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दिल्ली से 2 श्रमिकों के बस्ती अपने घर तक पहुंचने की कहानी ने खोल दी श्रमिक ट्रेनों की पोल

1. श्रमिक ट्रेन, 2. मऊ स्टेशन 3. सरकारी राशन

प्रवासी मजदूरों की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा। इनकी मौत लॉकडाउन लगाने के बाद 4 वजहों से हुई- पहला पुलिस के उत्पीड़न के बाद हुई मौत, दूसरा भूख से पैदल चलकर, तीसरा ट्रेन और बसों आदि की दुर्घटनाओं की वजह से और चौथा अब श्रमिक ट्रेनों की देरी और उसमें हो रही मौतें।

इसमें चौथी बात जिन्हें सरकारी श्रमिक ट्रेनें मिल रही हैं लेकिन व्यवस्थाओं की कमी के चलते पिछले 24 घंटों में 9 लोगों की मौत हो गई। ये ट्रेनें 2 दिन की बजाय 9 दिनों में यात्राएं बिना निर्धारित जगह जाने के चलते पूरी कर रही हैं। दरअसल श्रमिक ट्रेनों में चल रहे काफी लोग इन अव्यवस्थाओं के शिकार हो रहे हैं। भले ही कम या ज्यादा। लेकिन ये अव्यवस्थाएं ही मौत का जिम्मेदार हैं। इसी पर हमने बात की उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक छोटे से गांव से काम करने के लिए आये दिल्ली के दो श्रमिकों की। इन्होंने सिलसिलेवार फोरम4 से अपनी कहानी बताई है कि आखिर किस तरह उन्हें कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन में घर के लिए निकलना पड़ा और श्रमिक ट्रेन कैसे उन्हें घर पहुंचाई। इनका नाम है कैलाश और बाबूलाल।

आप लोग किस परिस्थिति में दिल्ली से घर के लिये 800 किलोमीटर तक के सफर पर निकले और क्यों आपको घर जाना पड़ा?

हम बस्ती जिले के एक छोटे से गांव से आते हैं। दो लोग दिल्ली में कपड़े की कंपनी में काम करने के लिए घरौली के पास रहते थे। हम 3200 रुपये प्रति माह किराया देते थे। लॉकडाउन हुआ तो नहीं पता था कि इतने दिनों के लिए होगा। इसलिए शुरू में घर जाने के लिए नहीं सोच पाये। हम सोचे कि कुछ दिनों की बात है, इसलिए कैसे तैसे 19 मार्च से लेकर 1 मई तक तो गुजार लिए लेकिन उसके बाद घर जाने की सोचने लगे। स्थिति बहुत ही दुखद थी हम लोगों के पास ना तो कुछ खाने का था ना ही रहने का। कोई बंदोबस्त नहीं रहा। न तो सरकार मदद कर रही थी न ही कुछ। यही सब समस्या थी इसीलिए हम सोच रहे थे कि अपने परिवार में चले जाएं, अपने घर चले जाएं तो कम से कम रहने का किराया तो बचेगा। लेकिन पॉकेट मनी भी खत्म होने लगा और घर का राशन भी कुछ भी नहीं रहा, जिससे हमारा दिल्ली में रहना मुमकिन हो सके। हमने कई लोगों से गांव के पता किया कि कहीं से कुछ सरकारी इंतजाम हो तो निकल जाएं लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिल सका। राशन के लिए दिल्ली सरकार के ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्टर कर दिया। लेकिन उससे मिलने की उम्मीद खत्म हो गई। 20 दिन बीत गए लेकिन वेटिंग में ही रहा। राशन हम तक नहीं पहुंचा। अब थक हारकर दिल्ली छोड़ने का मन बना लिए। मैंने समान सारा लेकर अपने भाई के साथ पैदल ही घर निकलना चाहा।

आप पैदल ही घर के लिए निकल पड़े तो क्या परेशानियां हुईं

हां, हम पैदल ही घर के लिए निकल पड़े। कुल बस्ती के लिए जाने वाले साथियों की संख्या 20 थी। इन सबने बताया कि अलग-अलग समूहों में ये किसी तरह पहले बॉर्डर पार करेंगे। इनमें से एक मजदूर साथी ऐसे भी थे कि उनके घर में पिता की मौत भी हो गई थी। लेकिन वे घर तुरंत पहुंच नहीं सके। वो चाहते थे किसी तरह वो घर पहुंच जाएं। मई के दूसरे सप्ताह में एक गाड़ी वाले से बात हुई थी। उसने हमें ट्रक से घर पहुंचाने की बात कही थी। मगर उत्तरप्रदेश की सीमा के पहले ही दिल्ली से दूर खड़ा था। वहां तक हमें पैदल जाना था। लेकिन अपने कमरे से दिल्ली -नोएडा बॉर्डर किसी तरह पहुंचे। दिल्ली से निकलने के बाद यूपी बॉर्डर पर घुसने ही नहीं दिया गया।

आप पैदल बॉर्डर पर पहुंचे थे?

दिल्ली यूपी बॉर्डर पर पहुंचे। नोएडा 15-16 के करीब थे। गौतम बुद्ध नगर, नोएडा मोड़ के पास पुलिस वालों ने बहुत परेशान किया। कभी कहते कि रोड पर से चले जाओ तो कभी कहते की नाले के पास से चले जाओ या फिर झाड़ियों के पीछे से चले जाओ। सही रास्ता हमें कोई नहीं बता रहा था इसी वजह से 3 घंटे बॉर्डर पर ही बर्बाद हो गए। उसी वक्त आंधी और बारिश होने लगी थी हम बहुत परेशान हो गए। हम घर से इस तैयारी के साथ निकले थे कि किसी तरह अब घर जाना है वापिस कमरे पर नहीं जाना है। दिल्ली पुलिस स अनुनय विनय करने पर वे केवल नाम लिखकर आगे जाने को बोले। मगर उधर भी हमें यूपी पुलिस ने भगा दिया। काफी कोशिश की।

हम लोग शाम को 6:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक हम वहां पर टिके हुए थे जब हम लोग पुलिस वालों से बहुत रिक्वेस्ट की सर हम लोगों को घर जाने दीजिए हम लोगों के पास खाने-पीने से लेकर रहने तक का कोई बंदोबस्त नहीं वहां पर ना ही दिल्ली सरकार को कुछ मदद कर रही है ।और ना ही यूपी सरकार कोई मदद कर रही है हम लोगों की मजबूरी है अगर घर नहीं जाएंगे तो यहां पर भूख से मर जाएंगे मकान मालिक ऊपर से हम लोगों के कमरे का किराया मांग रहा है फिर भी पुलिस वाला मदद करने के लिए तैयार नहीं था सभी लोगों का यही कहना था कि हमें आगे से आदेश हैं आप लोगों को आगे नहीं जाने दिया जाएगा। आप लोग जहां से आए हैं वहीं चले जाएं। हम लोग बहुत परेशान हो गए फिर तब आप लोगों (फोरम4) को फोन मिलाया तो आप लोगों ने हमें राशन देकर तत्काल सहायता करने की बात की। यह भी बताया कि अगर आप लोग पैदल जाएंगे तो आपको काफी परेशानी होगी। इसलिए लौट जाएं जल्दी ही जैसे ही ट्रेन की कोई व्यवस्था होगी हम आपको बताते हैं। इसलिए हम उनसे बात होने के बाद वापिस कमरे पर लौट गए।

दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर पुलिस का कैसा बर्ताव था?

जब हम लोग बॉर्डर पर पहुंचे तब उससे पहले दिल्ली पुलिस की चौकी थी वहां पर पुलिस वाले बैठे थे। उन्होंने बुलाया उन्होंने पूछा हमसे कि आप कहां जाना चाहते हैं, कहां से हैं? और क्यों जाना चाहते हैं? हमने उनको बताया कि हमारे पास पैसे नहीं है। और जो सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा है कि उनको खाने से लेकर रहने तक की कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन हमें दिल्ली सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही। घर जाना हमारी मजबूरी है क्योंकि यहां पर राशन नहीं है। अगर हम गांव ना जाए घर ना जाए तो हम करें तो करें क्या?

दिल्ली पुलिस ने हमसे पूछा कि आप कहां के निवासी हैं हमने बताया कि हम यूपी के बस्ती जिले से रहने वाले हैं, उन्होंने मेरा नाम पिता जी का नाम सब कुछ रजिस्टर में नोट करवाया। उन्होंने कहा कि यहां से जाओगे तो आगे यूपी पुलिस का बॉर्डर है वहां पर भी पुलिस खड़ी है उससे आगे आपको जाने नहीं दिया जाएगा। दिल्ली पुलिस ने कहा कि आप रूप नगर मेट्रो स्टेशन के नीचे से चले जाओ दिल्ली पुलिस हमारी मदद करना चाह रही थी। उन्होंने बताया था लेकिन, वहां जाकर आगे का रास्ता ब्लॉक था। फिर किसी ने बताया कि बॉर्डर से जाएंगे यूपी पुलिस जाने नहीं देगी अगर अगर आप अंडरग्राउंड हो कर जाओगे तो शायद। हम उस रास्ते पर गए लेकिन, फिर भी हमें सफलता नहीं मिली उन्होंने जो रास्ता बताया था वहां भी पुलिस वाले बाइक से घूम रहे थे। उन्होंने हमसे पूछा कि आप लोग कहां जा रहे हैं तो हम लोगों ने बताया कि पुलिस वालों ने इधर से ही जाने को कहा है। उन पुलिस वालों ने हमसे कहा कि आप जहां से आए हैं, वही वापस चली जाए इधर से कोई रास्ता नहीं है जाने का।

हम 3 घंटे परेशान रहे हम लोग वापस आ गए फिर मैं मकान मालिक से बात की क्योंकि उस समय हम सारा सामान लेकर निकल गए थे, हम लोग मकान मालिक से यह कहकर निकले थे कि हमारे पास पैसे वैसे नहीं है क्योंकि हमारे कमरे का किराया 2 लोगों का 3200 रुपये है।

कमरे पर वापिस पहंचने के बाद राशन पानी का कैसे इंतजाम हुआ?

कमरे पर पहुंचने से पहले हमारी आप लोगों से (फोरम4) बात हुई फिर आप लोगों ने कहा कि इस तरह से मत जाइए खतरा है दुर्घटनाएं बहुत हो रही हैं। ट्रक से बसों से बहुत से लोग पैदल जा रहे हैं। सड़क हादसों का शिकार हो रहे हैं। ऐसे जाना ठीक नहीं है हम कोशिश करेंगे आप लोगों का मैसेज आगे पहुंचाने की। दिल्ली सरकार और यूपी सरकार तक आपकी बात पहुंचाएंगे कि खाने-पीने से लेकर रहने की व्यवस्था की जाए। फिर आप ही के द्वारा मुझे जानकारी मिली और मैंने अपने भाई बाबूलाल को भेजा संजय चौधरी जी के यहां। इसके बाद 2 किलो गेहूं 1 किलो दाल 1 किलो चावल मिला। हमारे पास ना ही गैस था ना ही तेल खाने के मसाले भी नहीं थे बहुत ही दुखद बात है कि हमारे पास राशन होने के बाद भी यहां यह संभव नहीं था कि हम लोग भोजन कर लेते इस चावल और दाल से भोजन नहीं बनता। गैस भी नहीं थी। उस दिन हमने वही खाना खाया जो हम रास्ते में खाने के लिए बना कर घर से लेकर गए थे। करौली में रैन बसेरा है हमारे मकान मालिक ने हमें बताया था कि वहां पर राशन मिल रहा है बना बनाया लेकिन, जब हम वहां पहुंचे तो वहां कुछ नहीं मिला फिर हम लोग वापस आ गए। खैर आगे किसी तरह जुगाड़ करके 4 दिन हमने उस राशन से भोजन बनाया।

सरकारी सहायता वाले पैकेट में बस इतना ही था वो भी जुगाड़ से मिला था (बिना कूपन)

अगले दिन हमें फिर राशन की जरूरत थी। इस बार हमने जो रजिस्ट्रेशन किया था उस पर राशन के लिए मयूर विहार फेस 3 में आम आदमी पार्टी के ऑफिस गया। वहां कूपन के द्वारा राशन दिये जाने की बात पता चली। लेकिन हमें राशन नहीं दिया और यह कहकर लौटा दिया कि नया कूपन नहीं मिलेगा। और हमारा जो कूपन था वो वेटिंग में था। उन्होंने कहा आपको वेट करना ही पड़ेगा राशन के लिए। हमने उनसे कहा कि हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है अब हमारी मदद करिए। आप हमें कुछ दिलवा दीजिए लेकिन, उन्होंने कहा कि आपका कूपन वेटिंग में है और आपको उसका इंतजार करना पड़ेगा।

इसके बाद निराश हुआ। फिर किसी तरह एक महिला ने हमारी मदद की थी उसके द्वारा हमें राशन उपलब्ध करवाया गया। उन्होंने मुझे 2 हफ्ते का राशन और गैस का 160 रुपये खुद कमरे पर आकर दिया। हमने पूछा कि आप कौन हैं? उन्होंने मुझे नहीं बताया बस इतना कहा कि आपको आगे जब भी किसी तरह से कोई जरूरत होगी तो आप हमें बताएं हम आपको देंगे। मुझे बहुत खुशी हुई। इसके बाद मुझे खाने को लेकर तोड़ी तसल्ली हुई। दरअसल यह एक रिपोर्टर के कहने पर मुझे उस महिला से मदद मिली थी।

किसी अपरिचित महिला की तरफ से काफी सहायता मिली, ये सरकारी राशन से कहीं अधिक है।

फोरम4 को जैसे ही जानकारी मिली थी कि इन लोगों को घऱ पहुंचना है। सारी जिम्मेदारियों के साथ इन लोगों की सहायता करने में अपने स्तर पर लोग लग गए। हमें खुद भी नहीं पता था कि सरकार किस तरह श्रमिक ट्रेन से लोगों को घर भेज रही है। कहीं पर किसी तरह की मीडिया में भी जानकारी न थी। हमने और कई साथियों से जानने की कोशिश की। तमाम रिपोर्टर्स ने खबर दी कि श्रमिक ट्रेन के लिए दिल्ली सरकार के विधायक के यहां जाकर रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा। इसके बाद जब विधायक के यहां जाकर पता किये तो पता चला कि उन्होंने तुरंत रजिस्ट्रेशन कर दिया। हालांकि कोई स्लिप वगैरह इन्हें नहीं दी गई। उसके बाद इन लोगों का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन फार्म का पता चलने के बाद दिल्ली सरकार की वेबसाइट से भी कराया गया।

श्रमिक ट्रेन के बारे में कैसे पता चला?

मुझे 20 मई को एक व्यक्ति का फोन आया उन्होंने मुझसे जानकारी ली कि आप कहां के रहने वाले हैं? कहां रह रहे हैं? और दिल्ली सरकार की तरफ से रेलवे विभाग में आपने अप्लाई किया था क्या गांव जाना चाहते हैं? उन्होंने हमें बताया कि ट्रेन कब की है और हमें अगले दिन ही सुबह 10:00 बजे खानपुर के लिए बुला लिया गया।

उन्होंने कहा कि खानपुर में आप लोगों का फॉर्म भरा जाएगा वहां से बस में बैठाकर रात को रेलवे स्टेशन छोड़ा जाएगा।

अब यह समय था जब दिल्ली में लॉकडाउन को लेकर ढिलाई दी जाने लगी। अपने घर से मैं और बाबूलाल, खानपुर एक ऑटो में पहुंचे। उसने हमसे 300 रुपये लिए। हम 12:00 बजे पहुंच गए थे वह हमारी एंट्री हुई। वहां पर लगभग 1500 से 2000 लोग थे। बसे खड़ी हुई थीं। सीआरपीएफ और पुलिस वाले खड़े थे फिर हमें उनकी ओर से बताया गया कि 3:00 बजे दोपहर की और 10:00 बजे रात की गाड़ी कैंसिल हो गई है। दरअसल वह लखनऊ और आजमगढ़ जा रही ट्रेनों के लिए रात को 10:00 बजे हमने सोचा कि क्यों ना लखनऊ पहुंच जाएं और फिर वहां से 250 किलोमीटर किसी तरह चले जाएंगे। यहां खानपुर में पार्क में हमें बिठाया गया था।

खानपुर पार्क का दृश्य जहां दिनभर बैठाया गया।

खाने-पीने की व्यवस्था थी, लेकिन  वहां पर केवल कुछ ही लोगों को मिल रहा था। हमें कुछ भी नहीं मिला। पानी तक पीने को नहीं मिला। लू चल रही थी। टेंट लगा था लेकिन किसी काम का नहीं था। हम लोग बस किसी तरह अपने नंबर आने का इंतजार करते रहे। वहाँ पर पानी की सुविधा थी। एक टैंकर था जो 12:00 बजे के बाद चला गया था। उसके बाद जो लोग वहां पर बैठे थे फल बांट रहे थे वह भी चले गए थे। हालात ऐसे हो गए थे कि वहां पर सब लोग परेशान हो गए थे कहीं भी कुछ पानी और खाने की व्यवस्था नहीं थी भूखे थे हम। किसी तरह पता चला कि एक गाड़ी 10 बजे की है मऊ जाने के लिए। इसके लिए शाम को 7:30 बजे रात में बस में बैठाया गया। बसे से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचना था। बस में बिठाते समय पूरे दिन भर प्यासे रहने के बाग पानी और बिस्कुट बिस्कुट दिया गया। 9:00 बजे वहां से बस चली पुरानी दिल्ली के लिए। उसमें हम 20 लोग थे सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा गया था। किसी अधिकारी की गाड़ी थी सारी बसें उसी अधिकारी के पीछे-पीछे चल रही थी बस में ही हम लोगों को टिकट दे दिया गया था। उन्होंने हमसे पूछा था कि आपको कौन से राज्य में जाना है कौन से जिले में जाना है।  9:30 बजे हम पुरानी दिल्ली पहुंचे और तकरीबन 11:00 बजे श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन चली यह आजमगढ़ से आगे मऊ जाने के लिए थी। हमने बताया हमें तो पहले ही उतरना है उसके बावजूद हमें मऊ का टिकट दिया गया। लखनऊ से हमारा घर बस्ती ढाई सौ किलोमीटर पड़ता और फैजाबाद से 70 किलोमीटर तो हमने उनसे पूछा कि हमें बस्ती जाना है तो क्या हम फैजाबाद उतर सकते हैं तो उन्होंने कहा-हां आप उतर सकते हैं, फैजाबाद उतर जाना।

ट्रेन का अनुभव कैसा रहा?

पुरानी दिल्ली से ट्रेन चली तो हापुड़ में दो से तीन घंटा रुकी रही। वहां पर लोग खाने पीने की चीजें ना मिलने की वजह से परेशान थे। श्रमिक ट्रेन में खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी। हम भूख प्यास सहन करते हुए किसी तरह बस ट्रेन में बैठे थे। रात 10:00 बजे से सुबह 12:00 बजे तक लोग ऐसे ही ट्रेन में भूखे प्यासे बैठे हुए थे। हमसे इसके बाद रहा नहीं गया तो हमने उस शख्स को कॉल किया जिन्होंने श्रमिक ट्रेन के बारे में जानकारी दी। उन्होंने हमें कहा कि कानपुर स्टेशन पर आपको खाने के पैकेट मिल जाएंगे और उसी स्टेशन पर मुंबई से या दूसरे राज्यों से दो चार गाड़ियां तीन गाड़ियां आ रही थी। इसीलिए किसी को मिला और किसी को कुछ नहीं मिला जब तक हम लोगों का नंबर आया तब तक सब कुछ खाने का खत्म हो चुका था। खाने का उनके पास था ही नहीं। हमें कॉल करने की वजह से बस पानी का एक पाउच मिल सका था। लखनऊ चले आये तब भी कुछ खाने पीने को नहीं मिला। फैजाबाद भी नहीं मिला। किसी स्टेशन पर कुछ खाने पीने की व्यवस्था नहीं थी।

ट्रेन में भूखे प्यासे सभी के दिनरात कटते रहे

रेलवे स्टेशन आते जा रहे थे और लोग उतरते जा रहे थे। जिसको भी जिस स्टेशन पर उतरना था उतरते जा रहे थे। वहां पर कोई पूछने वाला नहीं था कि आपको किस स्टेशन पर उतरना है? हम लोगों को बस्ती के लिए फैज़ाबाद स्टेशन पर उतरना था। 21 मई को 10 बजे रात को ट्रेन पर बैठने के बाद 22 मई को हम शाम 6 बजे फैज़ाबाद पहुचे। हम लोगों को फैज़ाबाद उतरना था बस्ती जाने के लिए । क्योंकि मऊ जाने के बाद हमे बस्ती वापिस आने के लिए ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती। लेकिन, वहां पर पुलिस थी। उन्होंने धमकाया कहा यहां आपको उतरने नहीं दिया जाएगा। पुलिस वालों ने किसी भी आदमी को फैजाबाद उतरने नहीं दिया। वहां पर उनसे कहा गया कि जितने भी लोग ट्रेन में हैं वह फैजाबाद नहीं उतर सकते, गाड़ी आजमगढ़ ही जाएगी। बताया गया आजमगढ़ से आगे मऊ पर सबकी थर्मल स्क्रीनिंग होगी। इसके बाद सभी को बस में बैठा कर उनके निवास स्थान तक पहुंचाया जाएगा। मजबूरी में हमें मऊ के लिए जाना पड़ा। जब हम मऊ रेलवे स्टेशन 23 मई को सुबह 6 बजे पहुंचे। इससे पहले ही पुलिस ने अनाउंसमेंट कर दिया गया था कि जो भी यात्री अपने डिब्बे में बैठे हैं वह अपनी सीट पर ही बैठे रहे तब तक बैठे रहे जब तक कि कोई सीआरपीएफ या पुलिस वाला उन्हें नहीं बुलाता है कि आप लोग बाहर निकल जाएं।

गाड़ी से हम लोग अपनी सीट पर बैठे रहे उसके बाद सुबह 6:00 बजे तकरीबन पुलिस वाले आते हैं और हम सभी को लेकर जाते हैं थर्मल स्क्रीनिंग और जांच के लिए। जांच होने के बाद सभी का नंबर नाम एड्रेस आधार कार्ड नंबर लिखा जाता है।

23 मई की सुबह 7:00 बजे हमें पूरी और सब्जी की जगह अचार खाने के लिए दिया जाता है। रेलवे स्टेशन के सामने एक ग्राउंड था, जिसमें सभी लोग बैठे थे वहां पर ही अनाउंसमेंट की गई कि बस्ती जिले या गोंडा जिले या कहीं और भी दूसरे जिले के लोग वहां खड़े हो जाएं। वहां काफी देर बैठे रहे।

बस के पास अनाउंसमेंट की जा रही थी की डिस्पेंसिंग का ध्यान रखें और मास्क लगाएं।

हम लोगों को 10 बजे सुबह बस्ती जाने वाली बस में बिठाया गया। बस में कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं था। मऊ में प्रशासन के द्वारा पूरा इंतजाम था। आदर और सम्मान के साथ वहां लोग पेश आ रहे थे। पूरे बस को लेकिन भर दिया गया। जिन लोगों का घर रोड पर था उनको उनके घर के सामने उतारा गया था और जिन लोगों का घर गांव में था, उन्हें यह कह दिया गया था कि आप अपने घर से साइकिल या कोई और साधन मंगा सकें मंगा लीजिए ताकि, आप घर पहुंच सकें।

इस तरह से इस पूरे यात्रा वृतांत से सिर्फ जो खामियां निकल कर आई वो यह कि अव्यवस्थाओं के इर्द गिर्द देखें तो ट्रेनों से संबंधित कोई स्पष्ट जानकारी का अभाव और खाने पीने का कोई इंतजाम मजदूरों को भारी पड़ रहा है। ट्रेनों के देरी से चलने की वजह से खामियों में स्पष्टता नजर आती है। इंतजाम न होने की वजह से बीमार प्रवासी मजदूर और बीमार होते चले जा रहे हैं। मऊ जैसे स्टेशनों की तरह केवल स्टेशनों पर पूरा इंतजाम करके इन्हें प्रताणित होने से बचाया जा सकता है।  

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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