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जेल में प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र बनारस, इमरजेंसी की आहट तो नहीं?

तस्वीर- गूगल साभार

कोई कानून नहीं, कोई पुलिस की जिम्मेदारी नहीं, कोई संविधान नहीं- आपातकाल में सब रद हो जाता है। देश का कुछ ऐसा ही हाल है, पुलिस आम लोगों के साथ एक कानून की आड़ में हजारों कानून तोड़ते हुए नजर आ रही है। यहां तक कि अखबार में प्रदर्शन करने वालों को चिह्नित करने के लिए विज्ञापन दिया जा रहा है। और उनको पकड़वाने में सहयोग करने के लिए ईनाम भी दिए जा रहे हैं। ऐसा लगता है अपने हक की मांग करने वाले आज अपने जिले में जिला बदर और देश में आंतकवाद घोषित हो गए हो।

देशभर में हजारों लोग एनआरसी, सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वाले ऐसे हैं जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इसमें छात्र भी शामिल हैं। केवल शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने पर ही पुलिस उनके साथ आंतकवादी, अपराधी की तरह से पेश आ रही है और बर्बरतापूर्ण कदम उठा रही है। इसके साक्ष्य सोशल मीडिया पर घूम रहे तमाम वीडियोज से मिल ही जाएंगे। इतना ही नहीं इसके बाद उनके खिलाफ गैरजमानती धाराओं में केस दर्ज किया जा रहा है। इसी क्रम में वाराणसी में पुलिस ने 19 दिसंबर को सीएबी और एनआरसी का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे 69 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। पुलिस ने थाना चेतगंज में भारतीय दंड संहिता की धारा 147/148/149/188/332/353/341 व 7 सीएलए एक्ट में इन 69 नामजद व्यक्तियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया है। गिरफ्तार होने वालों में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र, सिविल सोसाइटी के लोग, शिक्षक, महिलाएं आदि शामिल हैं। पुलिस ने दो महिलाओं की गिरफ्तारी की है।

गिरफ्तार होने वालों में दो लोग ऐसे हैं जिनका एक साल का बच्चा है और पुलिस ने पति और पत्नी दोनों को जेल भेज दिया है। रवि शेखर और एकता शेखर पति-पत्नी हैं। इनका एक साल का बच्चा है। ये एक वायु प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाते हैं। ये लोग भी सीएबी और एनआरसी के खिलाफ होने वाले शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हिस्सा लेने आए थे। क्या ये अपने लिए सड़कों पर आए थे? क्या इन्हें सिर्फ अपने बच्चे के लिए प्रेम से भरा समाज चाहिए? नहीं, इनको आने वाली पीढ़ियों के लिए मुहब्बत से भरा पूरा समाज चाहिए था। वो मुहब्बत के सड़कों पर आए थे। वो अपने बच्चे से पिछले तीन दिनों से मिले नहीं हैं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लगभग बीस बच्चे हैं तथा काशी विद्यापीठ के छात्र भी हैं जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल में रखा है। उनमें से कुछ छात्रों की परीक्षाएं छूट रही हैं। परीक्षा न दे पाने की स्थिति में उनका ईयर बैक लगेगा और उनका एक साल भी खराब हो सकता है। कुछ बच्चों को आज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में डिग्री लेनी थी। उनको पुलिस ने बंद करके रखा है। उन्होंने आज के लिए क्या-क्या सोचा होगा? दीक्षांत ऐसा समारोह होता है जिसमें बहुत सारे दोस्त एक दूसरे से आखिरी बार मिल रहे होते हैं। ऐसे में इनके दोस्त इनका इंतजार कर रहे होंगे, लेकिन ये बेचारे जेल में बंद होंगे।

बीएचयू के इन्हीं छात्रों में से एक छात्र दिवाकर हैं जो बीएचयू आईआईटी में रिसर्च स्कॉलर हैं। दिवाकर की पत्नी कई महीनों से बीमार हैं। दिवाकर पत्नी की अच्छी तरह से देखभाल करके एक पति होने का दायित्व निभा रहे हैं। दिवाकर का एक महीने का बच्चा है। वो उसकी देखभाल भी कर रहे हैं और एक पिता का धर्म भी निभा रहे हैं। पढ़ाई करके एक छात्र होने का तथा सड़कों पर उतर कर एक जागरूक नागरिक होने का भी दायित्व निभा रहे हैं।

पुलिस ने जिन धाराओं में इनको गिरफ्तार किया है उनमें से बहुत सी धाराएं ऐसी हैं जो गैर जमानती हैं। पुलिस ने दंगा फैलाने, हथियार के साथ दंगा फैलाने, गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होना, आदेश की अवमानना करना, जान-बूझ कर अधिकारियों को नुकसान पहुंचाना, किसी अधिकारी को जान-बूझ कर उसकी ड्यूटी छोड़ने के लिए मजबूर करना, गलत तरीके से रोकना जैसे संगीन आरोप लगाकर इनको गिरफ्तार किया है। गैर जमानती धाराओं में से 332- जान-बूझ कर अधिकारियों को नुकसान पहुंचाना तथा 353- अधिकारी को ड्यूटी छोड़ने के लिए मजबूर करना जैसी धाराएं हैं। साथ ही पुलिस ने 20 दिसंबर के अखबार में एक फोटो सहित नोटिस देकर ये कहा है कि इस तस्वीर में दिखने वाले लोग जहाँ भी दिखे लोग तुरंत पुलिस को तुरंत सूचित करें।

उधर जिनके खिलाफ पुलिस ने अखबारों में तस्वीर जारी करके नोटिस निकाल हैं। उनमें से दो छात्रों का कहना है कि ये सीधे केंद्र और राज्य सरकारों के इशारे पर हो रहा है। आज पूरे देश में जो भी सीएबी या एनआरसी का विरोध कर रहे हैं, उन्हें देशद्रोही साबित करने का प्रयास किया जा रहा है। जो लोग सड़कों पर सरकार का विरोध कर रहे हैं उन्हें जेल में डाला जा रहा है। जब हम सब शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे तो पुलिस ने हिरासत में लिया और पुलिस लाइन ले गई। पुलिस की तरफ से शुरू में ये कहा जाता रहा कि शाम तक इन लोगों को छोड़ दिया जाएगा। शाम को पता चला कि पुलिस ने धारा 151 में इनको जेल भेज दिया है और देर रात पता चला कि इनपर संगीन अपराधों के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है। इस एफआईआर की कापी हमें अब तक नहीं मिली है। इस दौरान इन दोनों ने बताया कि ये लोग अपने साथियों की रिहाई का पुलिस लाइन के बाहर बैठकर इंतजार कर रहे थे। आज सुबह अखबार के माध्यम से इन्हें पता चला कि इनके ऊपर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है और इनकी तलाश कर रही है। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) जैसे संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज होने की आशंका जताई है। 

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि पुलिस प्रशासन ने झूठे आरोपों में इन छात्रों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इससे पहले भी वर्ष 2016 में पुलिस ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में चौबीस घंटे लाइब्रेरी की मांग को लेकर आंदोलनरत छात्रों पर ऐसी ही गैर जमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज करके उन्हें परेशान किया था। उस समय उच्चतम न्यायालय ने इन छात्रों का निलंबन तथा साथ ही साथ इनके खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज किए गए सभी मुकदमों को रद्द कर दिया था।

इन सारी बातों को देखते हुए अब सवाल ये है कि क्या ये प्रशासन छात्रों को केवल परेशान कर झूठे मुकदमों में फंसाना चाहता है? साथ ही साथ यह भी सवाल है कि है कि है कि ये छात्र, शिक्षक, सिविल सोसाइटी के लोग कब से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा कब से होने लगा? कब से देश के छात्र, शिक्षक इस देश में हिंसा भड़काने लगे? आज जब पूरे देश में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया है तो क्या ये हजारों लोग देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं? क्या ये हजारों लोग देशद्रोही हैं? अगर ये देशद्रोही हैं तो सवाल फिर ये उठता है कि देशभक्त कौन है? क्या अब सरकार ये तय करेगी कि कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही है?

नोटः किसी भी स्थिति में इस लेख से सहमत असहमत की स्थिति में फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा, इसमें लेखक के स्वतंत्र और निजी विचार हो सकते हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

आकाश पांडेय
भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता के छात्र व बीएचयू के पूर्व छात्र

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