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वो देश (कविता)

सांकेतिक तस्वीरः गूगल साभार

-पवन कुमार

देश वो जाने कहां है खो गया

खून से अपना नाम वतन से धो गया

था सुख वतन, उन्माद वतन अब हो गया

देश वो जाने कहां है खो गया

 

जिंदगी में जाल अब हैं बढ़ रहे

लोग अब नई-नई कहानियां गढ़ रहे

जान को न्योछावर कर वो सो गया

देश वो जाने कहां है खो गया

 

हाल ही का हाल सब पूछते यहीं

सूखता अम्बर फूटती है जमीं

आज भारत का भविष्य है रो रहा

देश वो जाने कहां है खो गया

 

शान – शौक़त में पड़ा है ये जहां

राख बनकर वो फिरे जाने कहां

हैसियत से मनुष्य का मोह रहा

देश वो जाने कहां है खो गया

 

आज सदियों से परेशां आदमी

अन्न से सोना उगाती ये जमीं

हाल अबतक जिंदगी का जो रहा

देश वो जाने कहां है खो गया

 

हो सुखी आदमी-आदमी का सफ़र

जाम के अल्फाज़ रह जाएं अमर

आदमी की जान बनकर जी रहा

देश वो जाने कहां है खो गया

 

आज पवन भी पवन से जूझता

ख़ुद की ले पहचान सबसे पूछता

आंसुओं के घूंट पीकर जी रहा

देश वो जाने कहां है खो गया

(पवन दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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