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बाल साहित्य लिखा तो जा रहा है, किंतु बच्चों तक पहुंच नहीं पाता है!

आज हम साहित्य जगत से मीरा रामनिवास और उनकी कविताओं से रूबरू करा रहे हैं। मीरा रामनिवास ने साहित्य की विभिन विधाओं में लेखन किया है। मीरा भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी रही हैं।

यहां प्रस्तुत है उनसे राजीव कुमार झा की बातचीत, लेकिन उससे पहले उनकी ये रचनाएं भी पढ़ लीजिये।

“धूप से बड़ी भूख”

मीरा रामनिवास

जेठ की दुपहरी है,

सूरज उगल रहा है आग,

हवाओं ने भी

बदला है अपना मिजाज।

पंछी पेड़ों में छुप गये हैं ,

मानव घरों में घुस गए हैं ।

रामू मोची ,

इस भीषण गर्मी में भी,

फुटपाथ पर ड़टा है ।

कटी फटी छतरी के सहारे,

घूप से अड़ा है,

बीच बीच में ,

गिन लेता है ।

टाट के नीचे रखी रेजगारी,

शाम के आटे दाल का,

हिसाब लगाता रहता है ।

जब तब पेटी का,

तकिया बना, सुस्ता लेता है ।

गर्मी से बचने ,

गर्म पानी पी लेता है ।

रामू को धूप ताप नहीं सताती है,

परिवार की भूख सताती है ।

इसीलिए रामू,

जेठ की दुपहरी सह जाता है।

हर ग्राहक जैसे,

ठंडी हवा का झौंका लिए आता है।

दोस्तों! तुम ही कहो,

रामू के लिए धूप बड़ी है,

या भूख।

निश्चित ही

धूप से बड़ी है भूख।

 

भारतीय पुलिस सेवा में आपका चयन कब हुआ?

भारतीय पुलिस सेवा में मेरा चयन 1985 में हुआ। इससे पूर्व मै कालेज में संस्कृत की व्याख्याता थी। साहित्य के प्रति मेरी रुचि कालेज के समय से रही। स्नातक डिग्री मैंने हिंदी और संस्कृत साहित्य के साथ ली। अहमदाबाद के कार्यकाल के दौरान हिंदी साहित्य परिषद से जुड़ी और लेखन को वेग मिला।

साहित्य लेखन से कब और कैसे लगाव कायम हुआ?

मैंने काव्य लेखन से शुरुआत की। पुलिस सेवा में होने से बहुत से पात्र मुझे रोजाना मिलते थे। मैने कहानियां लिखी। अंकुर, एहसास की धूप, मौसम के साथ चलते हुए काव्यसंग्रह, स्मृतियों के दायरे, अक्षरा एवम अन्य कहानियां प्रकाशित की। खाकी मन की संवेदनायें किताब का सम्पादन किया। बालसाहित्य, यात्रावृत्तांत और संस्मरण भी लिख रही हूं।

आपने संस्कृत भाषा और साहित्य का अध्ययन किया है। हमारे देश की संस्कृति में इस भाषा और इसके साहित्य का क्या महत्व है ?

संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत भाषा का पतन कभी नहीं हो सकता, आप ये कह सकते हैं कि ये आज आम बोलचाल की भाषा नहीं है। भारतीय संस्कृति का जो रूप आज देख रहे हैं वह संस्कृत की देन है। हमारे वेद, पुराण रामायण गीता ही संस्कृति का मूल हैं। हिंदी संस्कृत की उत्तराधिकारणी है, संस्कृति को आगे बढ़ा रही है। भारतीय संस्कृति में व्याप्त धर्म, अध्यात्म और नैतिक मूल्य सब संस्कृत की ही देन हैं।

आप अपने बचपन घर परिवार और प्रारंभिक जीवन को किस तरह से याद करती हैं?

मेरा जन्म राजस्थान के छोटे से गांव में किसान परिवार में हुआ। हमारा परिवार खेती बाड़ी और पशुपालन करता है। गांव में छोटा सा स्कूल हुआ करता था, दो साल वहीं पढ़ी, उसके बाद पास के कस्बे भुसावर से प्राथमिक शिक्षा, अलवर से स्नातक और जयपुर से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की। पढ़ाई लिखाई परिवार से दूर छात्रावास में रह कर राजस्थान में हुई। बचपन संयुक्त परिवार में  खूब आंनद से बीता। मां पिता का जीवन सादगी भरा था। मां स्कूल नहीं गई थी किन्तु पिता दो चार साल गये थे, वे लिख नहीं पाते, किन्तु रामायण ,कल्याण आदि पढ़ लेते हैं। मैं भाई बहनों में सबसे बड़ी हूँ।

परिवेश में आने वाले तमाम तरह के बदलावों के बीच बच्चों का जीवन आपको किस तरह बदलता दिखायी दे रहा है ?

हम छुट्टियों में खूब बाल साहित्य पढ़ते थे, लाइब्रेरी से लाया करते थे। आज वीडियो गेम्स की सामग्री लाई जाती है। बाल साहित्य लिखा तो जा रहा है किंतु बच्चों तक पहुंच नहीं पाता है।

पहले घरों में रामायण जैसे ग्रन्थों का सस्वर पाठ होता था, दादा-दादी कहानियां, लोककथाएं सुनाया करते थे। स्कूल के बाद बच्चे बड़े बुजुर्गों के साथ बैठा करते थे। आज बच्चों का समय ट्यूशन, दूरदर्शन और मोबाइल में बीत जाता है। घरों में बाल साहित्य की किताबें भी उपलब्ध नहीं होती। पहले पढ़ना और खेलना ही मनोरंजन था, अब बहुत से साधन उपलब्ध हैं।

हिंदी के किन लेखकों ने आपको प्रभावित किया?

हिंदी साहित्य के बहुत से रचनाकारों ने मेरी जीवन चेतना को प्रभावित किया। इनमें जयशंकर प्रसाद जी, मुंशीजी, कबीर जी, तुलसीदास जी आदि हैं। प्रसाद जी ने अपनी रचना कामायनी में मानव मन के मनोभावों श्रद्धा, सुंदरता, लज्जा इड़ा को  बहुत ही सुंदर ढंग से पात्रों के रूप में पेश किया है। मुंशीजी की कहानियों की संवेदनशीलता (पूस की रात’, गो दान) दिल को छू लेती है। कबीर जी, तुलसीदास जी ने समाज को नई दिशा दी है। इन सब की कालजयी रचनायें जीवन को चेतनता प्रदान करती हैं।

साहित्य में नारीवादी लेखन को किस रूप में देखती हैं ?

साहित्यकार समाज में रहता है, इसलिए महिलाओं के जीवन से जुड़े मुद्दे सहज ही रचनाओं में समाहित हो ही जाते हैं। महिलाओं से संबंधित सभी सवाल जैसे भेदभाव पूर्ण व्यवहार, महिलाओं को अपनी संपत्ति मानना, उसके सौंदर्य को देह तक सीमित कर देना, उनके प्रति शारीरिक मानसिक हिंसा सभी महत्वपूर्ण हैं। चूंकि महिला होने के नाते से महिला साहित्यकार इन मुद्दों को अच्छी तरह से उजागर करती हैं। उन्हें नारीवादी लेखिका कह दिया जाता है। लेकिन इन लेखिकाओं के योगदान को  समाज में कमतर नहीं आकां जा सकता है। मेरे मत में ये महत्वपूर्ण भूमिका है।

काव्य लेखन की विशिष्टता को किस तरह देखती हैं ?

काव्य लेखन बुद्धि से कम दिल से ज्यादा किया जाता है। संवेदनाओं का संप्रेषण हृदय से होता है। मेरी अभिव्यक्ति बहुत ही सरल और सहज है। प्रकृति के करीब रहना मुझे पसंद है। समाज में रहती हूं समाज के बदलते जीवन मूल्य, समाज की अच्छाइयां, विसंगतियां, प्रकृति की सुंदरता,  नारी मन के सवाल सब मुझे सवेदनशील बना देते हैं और मेरी लेखनी को लिखने के लिए प्ररित करते हैं। मेरे लेखन में आदर्श कम यथार्थ ज्यादा अभिव्यक्त होता है।

आप गुजरात में काफी सालों से रह रही हैं। यहां के अनुभवों के बारे में बताएं?

गुजरात मे कई दशकों से हिंदी भाषा बोलने वाले रहते हैं। गुजरात में हिन्दी का खूब बोलबाला है सभी हिंदी बोल समझ लेते हैं। हिंदी साहित्य अकादमी हिंदी साहित्यकारों को बढ़ावा देती है। हिंदी हमारी राज भाषा है भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। विश्व में चीनी भाषा के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी ने हम सब को जोड़ा हुआ है। हिन्दी साहित्य बहुत समृद्ध है। स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दी हमारी संस्कृति हमारी सोच की संवाहक है।

हिंदी साहित्य की मूल भावभूमि के बारे में आपका क्या मत है ?

भारतीय साहित्य की मूल चेतना उसका मंगल भाव है। भारतीय साहित्य में प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक सभी चेतनाओं का समावेश है। मानवीय मूल्यों के प्रति चेतना का भरपूर समावेश किया गया है। भारतीय साहित्य में सत्यम शिवम और सुंदरम का पुट है। समय के साथ आज बड़लते समाज और जीवनमूल्यों ने साहित्यकार के मन को भी छुआ है। लेखन शैली बदली है लेकिन सामाजिक सरोकार वही है।

सदियों से संसार के प्रति भारतीय संस्कृति का क्या संदेश रहा है?

भारतीय संस्कृति मानवमात्र के कल्याण का संदेश देती है। दया, परोपकार, सत्य, अहिंसा, त्याग, जैसे मानव मूल्यों का संदेश देती है। विश्व संस्कृति को भारत ने ज्ञान विज्ञान योग दर्शन चिंतन मनन और कर्म का सन्देश विश्व को दिया। भारतीय संस्कृति को जानने के लिए विश्व के देश संस्कृत भाषा और हिंदी भाषा सीख रहे हैं। हमारे प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद किया जा रहा है उन्हें पढ़ा जा रहा है।

संसार के आदिकाव्य के रूप में ऋग्वेद की ऋचाओं में समाहित स्वर में मानवमन के क्या भाव समाए हैं ?

ऋग्वेद की ऋचायें धरा पर उपस्थित जड़ और चेतन समस्त प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का बोध कराती है। हर वह वस्तु जो मानव को जीने में सहायक है, सबके प्रति मंगल कामना करना सिखाती हैं। जल पृथ्वी वायु आग सूर्य चाँद वृक्ष सबको देव तुल्य मान कर आदर करना सिखाती हैं। माता पिता को देवता मान कर पूजा करने का आदेश देती हैं। मानवमूल्यों और संवेदनाओं की देन है ऋग्वेद। संगच्छध्वम, संवद्ध्वम जैसी मानव कल्याण की चेतना प्रवाहित करती है।

महात्मा गांधी के जीवन चिंतन और उनके संदेशों की प्रासंगिकता के बारे में आपके क्या विचार हैं ?

महात्मा गांधी के विचार गीता और रामायण से प्रभावित थे। उन्होंने अपने जीवन में सादगी सच्चाई सेवा स्वावलंबन अहिंसा निडरता जैसे भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांतों को अपना कर सबको आदर्श जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया। गांधी जी हमारी संस्कृति के प्रणेता के रूप में सदा प्रासंगिक रहेंगे। हमारी संस्कृति सादा जीवन उच्च विचार, मातृभूमि प्रेम सिखाती है। गांधी जी ने अमल किया।

आपने अपने यात्रा वृतांत को भी लिखा है ?

यात्रा पर जाना मुझे बचपन से ही प्रिय रहा। उस समय जब ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें नहीं थीं पिता के साथ पैदल ही नानी और बुआ के गांव जाना अच्छा लगता था। पुलिस सेवा के प्रशिक्षण के दौरान भारत दर्शन और ट्रैकिंग करने का अवसर मिला, उस समय मैं अपने अनुभव डायरी में लिखा करती थी। भारत के हर राज्य में प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना छुपा है। इसे देखना और लिखना दोनों ही आनंददायक हैं। विधिवत यात्रा लेखन पिछले दो साल से शुरू किया है।

मैंने फूलों की घाटी की सैर, डल झील एक चलता फिरता शहर, अमरनाथ यात्रा आदि यात्रा वृतांत लिखे हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

राजीव कुमार झा
शिक्षक व लेखक

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