दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान है। दिल्ली में मुख्य रूप से 3 बड़ी पार्टियों के बीच मुकाबला होना है। इसमें आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, बीजेपी शामिल हैं। आम आदमी पार्टी ने पिछले विधान सभा चुनाव 2015 में 67 सीटों से जीतकर अपनी सरकार बनाई थी। इससे बीजेपी को गहरा झटका लगा था। पांच सालों में उसने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी फ्री करने को अपना मुद्दा बनाया। वहीं बीजेपी ने मोदी सरकार के कामों को विधानसभा चुनाव में लगातार गिनाने की कोशिश की। इस बार के विधानसभा चुनाव में मुख्य रूप से मुकाबला बीजेपी-आप के बीच हो रहा है। इसमें चुनावी मुद्दों में बीजेपी के पास विकास के मुद्दों से ज्यादा उसको राष्ट्रवाद के मुद्दे रहे हैं। यह तब और साबित हो गया जब नागरिकता कानून के लिए देश भर में हो रहे प्रदर्शनों में से दिल्ली के शाहीन बाग के प्रदर्शन को चुनावी मुद्दा बनाए जाने का प्रयास किया गया। लगातार बीजेपी नेताओं की ओर से आप को घेरने के लिए विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के सहयोग करने और उन्हें देश विरोधी गतिविधियों में शामिल करने का इल्जाम अपने विपक्षी पार्टियों आप व कांग्रेस पर लगाया जाता रहा। इससे पता चलता है कि आप के लिए जहां एक ओर विकास के मुद्दे महत्व रखते हैं वहीं बीजेपी के लिए मोदी सरकार की 370 हटाने का मुद्दा और विवादित नागरिकता कानून पर विभाजित करके वोट मांगने का मुद्दा शामिल हैं।
लेकिन हद तब हो जाती है जब एक के बाद एक इन मुद्दों पर केंद्रीय मंत्रियों, विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों के आपत्तिजनक बयान आने शुरू हो जाते हैं। और इस पर चुनाव आयोग,दिल्ली पुलिस सब खामोश रहते हैं। केंद्र की मोदी सरकार के दबाव का सीधा असर तब और मालूम पड़ता है जब चुनाव आयोग कुछ भी बोलने तक की हिम्मत नहीं कर पाता। और उनके पार्टी के नेता विपक्ष में पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री तक को आतंकवादी बोल जाते हैं। इन बयानों की फेहरिस्त लंबी है लेकिन आइए इन्ही बयानों को सिलसिलेवार जानने की कोशिश करते हैं और उन पर सोशल मीडिया में उठ रहे सवालों पर भी नजर डालते हैं।
बात वहां से शुरू होती है जब बीजेपी नेता और अब दिल्ली के मॉडल टाउन से बीजेपी उम्मीदवार कपिल मिश्रा ने 20 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन क़ानून के समर्थन में रैली निकाली। और इस रैली में कपिल मिश्रा कुछ भड़काऊ नारे लगाते दिखे थे। ये नारा था, ”देश के गद्दारों को, गोली मारों ****को”। जाहिर है ऐसे नारों पर उनके खिलाफ बड़ा कदम उठाया जाना चाहिए था। हालांकि कुछ खास नहीं हुआ।
इसके बाद 23 जनवरी को कपिल मिश्रा ने एक ट्वीट किया जिससे वह फिर से चर्चा में आये। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि 8 फरवरी को दिल्ली में इंडिया बनाम पाकिस्तान मैच होगा। इस ट्वीट के बाद कपिल को चुनाव आयोग ने नोटिस भी भेजा था। शाहीन बाग में हो रहे धरना स्थल को मिनी पाकिस्तान बताया गया। इस पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और चुनाव आयोग ने उन्हें 48 घंटे के लिए किसी भी तरह के प्रचार करने पर रोक लगा दिया। हालांकि इस पर भी बयानबाजी बंद नहीं हुई।
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?????8 फरवरी को दिल्ली की सड़कों पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान का मुकाबला होगा
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) January 23, 2020
26 जनवरी को दिल्ली की एक चुनावी रैली में गृह मंत्री अमित शाह ने खुद कहा, ”बटन इतने ग़ुस्से से दबाना कि बटन यहां बाबरपुर में दबे। करंट तुरंत शाहीन बाग़ के अंदर लगे।”
इस बयान से मालूम पड़ता है कि देश के गृहमंत्री शाहीन बाग को अपने से अलग मानते हैं। इसी रैली में नागरिकता क़ानून का विरोध करने वाले लड़के को बीजेपी के कार्यकर्ताओं के पीटने का वीडियो वायरल हुआ था। लेकिन इस पर कोई कार्यवाही तक नहीं सामने आई।
इतना ही नहीं 27 जनवरी को केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने दिल्ली की एक सभा में भड़काऊ नारे लगवाए। यह भड़काऊं नारे कपिल मिश्रा के बयान की कॉपी थी। हालांकि इससे पहले गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहिंसा पर चलने की बात की थी। जबकि इससे पता चलता है कि इस प्रधानमंत्री के शह में क्या कुछ हो रहा है। दरअसल अनुराग ठाकुर का एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में अनुराग ठाकुर कहते हैं- “देश के गद्दारों को…”
चुनावी सभा में जुटे लोग इसके बाद कहते हैं, “गोली मारो **** को.”
ये सुनकर अनुराग कहते हैं- ”पीछे तक आवाज़ आनी चाहिए. गिरिराज जी को सुनाई दे.”
Shocking: It was a local BJP leader from Delhi back then, its now a front line BJP leader and MoS Finance, Anurag Thakur who is leading the crowd to chant “Desh ke gaddaron ko, Goli maro salon ko”.
Such is the level of politics, ladies and gentlemen! pic.twitter.com/rXZ8M8m6lz
— Prashant Kumar (@scribe_prashant) January 27, 2020
हालांकि इस पर अब चुनाव आयोग की तरफ सबकी नजरें हैं लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव आयोग, पुलिस के पास सारी शक्तियों के होने के बावजूद कुछ हो न सका है।
यह सिलसिला जाहिर है कि थम नहीं रहा यह भी जाहिर है क्यों नहीं थम रहा?
बीजेपी सांसद परवेश वर्मा का दिल्ली की एक चुनावी सभा और समाचार एजेंसी ANI को दिया इंटरव्यू चर्चा में है। परवेश वर्मा ने एक चुनावी रैली में कहा था, ”ये बात नोट करके रख लेना। ये चुनाव कोई छोटा-मोटा चुनाव नहीं है। ये देश की अस्मिता, एकता का चुनाव है। अगर 11 फरवरी को बीजेपी की सरकार बन गई तो एक घंटे के अंदर शाहीन बाग़ में आपको एक भी आदमी दिखे तो मैं भी यही हूं और आप भी यहीं हैं.”
इसके बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर गुस्सा निकालना शुरू कर दिया हालांकि यह बेहद हास्यास्पद भी है कि गृह मंत्रालय के अंतर्गत पुलिस को चुनाव मुद्दे के रूप में भुनाने के लिए शाहीन बाग के धरने को 11 फरवरी तक का इंतजार करना पड़ेगा।
परवेश वर्मा ने आगे कहा, मेरे लोकसभा क्षेत्र में जितनी मस्जिद सरकारी ज़मीन पर बनी हैं, एक महीने के अंदर एक मस्जिद नहीं छोड़ूंगा।”
परवेश वर्मा ने एक बयान में हां तक कह दिया कि, ”देखिए अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी कहते हैं कि वो शाहीन बाग़ के साथ हैं। आज से कुछ साल पहले जो आग कश्मीर में लगी थी. वहां कश्मीरी पंडितों की बहन, बेटियों के साथ रेप हुआ था।”
”इसके बाद ये आग यूपी, हैदराबाद, केरल में लगती रही। आज वो आग दिल्ली के एक कोने में लग गई है। ये आग कभी भी दिल्ली वालों के घरों में पहुंच सकती हैं। दिल्ली वालों को सोच समझकर फ़ैसला करना पड़ेगा. ये लोग आपके घरों में घुसेंगे। आपकी बहन, बेटियों को उठाएंगे, उनका रेप करेंगे। उनको मारेंगे। इसलिए आज समय है। कल मोदीजी और अमित शाह जी बचाने नहीं आएंगे।”
#WATCH: BJP MP Parvesh Verma says, “…Lakhs of people gather there (Shaheen Bagh). People of Delhi will have to think & take a decision. They’ll enter your houses, rape your sisters&daughters, kill them. There’s time today, Modi ji & Amit Shah won’t come to save you tomorrow…” pic.twitter.com/1G801z5ZbM
— ANI (@ANI) January 28, 2020
इसका मतलब है कि आप देख रहे हैं कि आलोचनाएं तो होती रहेंगी और सवाल भी उठाए जाएंगे। जिस तरह से सत्ता में बैठे लोगों की ओर से ही इस तरह की बयानबाजी हो रही है और इसका समर्थन दिया जा रहा है। इससे सरकार की जवाबदेही का पता तो चलता ही है। साथ ही मीडिया, और लोकतंत्र के अन्य स्तम्भों संसद के साथ ही तमाम आयोगों, कोर्टों के ऊपर भी सवाल उठना लाजमी है। इस तरह की घटिया स्तर की राजनीति पर फैसला तो 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद तो जाहिर हो ही जाएगा। मगर अगर इससे न भी जाहिर हो पाए तो लोकतंत्र और उसकी मर्यादा में काम कर रहे तमाम तरह की संस्थाओं का गैरजिम्मेदाराना रवैया कभी जनमानस के विश्वास को जीत नहीं पाएगी।
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