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किसानों को लेकर खेल व फिल्मी जगत के हस्तियों के नाम खुला पत्र!

किसान अर्थात अन्नदाता पिछले दो महीने से किसान विधेयकों को रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं जबकि बहुमत वाली भाजपा सरकार बिना किसी चर्चा के ध्वनि मत से पारित किए गए तीन कृषि विधेयकों को रद्द नहीं कर रही है। बिना किसी चर्चा के पारित किए गए विधेयकों पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब ये विधेयक कानून की शक्ल ले चुके हैं। सरकार के इन तीन कानूनों का देश भर में विरोध हुआ। यह विरोध न केवल किसानों द्वारा किया गया बल्कि कृषि विशेषज्ञों द्वारा भी इन कानूनों का विरोध किया गया। कानून विशेषज्ञों ने भी इन्हें संविधान के साथ खिलवाड़ ही कहा। किसानों के साथ हुई दस से अधिक बैठकों में भी किसानों ने इन कृषि कानूनों की खामियां गिनाई। इसके बावजूद भी सरकार ने इन कानूनों को रद्द नहीं किया। जब किसानों को कई प्रकार से बदनाम करने की कोशिशें नाकाम रही तो सरकार ने क्रूर तरीके से किसानों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की और भारी पुलिस व सैन्य बल द्वारा कार्यवाही कर किसानों के आंदोलन को कुचलने की कोशिश की और फिर पानी और शौच सुविधाएं तक बंद करवा दी गई। इसके बाद इंटरनेट को लगभग संपूर्ण हरियाणा में प्रतिबंधित कर दिया गया और रात्रि में जबरन पुलिस व सैन्य बल द्वारा लाठी चार्ज कर हटाने की योजना बनाई। लेकिन, इसमें भी किसान विरोधी सरकार को सफलता नहीं मिली तब उन्होंने आंदोलन स्थलों के इर्द गिर्द लोहे की बड़ी बड़ी किलों को सड़कों पर जमा दिया व कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दी गई। कंटीले तारों द्वारा सड़कों को पूरी तरह से आने जाने के लिए बंद कर दिया गया। यह अपने आप में अभूतपूर्व था कि किसी सरकार ने अपने देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का इस प्रकार से हनन किया हो। सरकार का अड़ियल रवैया अभी तक जारी है।

जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह खबरें पहुंची तो उन्होंने इंटरनेट प्रतिबंध करने, किसानों को प्रताड़ित करने, किसानों की मांगों की अवहेलना करने व मानवाधिकारों का हनन करने को लेकर बोलना, लिखना शुरू किया और भाजपा की केंद्र सरकार की आलोचना की। बड़ी बड़ी विदेशी हस्तियों ने ट्वीट किए, फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि सोशल मीडिया माध्यमों पर संदेश लिखे। दूसरी तरफ भारतीय क्रिकेटर, फिल्मी जगत के लोगों आपने इसे देश का आंतरिक मामला बोला और खोखली देश भक्ति दिखाई। निसंदेह यह देश का आंतरिक मामला हो सकता है लेकिन आप जैसे प्रसिद्ध लोगों ने किसानों की व्यथा, उनके मानवाधिकारों के हनन, कृषि कानूनों के विषय पर कुछ नहीं लिखा और न कहा। मैं आपसे पूछता हूं कि देश क्या होता है? देश किससे बनता है? क्या किसान देश के नहीं है? ये प्रदेश से आए हैं? क्या आप प्रतिक्रिया व्यक्त ही करते रहोगे? क्या आप खाना नहीं खाते? यह खाना जो आपके घरों और पेट तक पहुंचता है इसे किसान ही उपजाते हैं। शायद आज आपका पेट भरा हुआ है लेकिन आने वाली पीढ़ियों के लिए यह कानून घातक होंगे। सरकार कुछ चंद पूंजीपति घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए कृषि कानूनों की आड़ में संपूर्ण देश की जनता को गुलाम बनाने पर उतारू है। ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह बड़ी बड़ी कंपनियां भारत को गुलाम बना लेंगी और बना रही हैं।

क्रिकेटर्स और फिल्मी जगत के लोगों के द्वारा सरकार की तरफदारी करना बेहद निराशाजनक है। देश के लोगों ने ही आपको अर्श से फर्श पर बिठाया है। भाजपा सरकार के समर्थन में किए गए आपके ट्वीट साफतौर पर आपकी उदासीनता को दिखाते हैं कि आप किसानों और देश हित के विषय में कुछ नहीं सोचते। आपको तो केवल बड़ी बड़ी कंपनियों के विज्ञापन करने हैं और अपनी जेब गरम करनी है। किसी भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सरोकार के मुद्दों पर तो आपकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आती लेकिन जब आप बोलने में असक्षम हैं और कोई संवेदनशील व्यक्ति लिखता है, बोलता है या ट्वीट करता है तब आप सब उनको समझाने लगते हैं यह देश का आंतरिक मामला है। क्या आप में हिम्मत नहीं देश हित में सत्ता से सवाल कर सकने की? अगर नहीं है तो कम से चुप रहो। किसान आंदोलन के दौरान तो आपकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन जब विदेशी मीडिया और प्रसिद्द हस्तियों ने बोलना, लिखना शुरू किया तो आप भाजपा सरकार के हिमायती बन कर आ गए। यह ढोंग नहीं तो क्या है?

श्रीमान अक्षय कुमार, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, अनिल कुंबले, सुनील शेट्टी और श्रीमती लता मंगेशकर, कंगना रनौत सरीखे लोग जो अपने कार्य क्षेत्र में प्रसिद्धि की ऊंचाइयों पर हैं उनसे इस प्रकार की प्रतिक्रिया शोभा नहीं देती। यह कोई क्रिकेट का मैदान नहीं है यह जीवन का मैदान है और यह कोई कलाकारी या गीत का क्षेत्र नहीं बल्कि जिंदगी का गीत है। इस जिंदगी के मैदान में एक ट्वीट द्वारा आप किसानों की व्यथा को नहीं गा सकते। आप के तो गीत, कलाकारी और खेल ही बेसुर में हैं। आपको क्या लगता है एक ट्वीट कर आपने अपनी देशभक्ति दिखा दी? नहीं, आपने ऐसा कोई काम नहीं किया है जो प्रताड़ित किसानों के हित में हो। किसान आंदोलन के दौरान सैकड़ों किसान शहीद हो गए और सैकड़ों किसान लापता हैं। इस पर आपकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई! कोई दुख प्रकट नहीं किया। क्या ये किसान देश के नहीं थे? कंगना रनौत जैसे कुछ फिल्मी जगत के कलाकार तो किसानों को आतंकवादी तक बोल गए। किसानों द्वारा उपजाए अन्न की तो शर्म कर लेते। अगर ये आतंकवादी हैं तो सरकार इनके साथ बैठकें क्यों कर रही है? सरकार इनको जेल में क्यों नहीं डाल देती? सरकार कोई कार्यवाही क्यों नहीं करती? अगर ये आतंकवादी नहीं हैं तो सरकार कंगना रनौत पर कार्यवाही क्यों नहीं करती? कंगना रनौत को जनता द्वारा दिए गए कर की अदायगी से सरकारी सुरक्षा क्यों मुहैया कराई गई है?

आपने नस्लभेद के कारण प्रताड़ित जॉर्ज फ्ल्योड की हत्या पर #BlackLivesMatter हैशटैग के साथ ट्विटर पर संवेदनाएं व्यक्त की थीं। आपने बहुत सही किया और नस्लभेद के खिलाफ हमेशा आवाज़ उठानी चाहिए। क्या वह सच्ची संवेदना थी या केवल वैश्विक स्तर पर चल रहे आंदोलन में क्रिकेटर्स और फिल्मी जगत के कलाकारों द्वारा सिर्फ एक ट्वीट भर था? यह आप ही जाने! भारत में जातीय हिंसा, सांप्रदायिकता, दलित, आदिवासी, पिछड़ों के साथ हो रहे अत्याचारों पर आपकी कोई टिप्पणी, ट्वीट, विरोध, प्रदर्शन आदि दिखाई नहीं देता। भारत देश में प्रतिदिन अखबारों और किसी न किसी टीवी चैनल की खबरों में आपको जरूर दिखाई देता होगा लेकिन आपको तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता। आपकी संवेदनशीलता कहां चली जाती है? या आपको यह दिखाई नहीं देता? या आप अनदेखा कर देते हैं? या आपके निहित स्वार्थ कहीं और जुड़े हैं? आप #DalitLivesMatter, #NoToCasteDiscrimination #NoCommunalism आदि हैशटैग के साथ ट्वीट क्यों नहीं करते? दरअसल आपका ढोंग स्पष्ट है। भारत की तथाकथित प्रसिद्द हस्तियां तब बहुत छोटी हो जाती है जब इनके ऊपर अत्याचार होता है और अपना मुंह बंद कर लेते, मुंह फेर लेते हैं और अनदेखा कर देते हैं। आप प्रसिद्ध हैं लेकिन आप बड़े नहीं हैं। आपका कद और किरदार यहां बहुत छोटा है। आप यहां असंवेदनशील और पाखंडी नजर आते हैं। यही स्थिति वर्तमान में भी है जब किसानों पर अत्याचार हो रहा है तब आप सहूलियत खोज रहे थे कि क्या करें और इस प्रकार की प्रतिक्रिया दी जो अत्याचारियों के समर्थन में थी। इतिहास सदा याद रखेगा की जब किसानों पर अत्याचार हो रहा था तब आप लोग सरकार की चाटुकारिता कर रहे थे। आप अत्याचारी और अत्याचार का साथ दे रहे थे। जो अत्याचार को मौन स्वीकृति दे रहे थे और दे रहे हैं समय उनका भी इतिहास लिखेगा।
इंकलाब जिंदाबाद

(यह लेख सुमित कटारिया के फेसबुक प्रोफाइल से लिया गया है। इसमें लेखक के निजी विचार हैं। इससे फोरम4 का कोई लेना देना नहीं है। किसी भी विवाद की स्थिति में फोरम4 जिम्मेदार नहीं होगा। )

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

सुमित कटारिया
पीएचडी शोधार्थी, इतिहास विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, एसएफआई अध्यक्ष दिल्ली राज्य समिति। संपर्क- sumitktr2@gmail.com

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