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नौ दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे में जानिए, कब-कैसे करें इनकी पूजा

तस्वीर-गूगल साभार

नवरात्रि, नवदुर्ग नौ दिनों का उत्सव है, सभी नौ दिन माँ आदि शक्ति के विभिन्न रूपों को समर्पित किए गये हैं. देवी के यह नौ रूप, नवग्रहों के अधिपत्य तथा उनसे जुड़ी बाधाओं को दूर व उन्हें प्रबल करने के लिए भी पूजे जाते हैं. नवरात्रि को वर्ष में दो बार मनाया जाता है जिसे चैत्र नवरात्रि तथा शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. चैत्र नवरात्रि हिंदू कैलेंडर के पहले महीने चैत्र की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है जिसके कारण यह नवरात्रि चैत्र नवरात्रि के नाम से जानी जाती है. भगवान राम का अवतरण दिवस राम नवमी आमतौर पर नवरात्रि के दौरान नौवें दिन पड़ता है, इसलिए राम नवरात्रि भी कहा जाता है। चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। शरद ऋतु में आने वाली नवरात्रि अधिक लोकप्रिय हैं इसलिए इसे महा नवरात्रि भी कहा गया है।

देवी भागवत के अनुसार सृष्टि का आदि स्वरूप ही शक्ति स्वरूप है और देवी ही इसकी प्रथम आद्या हैं. वह परमपिता ब्रह्मदेव की इच्छा शक्ति हैं, विष्णु की पालक शक्ति हैं और शिव के संहार की इच्छा में भगवती की ही शक्ति समाहित है. इसलिए इन्हें आदिशक्ति, महाविद्या और परमशक्ति के तौर पर जाना जाता है. यही कारण है कि सनातन वर्ष परंपरा के प्रारंभिक नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित होते हैं. भगवती की सूक्ष्म शक्ति से परे यह नव स्वरूप प्राथमिक, दिव्य और मानव जाति के लिए प्रेरणा हैं.  इन स्वरूपों के मर्म पर डालते हैं नजर-

प्रथम देवी-शैलपुत्रीः हिमालय की पुत्री
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

इन्हें हेमावती तथा पार्वती के नाम से भी जाना जाता है।

सवारी: वृष, सवारी वृष होने के कारण इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।

अत्र-शस्त्र: दो हाथ- दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल धारण किए हुए हैं।

मुद्रा: माँ का यह रूप सुखद मुस्कान और आनंदित दिखाई पड़ता है।

ग्रह: चंद्रमा – माँ का यह देवी शैलपुत्री रूप सभी भाग्य का प्रदाता है, चंद्रमा के पड़ने वाले किसी भी बुरे प्रभाव को नियंत्रित करती हैं।

मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है. पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने कारण देवी शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं. देवी का यह स्वरूप इच्छाशक्ति और आत्मबल को दर्शाता है और इसके लिए प्रेरित करता है. सती दाह की घटना के बाद आदिशक्ति ने पुनः महादेव की अर्धांगिनी बनने के लिए आत्मबल दिखाया और जन्म लेकर तपस्या कर महादेव को फिर से प्राप्त किया. देवी का यह मानवीय स्वरूप बताता है कि मनुष्य की सकारात्मक इच्छाशक्ति ही भगवती की शक्ति है. नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है. प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं.
इस मंत्र के साथ वंदना करें.
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी,

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

माता ने इस रूप में फल-फूल के आहार से 1000 साल व्यतीत किए, और धरती पर सोते समय पत्तेदार सब्जियों के आहार में अगले 100 साल और बिताए। जब माँ ने भगवान शिव की उपासना की तब उन्होने 3000 वर्षों तक केवल बिल्व के पत्तों का आहार किया। अपनी तपस्या को और कठिन करते हुए, माँ ने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और बिना किसी भोजन और जल के अपनी तपस्या जारी रखी, माता के इस रूप को अपर्णा के नाम से जाना गया।

अन्य नाम: देवी अपर्णा

सवारी: नंगे पैर चलते हुए।

अत्र-शस्त्र: दो हाथ- माँ दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हुए हैं।

ग्रह: मंगल – सभी भाग्य का प्रदाता मंगल ग्रह।

देवी का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्मा की इच्छाशक्ति और तपस्विनी का आचरण करने वाली यह देवी त्याग की प्रतिमूर्ति हैं. ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है. मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है. उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है. नवदुर्गा के दूसरे दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है.
इस मंत्र से साधना करें.
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

तृतीय चंद्रघण्टाः नाद की देवी

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

यह देवी पार्वती का विवाहित रूप है। भगवान शिव से शादी करने के बाद देवी महागौरी ने अर्ध चंद्र से अपने माथे को सजाना प्रारंभ कर दिया और जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के रूप में जाना जाता है। वह अपने माथे पर अर्ध-गोलाकार चंद्रमा धारण किए हुए हैं। उनके माथे पर यह अर्ध चाँद घंटा के समान प्रतीत होता है, अतः माता के इस रूप को माता चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।

सवारी: बाघिन

अत्र-शस्त्र: दस हाथ – चार दाहिने हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल तथा वरण मुद्रा में पाँचवां दाहिना हाथ। चार बाएं हाथों में कमल का फूल, तीर, धनुष और जप माला तथा पांचवें बाएं हाथ अभय मुद्रा में।

मुद्रा: शांतिपूर्ण और अपने भक्तों के कल्याण हेतु।

ग्रह: शुक्र

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघण्टा हैं. माता के मस्तक पर घण्टे के आकार का चंद्र शोभित है. यही इनके नाम का आधार है. देवी एकाग्रता की प्रतीक हैं और आरोग्य का वरदान देने वाली है. असल में नाद ही सृष्टि की चलायमान शक्ति है. यह ऊंकार का स्त्रोत है और सृष्टि की प्रथम ध्वनि है. घंटा ध्वनि सभी ध्वनियों में सबसे शुद्ध और शांत प्रवृत्ति वाली है. यह ऊर्जा क बढ़ाती है. जो लोग एकाग्र नहीं रह पाते, क्रोधी स्वभाव और विचलित मन वाले हैं, मां चंद्रघंटा की शरण लें.  और इस मंत्र से उपासना करें.

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

चतुर्थ कूष्माण्डाः जननी स्वरूपा

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

देवी कूष्माण्डा, सूर्य के अंदर रहने की शक्ति और क्षमता रखती हैं। उसके शरीर की चमक सूर्य के समान चमकदार है। माँ के इस रूप को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है।

अन्य नाम: अष्टभुजा देवी

सवारी: शेरनी

अत्र-शस्त्र: आठ हाथ – उसके दाहिने हाथों में कमंडल, धनुष, बाड़ा और कमल है और बाएं हाथों में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र है।

मुद्रा: कम मुस्कुराहट के साथ।

ग्रह: सूर्य – सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदाता।

मां का यह स्वरूप ब्रहमांड का सृजन करता है. अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा. इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है. अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए. मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है. सरल शब्दों में कहें तो मां की आराधना व्याधियों और विकारों को नष्ट करती है. देवी नवीनता का प्रतीक हैं और सृजन की शक्ति हैं. अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा मां की उपासना इस मंत्र से करनी चाहिए.
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।

पंचम स्कन्दमाताः वत्सला स्वरूप

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

जब देवी पार्वती भगवान स्कंद की माता बनीं, तब माता पार्वती को देवी स्कंदमाता के रूप में जाना गया।

अन्य नाम: देवी पद्मासना

सवारी: उग्र शेर

अत्र-शस्त्र: चार हाथ – माँ अपने ऊपरी दो हाथों में कमल के फूल रखती हैं है। वह अपने एक दाहिने हाथ में बाल मुरुगन को और अभय मुद्रा में है। भगवान मुरुगन को कार्तिकेय और भगवान गणेश के भाई के रूप में भी जाना जाता है।

मुद्रा: मातृत्व रूप

ग्रह: बुद्ध

मां दुर्गा का यह पांचवां स्वरूप स्कन्दमाता कहलाता है. भगवान स्कन्द यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहते हैं. पांचवें दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है. देवी कमलाआसन पर विराजित हैं औऱ इस रूप में भगवान विष्णु की पालक शक्ति हैं. इन्हीं की प्रेरणा से श्रीसत्यनारायण प्रभु भक्त वत्सल हैं और पिता तुल्य हैं. इसी प्रेरणा वह संसार का पालन करते हैं और प्रत्येक जीव का रंजन करते हैं. देवी का यह स्वरूप चित्त में शीतलता और दया भरने वाला और अभय देने का प्रतीक है. देवी की पूजा इस मंत्र से करें.
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

षष्ठम कात्यायनीः ऋषि पुत्री, वीरांगना स्वरूप
 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

माँ पार्वती ने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए देवी कात्यायनी का रूप धारण किया। यह देवी पार्वती का सबसे हिंसक रूप है, इस रूप में देवी पार्वती को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है।

सवारी: शोभायमान शेर

अत्र-शस्त्र: चार हाथ – बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण किए हुए है और अपने दाहिने हाथ को अभय और वरद मुद्रा में रखती है।

मुद्रा: सबसे हिंसक रूप

ग्रह: गुरु

मां दुर्गा का यह छठा स्वरूप अमोघ शक्ति और गौरव देने वाला है. देवी के इस नाम के पीछे की वजह ऋषि कात्यायन के घर जन्म लेना है. उनकी पुत्री होने से वह कात्यायनी कहलाती हैं. यह स्वरूप कर्मठता का प्रतीक है और नारी जाति को प्रेरणा देता है कि वह अपनी दया, तपस्या और त्याग जैसे गुणों के साथ वीरांगना भी है. अबला तो किसी भी स्वरूप में नहीं. यह स्वरूप क्षमाशील भी है और दंडदेने वाला भी. देवी को दानव घातिनी भी कहते हैं. शुंभ निशुंभ औऱ रक्तबीज जैसे दानवों का अंत देवी ने इसी स्वरूप में किया. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. मां की अर्चना इस मंत्र से करें.
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

सप्तम कालरात्रिः शुभफला शुभांकरी देवी

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध लिए तब माता ने अपनी बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा कर देवी कालरात्रि का रूप धारण किया। कालरात्रि देवी पार्वती का उग्र और अति-उग्र रूप है। देवी कालरात्रि का रंग गहरा काला है। अपने क्रूर रूप में शुभ या मंगलकारी शक्ति के कारण देवी कालरात्रि को देवी शुभंकरी के रूप में भी जाना जाता है।

अन्य नाम: देवी शुभंकरी

सवारी: गधा

अत्र-शस्त्र: चार हाथ – दाहिने हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं, और बाएं हाथों में तलवार और घातक लोहे का हुक धारण किए हैं।

मुद्रा: देवी पार्वती का सबसे क्रूर रूप

ग्रह: शनि

अंधकार में भी आशा की किरण और अभय देने वाला देवी का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है. भयानक स्वरूप के बाद भी शुभफल देने वाली देवी शुभांकरी नाम से पूजित होती हैं. सातवें दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं. देवी का यह रौद्र स्वरूप शिव के संहार स्वरूप की प्रेरणा है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं. जिससे भक्त भयमुक्त हो जाते हैं. देवी का आभार इस मंत्र से प्रकट करें.
एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी।।

अष्टम महागौरीः पुण्यतेज स्वरूप

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह साल की उम्र में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है।

अन्य नाम: श्वेताम्बरधरा

सवारी: वृष

अत्र-शस्त्र: चार हाथ – माँ दाहिने हाथ में त्रिशूल और अभय मुद्रा में रखती हैं। वह एक बाएं हाथ में डमरू और वरदा मुद्रा में रखती हैं।

ग्रह: राहू

मंदिर: हरिद्वार के कनखल में माँ महागौरी को समर्पित मंदिर है।

मां दुर्गा का यह आठवां स्वरूप आठवें दिन पूजित होता है. यह धवल वर्ण के वस्त्र धारण करने वाली और गौर वर्ण की देवी हैं इसलिए महागौरी कहलाती हैं. देवी का यह स्वरूप शिवप्रिया स्वरूप है जो उनके साथ कैलाश में विराजित हैं. अभय देने वाली, दया व ममता की मूर्ति और पुण्य फल देने वाली देवी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं. देवी की उपासना इस मंत्र से करें.

श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

नवम सिद्धिदात्रीः सिद्धियां प्रदान करने वाली

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। यहां तक ​​कि भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की सहयता से अपनी सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। माँ सिद्धिदात्री केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि देव, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धों द्वारा भी पूजी जाती हैं। जब माँ सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं, तब भगवान शिव को र्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माँ सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं।

सवारी: शेर

अत्र-शस्त्र: चार हाथ – दाहिने हाथ में गदा तथा चक्र, बाएं हाथ में कमल का फूल शंख व शंख शोभायमान है।

ग्रह: केतु

मां दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों की अधिष्ठाता हैं. नाम से स्पष्ट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं. नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं. इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए. वीर हनुमान को देवी कृपा से ही आठों सिद्धियां और नव निधियों का वरदान प्राप्त हुआ था. देवी की उपासना इस मंत्र से कीजिए.
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

विकास पोरवाल
पत्रकार और लेखक

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