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यूजीसी ने डीयू में नान टीचिंग पदों को भऱने के लिए 31 मार्च तक का एक्शटेंशन दिया, कॉलेजों ने आज तक पदों को भरने के लिए नहीं निकाले विज्ञापन

यूजीसी ने दिल्ली विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में नॉन टीचिंग पदों को भरने के लिए 31 मार्च 2019 तक का एक्सटेंशन दिया। कॉलेजों ने आज तक पदों को भरने के लिए विज्ञापन नहीं निकाले । दिल्ली सरकार के 28 कॉलेजों में ओबीसी कोटे के सबसे ज्यादा पद है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की अवर सचिव सुषमा राठौर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को 5 महीने पहले (13 जून, 2018)  एक पत्र लिखकर कहा था कि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) तथा संबद्ध कॉलेजों में नॉन टीचिंग में ओबीसी कर्मचारियों के पदों के सेवा विस्तार योजना के अंतर्गत उनका विस्तार एक और वर्ष 31मार्च 2019  तक कर दिया जाए लेकिन, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन व कॉलेजों ने 5 महीने से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी आज तक ओबीसी कोटे के नॉन टीचिंग पदों का विज्ञापन नहीं निकाला है। डीयू प्रशासन और कॉलेजों द्वारा ओबीसी कोटे के पदों को ना निकाले जाने से ओबीसी कर्मचारियों में गहरा रोष व्याप्त है।

बता दें कि ओबीसी कर्मचारियों के नॉन टीचिंग पदों को कॉलेजों द्वारा 31 मार्च 2018 तक उन्हें भरा जाना था लेकिन, अधिकांश कॉलेजों में इन पदों के विज्ञापन ही नहीं निकाले गए थे। एससी, एसटी, ओबीसी कर्मचारियों के संगठनों ने यूजीसी को पत्र लिखा था जिस पर यूजीसी ने इन पदों को भरने के लिए एक वर्ष का एक्सटेंशन देते हुए भरने का निर्देश दिया था।

दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध लगभग 79 कॉलेज है। इसमें दिल्ली सरकार के 28 कॉलेज हैं। इन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी नहीं थी जिससे कॉलेजों के प्राचार्यों ने अपने यहां ओबीसी पदों को नहीं भरा लेकिन, कुछ ने गवर्निंग बॉडी की चिंता किए बगैर नॉन टीचिंग पदों पर नियुक्तियां कर ली। जबकि इन कॉलेजों में ट्रंकेटिड गवर्निंग बॉडी थी। बावजूद इसके इन कॉलेजों ने आनन फानन में लिखित परीक्षा कर उन्हें भर लिया गया। यह पूरी तरह से असंवैधानिक था लेकिन, गवर्निंग बॉडी न होने का लाभ इन कॉलेजों ने उठाया और मनमर्जी से नियुक्तियां की।

दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने बताया है कि यूजीसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को लिखे पत्र में विभागों और कॉलेजों को नॉन टीचिंग में ओबीसी के पदों को भरने के लिए कॉलेजों को 31मार्च 2019 तक भरने के निर्देश दिए हुए हैं। कॉलेजों में आए पत्र को 5 महीने से अधिक हो चुके हैं लेकिन, ओबीसी कोटे के नॉन टीचिंग पदों को भरने के लिए अभी तक दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई तत्परता नहीं दिखाई। इसी तरह से कॉलेजों ने भी अपने यहां ओबीसी कोटे के पदों को भरने के लिए किसी तरह के विज्ञापन ही नहीं निकाले जबकि ये पद पिछले एक दशक से कॉलेजों ने नहीं भरे हैं।

प्रो. सुमन ने बताया है कि दिल्ली सरकार और दिल्ली विश्वविद्यालय की आपसी लड़ाई के बीच एडहॉक टीचर्स की तरह कर्मचारियों का बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। दिल्ली सरकार के 28 कॉलेजों में जुलाई/अगस्त  से गवर्निंग बॉडी होने के बावजूद प्राचार्यों ने अपने यहां ओबीसी कोटे के पदों को भरने के लिए गवर्निंग बॉडी की बैठक भी नहीं बुलाई। दिल्ली सरकार के कॉलेजों में स्थाय़ी प्राचार्य न होने से एडहॉक शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति और पदोन्नति के साथ-साथ नॉन टीचिंग के ओबीसी पदों को नहीं भरा जा रहा है। जबकि कुछ कॉलेजों ने अपने यहां ओबीसी कोटे की आड़ में सामान्य वर्गो के कर्मचारियों की नियुक्ति कर ली तो ऐसी स्थिति में वे ओबीसी पदों को भरने के विज्ञापन क्यों नहीं दे रहे हैं? ऐसा लगता है कि वे पदों के एक्सटेंशन को फिर समाप्त करना चाहते हैं। उनका कहना है कि कॉलेजों के प्राचार्यों की मंशा है कि ओबीसी कोटे की सीटें ना भरी जाए और बाद में इन्हें सामान्य पदों में परिवर्तित किया जा सके।

प्रो.सुमन ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में लगभग 750 कर्मचारियों को अनुबंध के आधार पर रखा गया है जो पिछले 15 -16 साल से कार्य कर रहे हैं लेकिन इन्हें आज तक स्थायी नहीं किया गया है और न ही इन्हें समान काम, समान वेतन ही दिया जा रहा है। साथ ही इन कर्मचारियों को न ही किसी प्रकार की मेडिकल जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। उन्होंने बताया है कि एक जेएसीटी को सातवें वेतन आयोग के तहत 29,500 रुपये मिलने चाहिए लेकिन, उन्हें 18,960 रुपये दिए जा रहे हैं, जबकि यूजीसी से इनकी पूरी ग्रांट आती है। यह आर्थिक और सामाजिक शोषण नहीं तो क्या है? इसी तरह से डीयू एडमिनिस्ट्रेशन में कॉन्ट्रेक्ट बेसिस पर लंबे समय से कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। वे अपने स्थायी होने की बाट जोह रहे हैं कि कब स्थायी होंगे?

प्रो. सुमन ने बताया है कि इसी तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में ग्रुप-ए के लिए स्वीकृत पदों की संख्या 205 है। इसमें 99 पद भरे गए, 106 खाली, सामान्य की 72, ओबीसी की 07, एससी की 16, एसटी की 04, कुल-99 पद है। ग्रुप बी के लिए स्वीकृत पद 590, भरे गए पदों की संख्या 362, खाली पदों की संख्या 228 है। इनमें सामान्य की 289, ओबीसी की 03 पदों, एससी की 51, एसटी की 19 और कुल 362 पद हैं। ग्रुप सी व डी के लिए स्वीकृत पदों की संख्या 2485 हैं। कुल 1051 पद हैं।

1434 खाली पदों में से सामान्य की 677, ओबीसी की 128, एससी की 227, एसटी की 19, कुल 1051 है।

इस तरह से 3280 स्वीकृत पदों में से 1512 भऱे गए। 1768 खाली पदों में से सामान्य पदों की 1038, ओबीसी पदों की 138, एससी की 294, एसटी की 42 औऱ कुल पद 1512 खाली पड़े हुए हैं, जिन्हें लंबे समय से भरा नहीं गया है।

प्रो. सुमन ने आगे यह भी बताया है पहले कॉलेजों के प्राचार्यों द्वारा यह कहा जाता था कि पूर्ण गवर्निंग बॉडी नहीं है लेकिन, पिछले 5 माह से इन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी कार्य कर रही है।

ओबीसी कोटे के पदों को भरने के लिए किसी तरह की कार्यवाही नहीं करना यह दर्शाता है कि पिछड़े वर्गों के प्रति डीयू प्रशासन गम्भीर नहीं है।

प्रो. सुमन ने ओबीसी व एससी, एसटी कोटे में नॉन टीचिंग पदों को भरने के लिए यूजीसी द्वारा भेजे गए डीयू के रजिस्ट्रार को पत्र, जिसमें 31 मार्च 2019 तक भरने के निर्देश दिए हैं। लेकिन, डीयू प्रशासन व कॉलेजों ने इस दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है।

उन्होंने मांग की है कि वे ओबीसी, एससी, एसटी के गैर शैक्षिक पदों को भरने के लिए प्राचार्य को तुरंत निर्देश जारी किया जाए और रजिस्ट्रार की ओर से इन पदों को भरने के लिए सर्कुलर जारी किया जाये जिसमें, रोस्टर को पास कराकर कॉलेज जल्द से जल्द इन पदों का विज्ञापन निकाले। साथ ही इन्हें 31 मार्च 2019 से पहले ओबीसी कोटे के पदों को भरा जाए।

प्रो. सुमन का यह भी कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय यूजीसी के पत्र के हवाले से दिल्ली सरकार के 28 कॉलेजों के प्राचार्यों को कह सकते हैं कि उनके यहां अब गवर्निंग बॉडी बन चुकी है। ओबीसी कोटे के इन पदों को भरने के लिए यूजीसी ने 31 मार्च 18 की तिथि को बढ़ाकर 31 मार्च 2019 तक का एक्सटेंशन दिया है। अब डीयू व कॉलेजों का दायित्व बनता है कि वह जल्द से जल्द ओबीसी कर्मचारियों के पदों को भरवाये ताकि सामाजिक न्याय का सिद्धान्त सार्थक सिद्ध हो सके क्योंकि अब वह बहाना भी नहीं बना सकते हैं कि उनके कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी नहीं है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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