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खुलकर हँसना मुश्किल है

तस्वीरः गूगल साभार

खुलकर हँसना मुश्किल है

दिल भी किसी का दुखता है

हम तो हँसते रहते हैं पर

ग़म किसी का जी उठता है

 

कहते-कहते कभी जब हम अचानक से चुप जाते हैं

चलते-चलते राहों में जब सोचके कुछ रुक जाते हैं

मानों हम कुछ भूल रहे हों बेचैनी में झूल रहे हों

कुछ तनहा-तनहा लगता है

दिल भी किसी का दुखता है

 

चलते-चलते राहों में जब घड़ी शाम की आती है

शोर-शराबा आवाज़ें सारी इक दम से रुक जाती हैं

रोते-रोते एक मासूम-सा बच्चा भी चुप जाता है

टंगा दिनभर आसमान में सूरज भी थक जाता है

पंछी चुनकर दाना वापस घोंसले में आता है

मानों जैसे संसार ही सारा एक दम से रुक जाता है

सब धुंधला-धुंधला लगता है

तब दिल में एक आहट होती है

कुछ धीरे-धीरे चुभता है

दिल भी किसी का दुखता है

 

चाँद अकेला में अकेला दोनों में कुछ समता है

वो मुझे ताके में उसे ताकूँ रातभर ये चलता है

शायद मैं फिर सो जाता हूँ यादों में खो जाता हूँ

पर चाँद अकेला जगता है

जाने किस को तकता है

दिल भी किसी का दुखता है

 

दिल टूटा तो पता चला ये दिल भी शीशे का होता है

मतलब के सब यार हैं यारों न कोई किसी का होता है

यूँ तो हम अनजान नहीं अब पर किसी की जान नहीं अब

जब उनको याद कर लेते हैं

सब फीका-फीका लगता है

दिल भी किसी का दुखता है

 

बात चली है तो कह देता हूँ कौन सा पैसा लगता है

पैसा ही अब महँगा है अब बाकी सबकुछ सस्ता है

रिश्तों का कोई मोल नहीं है ‘रिज़वाँ’ तेरा तोल नहीं हैं

चुप रहता है तो बेहतर है सबसे

पर जब-जब सच कह देता है

कुछ कड़वा-कड़वा लगता है

दिल भी किसी का दुखता है

 

हँसना इतना भी दुश्वार नहीं है

क्या तुमको खुद से प्यार नहीं है?

ऐसे हंसो जो सबको हँसाए

ग़म किसी के हर ले जाए

न सिर्फ़ चेहरा दिल को हंसाए

रोने में क्या रखा है बस

आँखों का झरना बहता है

दिल भी किसी का दुखता है

 

खुलकर हँसना मुश्किल है

दिल भी किसी का दुखता है

हम तो हँसते रहते हैं पर

ग़म किसी का जी उठता है

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

रिज़वान रिज़
रिजवान दिल्ली के डॉ. भीमराव आंबेडकर कॉलेज में भूगोल के छात्र हैं।

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