प्रिय कोरोना,
मैंने तुम्हारा नाम सुना जब चाइना में लोग मरने लगे। सोचा न था कि कभी तुम हमारे देश आ जाओगे। मैंने तुम्हें वायरस यानी विषाणु समझा था। बस इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। लोग कह रहे थे कि तुम्हारे बारे में लिखूँ, लेकिन मैंने न तो तुम्हें पढ़ना चाहा और न ही लिखना। तुम्हारा काम क्या है यह भी नहीं जानने की जहमत उठाई। तुम चाइनीज माल की तरह लगे लोग अपने देश में बस तुम्हारे कहर फैलाने से तुम्हें प्रधानमंत्री से छोटा आंकने लगे थे। शायद हमारे प्रधानमंत्री से इन्हें चिढ़ थी क्योंकि उन्होंने नागरिकता कानून से मुसलमानों में कहर फैलाया था। और उस कहर से असम, यूपी और साउथ इंडिया के राज्य पहले ही जल चुके थे। तमाम लोग स्वर्ग सिधार गए। इसके बाद यह आग दिल्ली पहुंची तो यहां 50 से अधिक लोगों को निगलने की खबर मिली। मैंने तुम्हें वाकई कम ही क्षमतावान समझा था क्योंकि चाइना में तुम्हारी वजह से होने वाली मौतों की संख्या भी कम ही थी। लेकिन तुम्हारे भारत आने से पहले ही दिल्ली हिंसा में मैंने जो आग देखी थी उसकी वजह से मैंने डरे हुए लोगों का पलायन भी देखा था। यही नहीं सड़कों पर अमेरिकी राष्ट्रपति के जाने के बाद भी सन्नाटा भेव देखा था कुछ इसी तरह जैसे अभी 21 दिनों का लॉक डाउन है। खैर तब मुझे इंसानियत की परीक्षा में धर्म की परीक्षा में हमारे आस पास के लोग असफल ही साबित हुए थे।हिन्दू/ मुस्लिम और नफरतों के जंग में कोरोना की घटना चीन की भूल चुका था।
हमारे देश ने होली के पहले तक कोरोना की जानकारी नहीं प्राप्त की थी। थोड़ा बहुत शायद लोग जानना समझना चाह रहे थे कि क्या होता है यह। उसी समय ही हमारे देश के प्रतिष्ठित साधू संतों ने तुम्हें भगवान का अवतार नाम दिया था।तुम्हें काल नहीं समझा था। तुम्हें हिंदुओं का हितैषी माना गया था कि जो संस्कारी हैं जो नमस्कार करते हैं उन्हें तुम हाथ भी नहीं लगाते। तुम्हें तो पूरा भारत नमन कर रहा था। आयोजनों में से एक आयोजन गो मूत्र पार्टी की थी होली के बाद की यानी उसी समय जब लोगों से इकट्ठा न होने की अपील दिल्ली सरकार ने की थी। मैं नहीं जानता क्यों तब तुम्हारी पूजा पाठ हुई थी और हिन्दू महासभा के अध्यक्ष को इतने बड़े सम्मेलन की आजादी दिल्ली में दी गई। तुम्हारी नहीं गलती थी उस समय सरकार हमारी शायद तुम्हें पूजा पाठ करने योग्य ही समझ रही थी। संस्कार बता रही थी।यह भी कह रही थी कि तुम आये हो तो यहां के लोगों के रहन सहन, खाने पीने की आदत देखकर भाग जाओगे। मीडिया और आईटी सेल का एक धड़ा तुम्हें यह कहकर जोक में भी यूज करने लगा था कि तुम तो भगवान हो कि हर किसी में तुम्हारी आत्मा देखी जाने लगी थी।कुछ लोग इम्म्युनिटी का ऐसा चेहरा बनाकर भेज रहे थे कि तुम उनसे बहुत दूर चले जा रहे थे। हंसते खिलखिलाते चेहरे के बाद वही लोग बहुत डर गए तो मैं भी डर गया क्योंकि कुछ टीवी वालों ने तुम्हारा सिम्पटम्स ढूंढ लिया था। दिल्ली सरकार ने तो अपने यहां हर दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी शुरू कर दी थी। एड में कोरोना ही कोरोना का प्रचार होने लगा। और इसी बीच हमारे देश के प्रधानमंत्री जग गए।
उन्होंने एक दिन आकर 8 बजे कहा कि कोरोना यानी तुम इतने बड़े संकट हो देश के हर नागरिक के लिए कि तुम्हारी वजह से पूरे दिन कर्फ्यू लगेगा और वह भी लोग लगाएंगे। ऐसा कर्फ्यू जो कहीं सफल नहीं हो सका केवल अपने देश मे सफल होने वाला है। हमारे प्रधानमंत्री ने पता नहीं कहां की रिसर्च से यह निष्कर्ष निकाला कि इस कर्फ्यू से तो तुम डर के खुद ही भाग जाओगे। अभी तक तो प्रधानमंत्री को हीरो बना दिया गया। टेलीविजन की स्क्रीनों से तो मानो हमारे देश के प्रधानमंत्री तुम्हें हराने वाले भगवान बन गए।वो बार बार एक ही चीज कहते बस एक दिन। और वो शाम जिस पर लोग तालियां पीटेंगे, थालियां पीटेंगे तो तुम तो खुद आवाज सुनकर भाग जाओगे। हां शायद लोग एक दूसरे को मैसेज करते कल देखो कल हराना है अब इसे। अपने देश मे तुम्हारी औकात क्या है। बस क्या था भक्त तो शाम को भगवान की बात सुनकर तुम्हारे भगाने के उपायों में से एक उपाय सिलिंडर, थाली, पटरा, घंटी, दरवाजा, आदमी, औरत, टीनशेड यानी जो कुछ था सब बजाया। बस क्या था तुम्हारा हमारी टीवी स्क्रीन पर भी फेमस होना जरूरी ही था। सब खबर बस जनता कर्फ्यू तक ही सीमित रहने लगी। भगवान की बात सुनकर भक्त तो सब कर ही रहे थे, लेकिन इसमें संहयोग भक्त के साथ साथ आदर्श नागरिकों ने बहुत किया। करना भी चाहिए था क्योंकि तुम्हें इससे पहले पूरी तरह मजाक बनाया गया था। अब तो मीम में आधा सीरियस जगह तुम थे।बस कुछ लेकर बजाने वाले बात पर तुम्हारे को लेकर बहुत मजाक हो रहा था जोकि मुझे हजम नहीं हुआ था।
प्रिय, जब तुम फेमस हो गए और हमारे देश के प्रधानमंन्त्री ने इसके बाद ही 21 दिनों। के लॉक डाउन की घोषणा की तो मुझे बड़ा दुख हुआ, क्योंकि तुम बड़ी आसानी से हमारी राजधानी तक प्रवेश कर गए थे।एयरपोर्ट तो चालू था।रेलवे तो चालू थी। सब कुछ चालू था।मेट्रो चल रही थी। धार्मिक आयोजन वो चाहे हिन्दू के हों या मुस्लिम के हो रहे थे। प्रदर्शन थमे नहीं थे। संसद चल रहे थे। कनिका जैसे लोग यूपी में पार्टी कर रहे थे। लेकिन इन सबपर सरकार बस टीवी स्क्रीन अपर जनता कर्फ्यू की वाह वाही लूट रही थी। इतना भी नहीं किया कि हमारे मजदूर भाईयों को बाहर उनके घर तक छुड़वा दें। कोरोना तुम ने पता नहीं कितने मजदूरों की भूख से मृत्युदंड दिला दी। कितनों को बीमार कर दिया। कितनों का रोजगार बंद करवा दिया। कितनों को बिना प्लानिंग के जो जहां थे सड़कों पर वही रुकवा दिया। हमारे देश के प्रशासन ने डंडा चलाया तो चलते राहगीरों पर जो कि किसी समस्या से ग्रसित थे उनके लिए कोरोना से बड़ा खतरा यह समस्या थी।लेकिन पुलिस ने उन्हें मारकर अस्पताल भी नहीं भेजा।लेकिन स्टूडियो में बैठे लोग हंसकर यह वाकया दिखाते रहे। कोरोना तुमने अब यह दिखा दिया कि इस कर्फ्यू से इंसानियत भी चली गई।
लेकिन एक चीज तो स्पष्ट हो गयी कि कोरोना तुम्हें अब भगवान नहीं राक्षस माना जाने लगा और चाइना में ईजाद किया हुआ बताया जाने लगा। सब जगह जब लोग हजारों में मरने लगे तो तुम्हें मेरे देश में पाकर लोग चिंतित भी होने लगे।ठीक इसी समय एक तरफ समाचारों में चीन का जैविक हथियार बताया जाने लगा तो दूसरी ओर अमेरिका और इटली में तुम्हारी डर की वजह से वहां ओम मंत्र का उच्चारण करने और नमस्ते करने को भारत का संस्कार मानकर उसका क्रेडिट लिया जाने लगा। कोरोना से जंग, चीन से जंग, अमरीका पस्त ऐसे तमाम हेडिंग से टीवी स्क्रीन सजने और संवरने लगे। अब तक लेकिन धर्म का मुद्दा नहीं उठा था। अब तक तुम्हें विदेशी होने पर अपना भी लिया गया था। कि अब तो तुम मेरे देश में आ चुके हो।
अब जब तुम्हारी वजह से सन्नाटा है चारों ओर इसी बीच इस कर्फ्यू में मेरी दिल्ली में राजस्थान में हरियाणा में यानी केवल नार्थ के राज्यों में नहीं साउथ में भी तमाम राज्यों में बॉर्डर सील हुए तो इन्हीं बॉर्डर पर लाखों लोग इकट्ठा हो गए। तुम्हारी वजह अब भी इन लोगों के लिए छोटी ही रही।क्योंकि इनके लिए भूख सबसे बड़ी चीज थी। न कि तुम्हारे विषाणु की बीमारी। इसलिए तुम्हारी वजह से कुछ लोग इन मजदूरों को इनके कर्म का भोग बताने लगे थे तो कुछ लोग इनकी पुलिस से पिटाई करने की बात भी कर रहे थे। हां कुछ लोग सभ्य थे जो कह रहे थे कि इन मजदूरों के लिए सरकार ने लॉक डाउन करने से पहले कुछ क्यों नहीं सोचा। जब मजदूर भूख से मरने लगे तो याद आया कि पैदल जा रहे लोगों को बस की जरूरत भी हो सकती है।हालांकि इन बसों से तो यूपी की सरकार ने किराया उससे ज्यादा ही वसूल लिया जितना उसने कर्फ्यू में लोगों की मदद के रूप में खाते में भिजवाने की बात कही। कोरोना तुमसे जंग कोई हार नहीं पाया लेकिन इन मजदूरों ने हार लिया।
कोरोना तुम्हारी वजह से आनन फानन में इन मजदूरों को और जितने भी लोग जहां थे मारपीट कर उन्हें वहां लॉक भी कर दिया गया। लेकिन इसी बीच कुछ लोग बरेली में कीटनाशक का छिडक़ाव इंसानों पर करते हुए देखे गए तो ऐसा लगा कि कोरोना तुम्हें किसी ने नहीं हराया लेकिन इन्हें जरूर हरा दिया।
अब तक कोरोना तुम्हारी वजह से सड़कों पर सन्नाटा के बीच बस यही देखना बाकी था कि वे लोग जो तुम्हें भगाने के लिए अपना ज्ञान दे रहे थे, गोलियों का, गोमूत्र का, बेड का, शराब का, पूजा पाठ का, मंत्र का, साधू डॉक्टर सब तुमसे कतराने लगे और क्वारेंटाईन में जाने लगे क्योंकि तुमने वेंटीलेटर और मास्क ग्लव्स ज्यादा मांग लिया था। तुम्हारे चीन के जैविक हथियार का किस्सा खत्म नहीं हुआ था क्योंकि तुम अभी 1200 के पार ही संक्रमण फैला पाए थे। अब सुबह सुबह मैंने फिर से घर बैठे लोगों को सोशल मीडिया पर जहर घोलते देखा। टीवी पर भड़काते देखा। जो लोग सलाह दे रहे थे कि संस्कार भारतीयों का क्या है वही टीवी स्क्रीन पर बम , जेहाद का नाम बताकर धार्मिक रूप से लक्ष्य बनाकर एक दूसरे को उकसा रहे थे।
अब कोरोना तुम्हारी वजह से घर मे बैठे लोग जो महाभारत और रामायण देख रहे हैं वे गीता का न तो ज्ञान ले रहे न ही किसी और वेद उपनिषद का बस वे बम चला रहे हैं और हमला कराने की बातें।वहीं प्रशासक अब अपने नेताओं से ऐसे शब्दों का प्रयोग करा रहा जिसकी वजह से सड़कों पर खून खराबा से सन्नाटा फैलता है। लेकिन एक बात तो साफ है कि मान लेते हैं कि तुम निजामुद्दीन के धार्मिक आयोजन से खूब फैले तो क्या तुम्हें फैलने से रोकने के लिए जो इतंजाम कारी थे वे रोक नहीं पाए अक्षम कैसे रहे? आखिर दिल्ली पुलिस क्या कर रही थी क्या उसे उस धर्म के आयोजन के बारे में जानकारी नहीं थी? अगर तुम इतना फैले की माना कि कोरोना से संक्रमित 50 परसेंट भी उस धार्मिक आयोजन से हुए तो जो बचे 50 परसेंट हैं तो क्या वे दूसरे धार्मिक आयोजन, एयर पोर्ट से आने जाने या किसी जगह पर आने जाने के चलते नहीं फैले? अब तुम्हारी वजह से सियासत क्यों हो रही है।तुमने फिर इस चाइनीज माल को निजामुद्दीन का माल कहलवाने वालों को दंड कैसे नहीं दिया।इनके रिसर्च को कैसे पूरा नहीं होने दिया।
कोरोना तुम सही वक्त पर आये हो कहीं से भी आये हो तो तुम्हें आना जरूर था यहां तुम आये भी लेकिन इसका इल्जाम किसी धर्म पर सियासी रंग देने के लिए क्या गलत नहीं है? अगर हमारी सरकार इतनी अच्छी होती तो पहली बात ऐसे आयोजनों से बेफिक्र कैसे रही? एक तरफ तो मजदूरों को रोक लेती है और इतने लोग जो रहते हैं उन्हें क्यों नहीं रोकी? आखिर कर्फ्यू पहले क्यों नहीं लगाया गया? इतनी देरी से क्यों सारे स्टेप्स लिए गए? और अगर लिए गए तो अब जो कुछ हो रहा उसमे धर्म की सियासत क्यों? जिनकी गलती है उन्हें दंड दिया जाए जरूरी भी है मगर इन्हें धर्म का जिहाद, बम बताकर क्या साबित करना चाहते हो? नफरतों की आग में हमेशा सुलगाने के पहले अपने आयोजनों पर भी नजर डालने चाहिए। अगर आप गो मूत्र के लिए पार्टी आयोजित करवा सकते हो तो वो कोई सम्मेलन वो भी पूर्व नियत के साथ क्यों नहीं? और अगर यह सब अंधविश्वास या जेहाद है तो सब कुछ जितना भी अंधविश्वास है सब पर वार क्यों नहीं होता? तुम मुसलमान अपने मुसलमानों को बचाते हो और हिन्दू हिंदुओं को , यही विभाजन की रेखा है। इसे मीडिया के तूल ने और लोगों को भड़का रखा है। तुम्हें कोरोना अभी धार्मिक बताया जा रहा है ऐसा लगता है तुम मुस्लिमों से जन्में हो? ऐसा लगता है कि अब तुम बम बनकर किसी एक को टारगेट करने लगे हो? जल्दी ही तुम्हारा बम निरोधक दस्ता जोकि हमारा मीडिया है वो भी आएगा और तुम्हारी कुंडली निकाल लेगा फिर क्या कहोगे? कैसे बताओगे तुम निजामुददीन से आये या फिर चीन से या फिर चीन से और देशों में फिर तुम भारत बस बम की तरह यूज होने के लिये आये।
सच पूछो तो धर्म से अलग तुम्हारी दवा ढूंढना, सबको बचना बचाना और सबके साथ मिलकर काम करने की बात होनी चाहिए क्योंकि आयोजन तो हो चुके जो होना था हो गया फिर सोशल मीडिया क्यों नफरतों में बह रहा?
प्रिय सबसे बड़ी खामी ये है कि तुम वायरस होने के बाद भी देशी, विदेशी, धर्म, सम्प्रदाय, जाति आदि में बांटे जाने लगे हो। तुम किसी से नफरत करते हो ऐसा बताया जाने लगा है। तुम संस्कारी हो भी या नहीं ये सवाल उठाया जाने लगा है। तुम अब जहर उगलवा कर किसी को भूख से मरवा दोगे तो किसी को नफरतों के सियासी चाल से। हो सकता है तुम्हें अब भारत में दवा, मास्क, ग्लव्स, सैनिटाइजर से नहीं वेंटीलेटर से नहीं किसी दवा से नहीं बल्कि इन्हीं जहरों से मारा जाए क्योंकि हमारे देश में संस्कारी बहुत हैं। किसी भी धर्म के रक्षक बहुत हैं। अब तुम्हारी दवा भी यहां के लोगों ने नया कुछ न कुछ बना ही लिया है फिर बेवजह इन्हें कैद क्यों कर रखे हो। डस लो जाकर जहाँ तुम्हारी पैदाइश की जांच की जा रही हो क्योंकि वे लोग न तो शोधार्थी हैं न ही कोई विशेषज्ञ लेकिन वे हत्यारे जरूर हैं।
प्रभात जी
यह बहुत अच्छा प्रयास है।