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देशभर में मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ हो रहा है जमकर विरोध

पांच राज्यों में चुनाव खत्म होने के बाद एक बार फिर महंगाई आसमान छुने लगी है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जनता महंगाई से त्रस्त है और नेता सरकार बनाने में मस्त हैं। ऐसे में मजदूर वर्ग जो कि बढ़ती महंगाई से त्रस्त है। साथ ही श्रम कोड का भी जमकर विरोध कर रहे हैं। लगातार हर सेक्टर का निजीकरण किया जा रहा है फिर वह चाहे बैंक हो या फिर अस्पताल। 28 और 29 मार्च को ऑल इंडिया सेंट्रल ट्रेड यूनियन की तरफ से भारत बंद का अहवान किया गया था। जिसमें लगभग 25000 मजदूर और कर्मचारी इस हड़ताल में शामिल रहे। देशभर में जगह जगह मजदूरों ने इस हड़ताल का समर्थन किया। इस हड़ताल में बैंक कर्मचारी, डॉक्टर्स, नर्स और स्वास्थ्य कर्मचारी, सफाईकर्मी और मजदूरों ने इस हड़ताल में हिस्सा लिया। दिल्ली के जंतर मंतर पर भी काफी संख्या में लोग पहुंचे और सरकार की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया।

क्या चाहते हैं कर्मचारी, मजदूर?

चार लेबर कोड यानी श्रम कोड को वापस लेने, सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण, पुरानी पेंशन स्कीम बहाली, आउटसोर्स नीति बनाने, छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करने सहित अन्य मांगों के लिए इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में हजारों मजदूरों, कामगारों व कर्मचारियों ने भाग लिया। 29 मार्च को मजदूरों ने मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ देशभर में रैली निकालकर नारेबाजी की।

क्या है श्रम कोड, जिसका मजदूर कर रहे विरोध?
श्रम कोड नया वेज कोड लागू हो जाने के बाद कर्मचारियों की सैलरी से लेकर उनकी छुट्टियां और उनके काम के घंटे भी बदल जाएंगे। नये वेज कोड के मुताबिक, हफ्ते में केवल चार दिन ही काम करना होगा और तीन दिन की छुट्टी मिलेगी। लेकिन, नये कोड के मुताबिक, 8 घंटे काम के बजाय हर रोज 12 घंटे काम करने होंगे। हालांकि, श्रम मंत्रालय ने यह पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि हर हफ्ते 48 घंटे काम करने का नियम लागू रहेगा। सरकार ने कम से कम 13 राज्यों ने इन कानूनों के मसौदा नियमों को तैयार कर लिया है। बता दें, नया वेज कोड लागू हो जाने के बाद इसमें कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिससे ऑफिस में काम करने वाले वेतनभोगी कर्मचारियों समेत मिलों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर तक प्रभावित होंगे।

बैंक कर्मचारियों की क्या मांगे हैं?

बैंक के कर्मचारी बैंकों के निजीकरण को लेकर जबरदस्त आक्रोश में हैं। केंद्र सरकार की जनविरोधी आर्थिक नीतियों और श्रमिक विरोधी श्रम नीतियों के खिलाफ बैंकों ने 28 और 29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल में लगभग चार लाख बैंक कर्मचारी शामिल हुए। बैंक के कर्मचारी और अधिकारी बैंकों के निजीकरण के विरोध में है साथ ही उनकी सरकार से मांग है कि पुरानी पेंशन योजना लागू की जाए और खाली पदों को भरा जाए।

डॉक्टर्स और सफाई कर्मचारी भी हड़ताल पर

डॉक्टर्स और सफाई कर्मचारी जिन्होंने कोविड के समय में लगातार काम किया। या वो नर्स और सफाई कर्मचारी कॉन्ट्रेक्ट पर ड्यूटी कर रहे थे उन्हें नौकरी से हटाया जा रहा है। उनकी मांग ये है कि उनको नौकरी पर से न हटाया जाए। लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल में काम करने वाली प्रीति का कहना है कि “कोविड में हमने काम किया है और अब हमसे कहा जाता है कि हमें आपकी जरूरत नहीं है। कोविड में हमने फैमिली और छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर ड्यूटी की है। और अब आप हमें बोल रहे हैं कि जाओ। हमें हमारी नौकरी चाहिए। अपनी जान को बाजी पर लगातर काम किया है। कोरोना से हम बच गए है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हमें नौकरी से ही निकाल दो”।

तो कुछ इस तरह से बैंक कर्मचारी, डॉक्टर्स, नर्स, सफाईकर्मी, मजदूरों ने मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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