह गैर-महत्व के पेड़ भी राजधानी दिल्ली में लगाए गए। इसका विरोध सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर भी हो रहा है। इस मामले में राजनीतिक बहसबाजी और आरोप-प्रत्यारोप को दौर जारी है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण इस मामले की सुनवाई 2 जुलाई को करेगा।
हाई कोर्ट के कटाई पर रोक के फैसले के बाद भी पेड़ों की कटाई पर लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर जमकर भड़ास निकाली जा रही है। राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर केवल आरोप करते नजर आ रहे है।
याचिका में क्या कहा गया
हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि रीडेवेलपमेंट के नाम पर करीब 16,500 पेड़ों को काटने की इजाजत मंत्रालयों ने गलत तरीके से दी है। इसका नुकसान दिल्ली को प्रदूषण के रूप में तो झेलना ही पड़ रहा है, आगे इससे भी ज्यादा नुकसान झेलना पड़ सकता है। याचिका में कहा गया है कि इन इलाकों में कुल मिलाकर 20,000 पेड़ हैं, जिनमें से 16,500 पेड़ काटने की अनुमति दी गई है। अगर ऐसा हुआ तो पर्यावरण को इससे भारी नुकसान होगा। पर्यावरण को सुरक्षित रखने एवं प्रकृति को प्रदूषण मुक्त बनाने में पेड़ अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए इन पेड़ों को काटे जाने से बचाने के लिए सरकार को ऐसा कदम उठाना आवश्यक है जो हमारें पर्यावरण को संतुलित बना सके।
दिल्ली हाई कोर्ट ने एनबीसीसी से पूछा, “क्या दिल्ली विकास कार्यों और सड़क बनाने के नाम पर इन पेड़ों को काटे जाने को सह सकने की हालत में है? 2 जुलाई तक कोई और पेड़ नहीं काटे जाने चाहिए। इस मामले की अगली सुनवाई 4 जुलाई को होगी।”
याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने कहा कि अगर किसी कारण से दिल्ली में पेड़ों की कटाई होती है तो इसके लिए सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि दिल्ली के लोग भी उतने ही जिम्मेदार होंगे।
एम्स के ऑर्थोपेडिक शल्य चिकित्सक और याचिकाकर्ता डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने कहा, “पेड़ों को काटकर इमारतें और पार्किंग बनाने का फैसला चाहे किसी का भी हो पर्यावरण के पहलू से बिल्कुल गलत है। इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाएं, ताकि हम अपने मकसद को हासिल कर सकें। जब इस मुद्दे को राजनीतिक रूप दे दिया जाएगा तो यह मकसद कभी पूरा नहीं होगा।” उन्होंने कहा, “ये इमारतें दिल्ली से बाहर बननी चाहिए और इन्हें बाहर ही बनाया जाना चाहिए। बता दें, इसमें बनने वाले मकान केंद्र सरकार के शीर्ष कर्मचारियों के हैं।”
पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी
दिल्ली में पेड़ों की कटाई को लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। आम आदमी पार्टी की विधानसभा कमेटी ने पेड़ काटे जाने की जगह पर जाकर पेड़ों का ब्यौरा लिया। दूसरी तरफ बीजेपी ने पोस्टर के जरिए अरविंद केजरीवाल सरकार पर निशाना साधा है। पार्टी ने नेताजी सुभाष नगर साइट पर जाकर पोस्टर लगाए हैं। आप के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने कहा कि पेड़ कट चुके हैं अब चाहे दौरा करें, चिपको आंदोलन करें या कुछ भी करें, वह तो वापस आ नहीं सकते। गौरतलब हो तमाम एनजीओ और संस्थाओं के अलावा दिल्ली के लोगों द्वारा जमकर पेड़ से चिपककर पेड़ों की रक्षा करने के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर जमकर बवाल मचा हुआ है।
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस सभी के साथ मिलकर आप औऱ बीजेपी के इस तरह के आदेश के खिलाफ लड़ेगी।
In Delhi, the BJP with AAP’s approval has hacked down thousands of trees in the past 4 yrs for “development”.
Even children know that trees are critical to our survival & difficult to replace.
Stand with the Congress & together let’s fight this madness. #BJPAAPChokeDelhi
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 28, 2018
वहीं, दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मंत्री इमरान हुसैन पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि नेताजी नगर और नौरोजी नगर में पेड़ काटने की सिफारिश खुद इमरान हुसैन ने ही की थी।
AAP सरकार को नेताजी नगर व नोरौजी नगर मे पेड़ काटने की स्वीकृति से पहले 39950 लगवाने थे,
7 वर्ष पालने के बाद DDA को हस्तान्तरित करने थे।
लेकिन मंत्री @ImranHussaain ने एक भी नया पेड़ लगवाऐ बग़ैर तुरत फुरत मे पेड़ काटने की स्वीकृति दे दी
इसमे भ्रष्टाचार की बू आ रही है !@BJP4India— Vijender Gupta (@Gupta_vijender) June 28, 2018
केजरीवाल पर धावा बोलने वाले आप के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने उन्हें पेड़ों का कातिल बताया
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) June 29, 2018
आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि इस परियोजना में सिर्फ एक मंजूरी दिल्ली सरकार ने अप्रैल 2014 में दिल्ली में राष्ट्रपति शासन के दौरान तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा दी गई थी। उन्होंने कहा कि इससे साफ है कि यह परियोजना कांग्रेस और बीजेपी का साझा उपक्रम है।
अब सरकार या तो रीडेवेलपमेंट करेगी या बनाएगी दूषित जीवन
अगर पेड़ों के कटने की बात की जाए तो साउथ दिल्ली में 16,500 पेड़ कटने से दिल्ली पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसका असर करीब अगले 20 वर्षों तक दिखाई देगा। पेड़ कटने के बाद निर्माण होने पर प्रदूषण में तेजी से इजाफा होगा। यही नहीं, पेड़ों के कटाव की खबर पढ़ने के बाद द्वारका का ग्रीन सर्कल ग्रुप भी मामले में केस दायर करने की तैयारी कर रहा है।
ग्रीन सर्कल में कार्यरत केवी सिल्वराजन के अनुसार, यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है। हम पेड़ों को बचाने के लिए कई वर्षों से काम कर रहे हैं। हमें पता है कि एक पौधे को पेड़ बनने में कितना समय और पानी लगता है। एकसाथ 16,500 पेड़ों को काटने का मतलब अगले कई वर्षों तक दिल्ली से बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन छीन लेना है।
पेशे से वकील हिम्मत सिंह मीणा का कहना है कि क्षेत्र में औद्योगिकीकरण के कारण जहां नगर की आबोहवा प्रदूषित हो गई है। वहीं भोजपुर और भीमबैठका के ऐतिहासिक महत्व की धरोहरों को नुकसान पहुंच रहा है। क्षेत्र में लगातार बढ़ते प्रदूषण से राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) भी चिंतित है। वह अपनी इस चिंता से प्रदूषण पर नियंत्रण कराने वाली जिम्मेदार संस्था प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) को भी अवगत करा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर अंकुश लगाने के आदेश दे चुकी है।
पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि एक ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत करीब 700 रुपए होती है। एक वयस्क इंसान एक दिन में करीब तीन सिलेंडर यानी 2100 रुपए की ऑक्सीजन सांस के जरिए ग्रहण करता है। मौजूदा दौर में इंसान की औसत आयु यानी 65 साल में इस तरीके से करीब पांच करोड़ रुपए की ऑक्सीजन ग्रहण कर ली जाती है। जिस गति से पेड़ कट रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब एलपीजी सिलेंडर की तरह हमें ऑक्सीजन सिलेंडर भी घर पर खरीदकर रखने होंगे।
रिटायर्ड डिप्टी कंजरवेटर फॉरेस्ट डॉ.सुदेश वाघमारे ने बताया कि किसी भी पेड़ से ऑक्सीजन छोड़ना और कार्बन डाइ ऑक्साइड ग्रहण करना उसके फालिज (पत्तों का बड़ा दायरा) पर निर्भर करता है। 20 सेमी परिधि वाले को ही पेड़ कहा जाता है, अन्यथा वह पौधा है। फलों के पौधों को पेड़ बनने में करीब 7 साल लगते हैं। यदि एक पेड़ रोजाना 1600 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, तो एक पौधा आधा सिलेंडर यानी आठ लीटर ऑक्सीजन रोज छोड़ेगा।
इस मुताबिक अगर हमने अभी इन पेड़ कटने पर एक्शन नहीं लिया तो आने वाले समय पर लोगों में इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक “इन देशों की आबादी बूढ़ी हो रही है, इसलिए वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों का असर और भी गहरा होता जा रहा है और ऐसे में पेड़ों की बेलगाम कटाई पृथ्वी पर विभिन्न जानवरों और पक्षियों के साथ ही साथ मानव जगत के अस्तित्व को संकट में डाल रही है।”
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