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कॉलेज लाइफ

एडिमशन के वक्त मिली थी, कहां पता था कि साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले हैं

विवेक आनंद सिंह रात के 2 बजे थे। अचानक मोबाइल की घण्टी बजी….स्क्रीन पर नाम के साथ लाइट फ़्लैश हुई, लेकिन नाम देखते ही दिल मे एक घुप अँधेरा भी छा गया। न चाहते हुए…


याद आता है कैम्पस

विकास पोरवाल राहुल भागते दौड़ते किसी तरह लास्ट मेट्रो में घुसा और फिर बिना गिने कई लम्बी लम्बी सांसें फेफड़ों में खींच लीं, जैसे कि मेट्रो के साथ-साथ हवा का हर कतरा भी आखिरी हो…