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मुझे डर है कि मुझ पर राजद्रोह का मुकदमा न लिख लिया जाए

तस्वीरः गूगल साभार

मुझे डर है कि मुझ पर राजद्रोह का मुकदमा न लिख लिया जाए। हो सकता है अच्छा न लगे आपको क्योंकि इस शब्द में एक ऐसी चीज छिपी हुई है जिससे आपका इमोशन बहुत गहराईओं तक जुड़ा हो। और फिर आप मुझे कोसने लगें, मुझे ट्रोल करने लगें, मुझे धमकी देने लगें। भारत, इंडिया या हिदुस्तान कहें लेकिन इन सबका मकसद किसी के खिलाफ मुकदमा लिखना और उस पर इस तरह पाबंदियां लगाना सही नहीं हो सकता। लोकतंत्र में बोलने की आजादी है और उसके साथ संविधान में कुछ पाबंदियां दी गयी हैं कानून की बात कही गयी है लेकिन सबका मकसद अंत मे लोकतंत्र की बहाली है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है न कि उसके ऊपर पाबंदियां लगाकर मेरे अंदर डर पैदा कर देने का।

मैं लिख रहा हूँ, तो लिखने की आजादी कितनी है कितनी नहीं यह मैं खुद क्यों नहीं निर्धारित कर सकता। किसी सरकार की एक विचारधारा से मेरे ऊपर पाबंदियां लगाना तानाशाही हुकूमत की तरह है। हो सकता है कि मेरे ऊपर राजद्रोह का मुकदमा लिख लिया जाए लेकिन मैं उस विचारधारा वाले साये में कानून बनाने वाले से बेहतर अपने वतन को समझता हूँ। अटूट श्रद्धा के साथ होऊं।

मैं जानता हूँ, एक दिन निर्दोष लोग जेल में होंगे और दोषी लोग खिल्लियां उड़ा रहे होंगे। मारपीट कर रहे होंगे। और चारों ओर किसी को उठाया जा रहा होगा। मजहबी चश्मा लगा होगा। लेकिन, ये सब हो उससे पहले क्यों न मैं राजद्रोही हो जाऊं? क्यों न एंटीनेशनलिस्ट हो जाऊं? क्यों न मेरे लिखने पर मेरा जेल हो जाये?

अगर आप लोकतांत्रिक होंगे। सरकार में रहने का मतलब समझते होंगे। जिस राम राज्य की बात करते हैं उसे ठीक से परिभाषित कर सकते होंगे तो आपकी कोठरी में दया नाम का शब्द किसी को फांसी चढ़ाने से पहले फांसी का फंदे से लौटाना शुरू करेगा। किसी पर राजद्रोह का मुकदमा जिस वजह से होगा उस वजह को इग्नोर कर देना शुरू करेगा। उसको मर्यादा में लाने के और भी कई तरीके होंगे।

लेकिन, आप ब्रिटिश हुकूमत को सर्वोपरि समझते हैं। आप किसी एक रंग को चढ़ाने के लिए सारे रंगों की बलि देना चाहते हैं। आप लोकतंत्र के नाम पर अलोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करेंगे। आप अपनी अर्थव्यवस्था की जिम्मेदारी इन्हीं कानूनों की आड़ में निभाएंगे। आप इतिहास को वही पढ़ कर आगे बढ़ाएंगे जहां नफरतों। की बयार चल रही होगी। जहां राम के नाम से कुछ लोगों को बलि दी जा रही होगी। हिन्दू मुस्लिम एकता की आड़ में उनका बंटवारा किया जा रहा होगा। आपका संविधान कुछ और कह रहा होगा। आप मिट्टी को ही बदल देना चाहते होंगे।

चंद्रमा, सूरज, चांद और तारे सब आपके लिए बन जाएं लेकिन आप इनको नहीं छोड़ेंगे। आप अपने वनों को आच्छादित नहीं करेंगे। आप ‘निजी’ शब्द को इतना दूर तक ले जाएंगे जहां पर सार्वजनिक हित की बात जुबानी ही रह जाएगी। अंत में आप अपने वतन को अपनी तरह बना देंगे।

नोट: यह लेख किसी को भड़काने के लिए नहीं लिखा गया है और न ही इसका मकसद किसी को आहत करना है। इस लेख में लेखक के निजी विचार समाहित है। यह लेख किसी 1 व्यक्ति के लिए नहीं लिखा गया है और न ही यह लेख किसी 1 मुद्दे पर लिखा गया है। यह लेख ताजा हालात पर है। आप समझने की कोशिश कीजिये बस।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

प्रभात
लेखक फोरम4 के संपादक हैं।

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