SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

हिंसा की आंच से क्या कमजोर होगा आंदोलन?

किसान आंदोलन के 62 वें दिन यानी 26 जनवरी को किसान परेड होने वाली थी, हुई भी। लेकिन दिल्ली ने जगह जगह हिंसा हुई, जिसमें किसान और जवान दोनों को नुकसान पहुंचा है दोनों घायल हुए। दो किसानों की मौत हो गई और कई किसान और पुलिस वाले घायल हो गये। किसान परेड की जिम्मेदारी किसान नेताओं के ऊपर थी। वो एक बहुत बड़ी भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे, इसलिए 37 किसान नेताओं पर एफआईआर दर्ज करने की बात सामने आई, जिसमें राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव, सतनाम सिंह पन्नू जैसे तमाम नेता शामिल हैं।

इसके साथ ही किसानों में से तमाम पर एफआईआर पुलिस की ओर से दर्ज की गई। इसके बाद दो किसान संगठनों ने खुद को इस आंदेलन से अलग कर लिया है। इस हिंसा के बाद किसान आंदोलन थोड़ा कमजोर जरूर हुआ है पर किसान आंदोलन जारी रहेगा। ऐसा गाजीपुर बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर पर बैठे लोगों के जुनून से पता लगता है। किसान नेताओं का कहना है कि आसामाजिक तत्वों ने इस आंदोलन में हिंसा की है। इस आंदोलन को बदनाम करने की साजिश सरकार की ओर की गई। 26 जनवरी को इंटरनेट सेवाएं भी रात 12 बजे तक के लिए बंद कर दी गई थी फिर भी रात तक सारी स्थिति साफ साफ नजर आने लगी थी।

दीप सिद्धू ने की थी हिंसा भड़काने की कोशिश
सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल होने लगी। इन तस्वीरों में दीप सिद्धू नाम के व्यक्ति जिसने सनी देओल, अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी तक के साथ फोटो खिंचवाई हुई थी किसान नेताओं ने दावा किया कि दीप सिद्धू 2019 के चुनाव में सनी देओल के चुनाव प्रभारी थे और दीप सिद्धू ने ही लाल किले पर जाकर निशान साहब का झंडा फहराया था। वहां लोगों को भड़काने की कोशिश की। किसान नेताओं ने ये भी कहा कि दीप सिद्धू का बायकॉट किया जाएगा। इस तरह के लोगों से हमारा कोई संबंध नहीं है। जब तस्वीरें वायरल होने लगी तब सनी देओल ने सफाई दी कि दीप सिद्धू के साथ उनका कोई संबंध नहीं है।

किसान नेताओं की ओर से भी दी गई सफाई
26 जनवरी को हुए हिंसा पर किसान नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा गया कि किसान परेड एतिहासिक परेड रहा। किसान आंदोलन में सरकार ने साजिश करने की कोशिश की। इस आंदोलन को तोड़ने की कोशिश की। उसके बावजूद किसान परेड शांतिपूर्ण हुई। उन्होंने ये भी कहा कि हमारे लिए जो रूट तय किये गए थे वहां बाधाएं खड़ी की गई जगह जगह बैरीगेटिंग की गई। लोगों को रास्ते से भटकाया गया। लोगों को दिल्ली के रास्ते नहीं पता था जो रास्ते पुलिस ने खोले किसान ट्रेक्टर लेकर उसी रास्ते पर आगे चलते चले गए। योगेंद्र यादव ने कहा कि जो भी हुआ है वो सब सरकार ने पहले से प्लान किया हुआ था।

लाल किले तक किसान कैसे पहुंचे?
इस पर किसान नेताओं ने कहा कि किसानों को दिल्ली के रास्ते नहीं पता थे और पूरी तरह से पुलिस प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार है। राकेश टिकैट ने कहा कि पुलिस के होते हुए कैसे कोई लाल किले तक पहुंच सकता है। रास्ता तो पुलिस ने ही दिया होगा। उन्होने आगे कहा कि ये सब किसानों को बदनाम करने की साजिश है। सरकार आंदोलन को खत्म करना चाहती है। एफआईआर से हमें कोई दिक्कत नहीं है। जब आंदोलन होते हैं तो ये सब होता ही है बाकी आंदोलन पूर्ण रूप से जारी रहेगा।

योगेंद्र यादव ने कहा कि लाल किले पर जाकर बेअदबी करना और तिरंगे के अलावा किसी भी और झंडे को फहराने की कोशिश करना इस देश के साथ बेअदबी है। ये देश के साथ कभी भी बर्दाश नहीं करेंगे, स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने पंजाब मजदूर संघर्ष समिति औऱ दीप सिधु को इसका जिम्मेदार ठहराया औऱ इनके सामाजिक बहिष्कार की बात की है।

किसान आंदोलन उग्र कैसे हुआ?
किसान को ट्रैक्टर मार्च निकालने के लिए पुलिस की ओर से रास्ते तय कर दिये गये थे। किसान नेताओं ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा है कि 25 जनवरी को रात 12 बजे अचानक से पुलिस ने रूट बदल दिया जो रूट दिया गया था उस पर पुलिस ने बैरीकेडिंग की हुई थी जिसे किसानों ने हटाने की कोशिश की तो पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले दागने शुरू कर दिये। सुबह 11 बजे से ही सिंधु बोर्डर और गाजीपुर बोर्डर से पुलिस की लाठियां चलाते हुए और आंसू गैस के गोले चलाते हुए तस्वीरें और वीडियो आने शुरू हो गये थे। पुलिस और किसानों के बीच झड़प हुई। लेकिन सवाल ये है कि जो किसान आंदोलन दो महीने से शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था वो ऐसे एक दिन में उग्र कैसे हो गया। किसान नेताओं ने प्रेस नोट जारी कर कहा है कि पिछले सात महीनों से चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने की साजिश उजागर हो चुकी है। दीप सिद्धू और सतनाम सिंह पन्नू (किसान मजदूर संघर्ष कमेटी) के सहारे सरकार ने इस आंदोलन को हिंसक बनाया। उन्होंने ये भी लिखा है कि इस हिंसा की हम कड़ी निंदा करते हैं। हिंसा केवल कुछ ही जगहों पर हुई बाकी जगह शांतिपूर्ण तरीके से मार्च निकाला गया। जो हिंसा हुई वो असामाजिक तत्वों के द्वारा हुई। किसान परेड पूरी करके वापस अपने अपने बॉर्डर पर पहुंच गये थे।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

Be the first to comment on "हिंसा की आंच से क्या कमजोर होगा आंदोलन?"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*