दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में इस बार स्नातक स्तर पर दाखिले में योग्यता संबंधी बदलाव को लेकर ऊहापोह की स्थिति छात्रों के बीच बनी हुई है। एक ओर जहां 14 जून को दाखिले के लिए मेरिट आधार पर पंजीकरण करने की अंतिम तिथि है वहीं, दूसरी ओर इस संबंध में दिल्ली हई कोर्ट ने सुनवाई पर सोमवार को केंद्र और डीयू प्रशासन का 14 जून तक रुख बताने को कहा और इस पर अगली सुनवाई 14 जून को ही होनी है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर दाखिले को लेकर पंजीकरण की बात करें तो अब तक 304586 आवेदन हो चुके हैं। इनमें से 5069 ईडब्ल्यूएस के लिए पंजाकरण हुए हैं। छात्रों को ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट बनवाने में काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है। वहीं डीयू के विभिन्न छात्र संगठनों ने दाखिले के लिए पंजीकरण फीस में असमानता को लेकर प्रदर्शन करना भी शुरू कर दिया है। 11 जून को एसएफआई, आइसा आदि संगठनों ने डीन स्टूडेंट वेलफेयर (डीएसडब्ल्यू) ऑफिस के सामने फीस असमानता को लेकर प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन डीन राजीव गुप्ता के फीस असमानता के बारे में गलत जानकारी देने की वजह से किया गया।
बता दें कि बता दें कि ईडब्ल्यूएस श्रेणी से संबंधित छात्र के लिए आवेदन करने के लिए पंजीकरण शुल्क 300 है, जबकि ओबीसी से संबंधित छात्रों के लिए 750 प्रति प्रवेश-आधारित पाठ्यक्रम का भुगतान करना होगा। इसी को लेकर
छात्र संगठनों की ओर से इसका विऱोध भी शुरू किया जाने लगा है। 11 जून को कई छात्र संगठनों आईसा, एआईएसएफ, एसएफआई, बीएससीईएम, कलेक्टिव, डीएसयू, केवाईएस, पीडीएसएफ, पिंजरातोड़, पछास आदि ने संयुक्त रूप से मिलकर फीस असमानता जैसे कई समस्याओं को लेकर डीन को ज्ञापन सौंपा।
डीन राजीव गुप्ता ने फीस असमानता के बारे में कहा कि ईडब्ल्यूएस और ओबीसी आरक्षण का क्राइटेरिया अलग है। राजीव गुप्ता ने कहा कि ईडब्ल्यूएस में आय पूरे परिवार की देखी जाती है। जबकि ओबीसी में केवल एक व्यक्ति की देखी जाती है। इसलिए ईडब्ल्यूएस वर्ग की फीस कम रखी गई है। डीन के इस बयान के बाद विभिन्न छात्र संगठन के बैनर तले छात्र ऑफिस के बाहर धरने पर बैठ गए।
एसएफआई दिल्ली के उपाध्यक्ष सुमित ने फोरम4 से बात करते हुए यह सवाल उठाया कि “दोनों श्रेणियों के लिए आरक्षण के आर्थिक मानदंड एक ही हैं, फिर इन दोनों के लिए पंजीकरण शुल्क में इतना अंतर क्यों? जबकि एक बात सत्य है कि ईडब्ल्यूएस से आने वाला छात्र केवल आर्थिक रूप से कमजोर है जबकि ओबीसी वर्ग के छात्र आर्थिक के साथ ही सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं, ऐसे में ओबीसी छात्रों से ईडब्ल्यूएस के छात्रों से दोगुना शुल्क लेना पूरी तरह से गलत है।”
उन्होंने आगे कहा कि “हम इसका विरोध करते हैं हमने प्रशासन से अपील की है कि शुल्क मानदंड में भेदभाव को दूर करके छात्र समुदाय के हित में असमानता को तुरंत सही करें और ईडब्ल्यूएस कोटा के लिए आवेदन करने वाले छात्रों की तुलना में ओबीसी समुदाय से संबंधित छात्रों से लिए गए अतिरिक्त शुल्क को रिफंड करें।”
एसएफआई (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) ने इस तरह से इसके पहले भी डीयू प्रवेश पंजीकरण शुल्क में असमानता को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन ऑफ स्टूडेंट्स वेलफेयर को एक ज्ञापन सौंपा। एसएफआई की ओर से सौंपे ज्ञापन में कहा गया कि दोनों के लिए शुल्क में भेदभाव रखने का मानदंड मनमाना है और इसलिए अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि दोनों श्रेणियों के लिए आरक्षण के आर्थिक मानदंड समान हैं। एसएफआई के उपाध्यक्ष सुमित का कहना है कि हमने प्रशासन से अपील की है कि ईडब्ल्यूएस कोटे से आवेदन करने वाले छात्रों और ओबीसी समुदाय से संबंधित छात्रों के बीच फीस को लेकर इस तरह का भारी अंतर सही नहीं है। इसे समान करते हुए जिन छात्रों से अतिरिक्त शुल्क लिए गए हैं उन्हें वापिस किए जाएं।
छात्र संगठनों की ये हैं प्रमुख मांगें
छात्र संगठनों ने डीन के सामने ज्ञापन के माध्यम से निम्न मांगें रखीं-
ओबीसी छात्रों की पंजीकरण फीस 750 रुपये से घटाकर 300 किया जाए और बढ़ी हुई फीस जिन्होंने जमा कर दी, उन्हें वापिस किया जाए।
अनारक्षित छात्रों की पंजाकरण फीस को 750 से घटाकर 500 किया जाए।
पंजाकरण संबंधित तकनीकी समस्याओं का जल्द समाधान किया जाए।
पंजीकरण करने की प्रक्रिया खत्म होने के बाद आवेदकों को 2 दिन का अतिरिक्त समय फॉर्म में सुधार करने के लिए दिया जाए।
प्रवेश परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी हों।
परीक्षा केंद्रों पर छात्रों को अन्य जरूरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएं।
रामजस और भारती कॉलेज में बढ़ी हुई फीस पर रोक लगे।
हाई कोर्ट तक मामला क्यों पहुंचा?
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में दाखिले की प्रक्रिया 30 जून से शुरू हुई है। कुछ कोर्सेज में योग्यता के नियम अचानक बदल देने से कई विद्यार्थियों को परेशानी हो रही है, क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं है। यह मामला हाई कोर्ट पहुंच गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने डीयू में चल रही प्रवेश प्रक्रिया में लागू नए योग्यता नियमों पर विश्वविद्यालय और केंद्र सरकार का पक्ष मांगा है। सोमवार को दाखिले की नई नीति को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय और केंद्र से जवाब मांगा है।
हाई कोर्ट ने पूछा है कि दाखिले के लिए पंजीकरण शुरू होने के एक दिन पहले नियमों में बदलाव कैसे कर दिया गया?
बता दें कि एक वकील चरणपाल सिंह बागड़ी ने आखिरी समय में योग्यता के नियम बदलने वाले विश्वविद्यालय के फैसले को चुनौती दी है। चरणपाल सिंह ने डीयू के इस कदम को प्राकृतिक न्याय के सिद्दांत का उल्लंघन बताया है।
याचिका में कहा गया है कि पिछले साल तक अगर किसी छात्र के गणित में 50 फीसद अंक आते थे तो वह अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) में आवेदन कर सकता था, लेकिन इस साल बेस्ट ऑफ फोर के लिए गणित को अनिवार्य कर दिया गया है। इसका मतलब है कि गणित शीर्ष चार विषयों में से एक होगा और इनके कुल जोड़ को दाखिले का आधार माना जाएगा। इसी तरह से बीकॉम (ऑनर्स) में किसी छात्र के लिए गणित/बिजनेस मैथमैटिक्स के कुल जोड़ 45 प्रतिशत अंक के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। इस साल इस मानदंड में संशोधन किया गया है। नई शर्तों के मुताबिक, छात्र को गणित/बिजनेस मैथमैटिक्स में 50 फीसद या अधिक अंक के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए और कुल जोड़ अंक 60 प्रतिशत होना चाहिए। याचिका में नए मानदंड को रद करने और छात्रों को पूर्व के मानदंडों के अनुरूप ही आवेदन की इजाजत देने की मांग की गई है।
इस याचिका में डीयू के इस नए नियम को खारिज कर पुराने योग्यता नियमों के अनुसार विद्यार्थियों को आवेदन करने की अनुमति देने की अपील की गई है। बता दें कि ईडब्ल्यूएस श्रेणी से संबंधित छात्र के लिए आवेदन करने के लिए पंजीकरण शुल्क 300 है, जबकि ओबीसी से संबंधित छात्रों के लिए 750 प्रति प्रवेश-आधारित पाठ्यक्रम का भुगतान करना होगा।
बता दें कि डीयू ने इस शैक्षणिक सत्र में दाखिले के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया 30 मई 2019 से शुरू की है। पंजीकरण की अंतिम तिथि 14 जून 2019 है।
कोर्ट ने मानव संसाधन विभाग की ओर से वकील ब्रजेश कुमार और दिल्ली विश्वविद्यालय को 14 जून 2019 तक अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। अगली सुनवाई 14 जून को होगी।
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