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चौधरी चरण सिंह किसानों के मसीहा क्यों कहे जाते थे?

तस्वीर-गूगल साभार

देश में हालात बेहद खराब है। किसान और मजदूर सब इस समय बेबस हैं। कभी आंधी के प्रकोप से तो कभी ओला बरस पड़ते हैं और अब टिड्डी दल ने आतंक मचाया हुआ है। एक समय ऐसा था जब ये कहा जाता था कि भारत कृषि प्रधान देश है। ऐसे ही एक प्रधानमंत्री हैं जो किसानों के हितों की बात किया करते थे। किसानों के मसीहा के रहे हैं। आज देश के 5 वें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 33वीं पुण्यतिथि है। 23 दिसंबर 1902 को जन्में चरण सिंह की 29 मई 1987 में मृत्यु हो गई।

बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में चौधरी चरण एक जाट परिवार में जन्में थे। तभी से उनके अंदर किसानों और गांव के गरीब लोगों के शोषण के खिलाफ संघर्ष की भावना थी। वे शुरू से ही क्रांतिकारी रहे यहां तक कि इंदिरा गांधी के खिलाफ भी उन्होंने आवाज उठाई।

चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन काफी दलबदल वाला रहा। उन्होंने पार्टी की विचारधारा से अलग होकर काम किया। उन्होंने हमेशा से ही किसानों के हितों को आगे रखा। उन्होंने इससे पहले अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ आवाज बुलंद की। हालांकि वे भारत के प्रधानमंत्री बने पर उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने भारत के गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के तौर पर भी कार्य किया था। वे दो बार उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे और उसके पूर्व दूसरे मंत्रालयों का कार्यभार भी संभाला था। वे महज 6 महीने के लिए ही देश के प्रधानमंत्री रह पाए थे।

आंदोलन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक का सफर

महात्मा गांधी द्वारा 1930 में नमक कानून को लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत हुई थी। चौधरी चरण सिंह उस समय गाजियाबाद में रहते थे। वहां समुद्र नहीं था। लेकिन वो इस आंदोलन का हिस्सा बनना चाहते था तो उन्होंने हिंडन नदी के किनारे पहुंचकर नमक बनाया। इसके बाद उन्हें 6 महीने की जेल हो गई। उसके बाद भी वह वहीं नहीं रुके। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया।

एक किस्सा है उनका। ये उस समय की बात है जब कांग्रेस को छोड़कर एक नई पार्टी बनाने की शुरुआत हो रही थी। नेहरू की सत्ता को कांग्रेस के लोग ही चुनौती दे रहे थे। उस समय चंद्रभानु गुप्ता का कांग्रेस में काफी दबदबा कायम हो गया था। यूपी में उनका बहुत नाम था। चंद्रभानु गुप्ता का झुकाव आर्यसमाज की तरफ ज्यादा था। आर्य समाज में मूर्ति पूजा, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वास, छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया गया। सभी को एक समान पढ़ने का अधिकारों की बात की गई। चंद्रभानु गुप्ता इससे जुड़ गये और पूरे जीवन इन्हीं बातों को लेकर चलते रहे। चंद्रभानु गुप्ता तीन बार उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे थे। 1960 से 1963 तक तो रहे ही। उन समय लगातार पद को लेकर सियासी उठापठक चल रही थी। चंद्रभानु गुप्ता पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए दवाब बनाया गया। उन्होंने पद छोड़ दिया। जब उन्होंने 1967 में चुनाव लड़ा तो वे फिर से मुख्यमंत्री बन गये। लेकिन इस बार सिर्फ 19 दिनों के लिए वो मुख्यमंत्री रहे। यही वो समय था जब चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी बना ली थी। चौधरी चरण सिंह के पार्टी छोड़ने के पीछे राम मनोहर लोहिया और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आता है।

चरण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री तो बने लेकिन सरकार गिर गई। चंद्रभानु गुप्ता को 1969 में जल्दबाजी में फिर मुख्यमंत्री बनाया गया। करीब एक साल तक इस पद पर बने रहे। इसके बाद तो कांग्रेस पूरी तरह से टूट चुकी थी क्योंकि कांग्रेस की कमान इंदिरा गांधी ने संभाल ली थी और ये बात काफी लोगों को रास नहीं आई।

इंदिरा का दौर

चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के आपातकाल के बाद और दोबारा इंदिरा की सरकार बनने के बीच प्रधानमंत्री बने। 1966 में इंदिरा गांधी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 1975 में जब इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल लगा दिया तो आवाज उठाने वाले कई विपक्षी नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया। चरण सिंह को भी जेल में डाल दिया गया। 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी हार गई और पहली बार विपक्षी दल ने सरकार बनाई। मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और चरण सिंह उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पद का कार्यभार संभाला। पार्टी की अंदरूनी लड़ाई में सरकार गिर गई।

यही वो मौका था जब चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री तो बन गये लेकिन, बहुमत साबित नहीं कर पाए और इंदिरा ने 19 अगस्त को समर्थन वापस ले लिया। सरकार गिर गई। 16 जनवरी 1980 तक वे प्रधानमंत्री पद पर रहे। चौधरी चरण सिंह ने बदले की भावना से इंदिरा गांधी को भी गिरफ़्तार करा दिया था। हालांकि वो तुरंत ही छूट गईं।

किसानों के मसीहा

चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा इसलिए कहा जाता है क्योकि उन्होंने किसानों के लिए सारा जीवन संघर्ष किया। 1979 वित्त मंत्री रहते हुए खाद और डीजल के दामों को कंट्रोल किया। खेती की मशीनों पर टैक्स कम किया। नाबार्ड की स्थापना उसी वक्त किसानों को ध्यान में रखते हुए की गई थी।

यूपी में “जो जमीन को जोते -बोये वही जमीन का मालिक है”- का क्रियान्यवन तौधरी चरण सिंह ने किया। ऐसा कहा जाता है कि किसानों के हितों के बारे में सोचने वाले पहले प्रधानमंत्री थे। आज किसानों की आर्थिक स्थिति खराब है कोरोना वायरस से बचने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया। लॉकडाउन ने सब्जी उत्पादन करने के वाले किसानों की कमर तोड़ दी है। स्थिति यह है कि किसानों को उनके लागत मूल्य का एक चौथाई दाम भी नहीं मिल रहा है। थोक बाजार में कृषि उत्पादों के दाम 30-40 फीसदी गिर गए हैं। हालांकि मोदी सरकार ने लॉकडाउन के समय कृषि एवं किसानों के लिए 1.76 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है। हालांकि किसानों की समस्याओं पर इस महामारी में कितना काम हो पाएगा। यह समय बताएगा। क्योंकि सरकारी बजट का फायदा अभी तक सही रूप में किसानों और सब्जी बोने वाले लोगों तक नहीं पहंच पा रहा है। लागत के अनुसार उन्हें पैसा भी नहीं मिल पा रहा। इस समय सरकार को किसानों का हितैषी बनकर उनके लिए काम करना और जरूरी है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में, जीडीपी में 17 फीसद कृषि का योगदान है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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