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राहुल गांधी: 50 साल के हुए राहुल गांधी, 2004 से अब तक कैसा रहा उनका राजनीतिक सफर?

अगर मैं चाहता तो 25 की उम्र में प्रधानमंत्री बन जाता, लेकिन मैंने कोई भी जिम्मेदारी लेने से पहले अनुभव प्राप्त करने की सोची। साल 2005 में तहलका मैगजीन को दिए इंटरव्यू में ये बात कहने वाले राहुल गांधी आज 50 बरस के हो गए हैं। सत्ता पक्ष में रहने के दौरान यह इंटरव्यू देने वाले राहुल आज विपक्ष में हैं और कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं। मगर आज जो हाल राहुल और उनकी पार्टी का है वैसा हाल 2004 में नहीं था।
2004 वही साल है, जब राहुल ने भारतीय राजनीति में कदम रखा। उन्होंने कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी से चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। तब राहुल ने मंत्री बन सरकार में रहकर काम करने के बजाय जमीनी स्तर पर काम करना मुनासिब समझा। डिकोडिंग राहुल गांधी किताब में आरती रामचंद्रन लिखती हैं कि राहुल ने एक बार आश्चर्य जताते हुए कहा था कि देश की सेवा करने के लिए आपको किसी पद की जरूरत क्यों है? शायद यही सोच रही होगी कि उन्होंने यूपीए-1 में कोई पद नहीं लिया। तब वह देशभर में घूमने लगे। कभी दलितों के घर पर रात गुजारते तो कभी मुंबई लोकल में सफर करते। उन्हें मनरेगा मजदूरों के साथ काम करते भी देखा गया। 2007 में उन्हें कांग्रेस महासचिव बनाया गया और यूथ कांग्रेस व एनएसयूआई की कमान सौंपी गई। तब उन्होंने यूथ कांग्रेस में चुनाव कराए और काफी कार्यकर्ताओं को जोड़ा। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में राहुल को फ्रंट पर लाने की कोशिश की गई। उन्होंने काफी रैलियां भी की। तब कांग्रेस के खाते में 206 सीटें आईं। राहुल की लोकप्रियता और बढ़ गई। मगर अब भी राहुल ने मंत्री पद नहीं संभाला। इसके बाद साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में कोई कमाल नहीं दिखा पाई। अगले साल अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ किए गए आंदोलन से कांग्रेस के प्रति और असंतोष बढ़ा, लेकिन इसे कम करने के लिए राहुल कहीं नजर नहीं आए। इसके बाद राहुल ने भट्टा पारसौल जाकर किसानों के मुद्दे को भुनाने की भरसक कोशिश की मगर इसका खास असर 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में नहीं दिखा। कांग्रेस पिछले बार से महज 6 सीटें और जीत पाई। 2013 में उन्हें पार्टी उपाध्यक्ष बनाया गया। लेकिन, उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपनी ही सरकार का लाया अध्यादेश फाड़कर मनमोहन सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। इसी साल दिल्ली में हुए चुनाव में भी कांग्रेस ने पिछले 15 वर्षों में सबसे खराब प्रदर्शन किया।
उधर, अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियां हो रही थीं तो बीजेपी ने सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया। एक तरफ जहां तब के गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी की छवि चमकाई जाने लगी तो राहुल गांधी पर चुटकुले बनाकर उन्हें राजनीति के लिए नॉन सीरियस स्थापित किया जाने लगा। मोदी की दमदार छवि, आक्रामक प्रचार, आकर्षक भाषण शैली और कांग्रेस के खिलाफ बनी लहर के कारण देश की सबसे पुरानी पार्टी 44 सीटों पर सिमट गई। राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए आत्ममंथन करने की बात कही, लेकिन राहुल कांग्रेस को पुनर्जीवित नहीं कर पाए। कांग्रेस एक-एक करके देश के कई राज्यों में लगातार हार झेलती गई तो बीच-बीच में राहुल गांधी छुट्टियां मनाने विदेश जाते रहे। 2017 में राहुल को पार्टी अध्यक्ष की कमान मिली तो उनकी सक्रियता भी बढ़ी। 2018 में कर्नाटक में कांग्रेस जोड़-तोड़कर सरकार बनाने में भी सफल रही। इसी साल कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी सरकार बनाने में कामयाब रही तो जीत का श्रेय राहुल गांधी को भी मिला। इधर वो सॉफ्ट हिंदुत्व की राह भी अपनाने लगे। इसके बाद 2019 के चुनाव में राहुल ने राफेल और न्याय स्कीम को मुद्दा बनाया, लेकिन कांग्रेस पिछले चुनाव के मुकाबले मामूली बढ़त के साथ 52 सीटें ही जीत पाई। राहुल खुद अपनी अमेठी की सीट हार गए। इस बार हार की जिम्मेदारी लेने के साथ-साथ राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष के पद से भी इस्तीफा दे दिया। वो अब भी अलग-अलग मुद्दों पर पीएम मोदी और उनकी सरकार को घेरते रहते हैं। राजनीति में पदार्पण करने के दौर में खुद के चाहने पर पीएम हो जाने की बात कहने वाले राहुल अब पहले से ज्यादा गंभीर नजर आते हैं। पर अब भी राजनीति में आगे की राह उनके लिए काफी मुश्किल है।

नोट- इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। यह ललित मोहन बेलवाल की एफबी वाल से ली गई है। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Forum4 उत्तरदायी नहीं है। आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार Forum4 के नहीं हैं, किसी भी प्रकार से Forum4 उत्तरदायी नहीं है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

ललित मोहन बेलवाल
ळेखक पत्रकार हैं।

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