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डीडीयू के प्रोफेसर का दावा, इस सिद्धांत से कोरोना संक्रमण का खतरा समाप्त हो जाता है!

कोरोना वाइरस का कहर जारी है। इससे छुटकारा पाने के लिए तमाम शोध और प्रयोग किये जा रहे हैं। विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर भी इसमें लगे हुए हैं। इसी कड़ी में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (उत्तर प्रदेश) के जंतु विज्ञान विभाग के प्रो आरके उपाध्याय ने संक्रमण को रोकने के लिए अस्थमा-सगन्ध-कार्बन-संलयन विधि का फॉर्मूला सुझाया है। उनका दावा है कि कोरोना जैसे वायरस से लड़ने के लिए इस प्रकार के सिधांत काफी हद तक कारगर साबित हो सकते हैं। इस पर International Journal of Zoological Investigations Vol. 6, No. 1, 71-93 (2020) में एक आर्टिकल भी प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक Thermal-Aroma-Organic-Carbon-Fusion Therapy: An Open Air Conventional Method for Clearance of Nasal Air Passage, Trachea, Lungs and Immunity Boosting Against Influenza Virus है।

आइये जानते हैं उनका इस संबंध में क्या कहना है-

उष्मीय-सगन्ध-कार्बन-संलयन विधि में पार्टिकिल फ्युजन के सिद्धांत को अपनाया गया है। इस विधि में रोगी को एक छोटी हवादार केबिन में प्राकृतिक ऊष्मीय तापमान स्रोत एवं सगन्ध तेलों के पास बैठाकर, गर्म श्वांस को लेने के लिए कहा जाता है। इसमें संक्रमित व्यक्ति की श्वांस में कोरोना वाइरस का उत्सर्जन होता है। जब पहले से तैयार ऊष्माीय ताप स्रोत जो कि सरसों के तेल का लैम्प या दिया है, उसी के पास संगन्ध तेलों को छोटी शीशियों में भरकर रखा जाता है। सरसों के तेल के जलने से दीए के ईद-गिर्द उच्चतापीय तरंगें, प्रकाशविकिरण एवं जैवीय कार्बन हवा में उत्सर्जित होता है। इसी हवा में दीये की लौ के कारण इसके ऊपर हवा के गर्म होकर हल्के होने से उच्चतापीय तरंगें कनवैक्शन करेट उत्पन्न करती है। इस 650-13000 उच्चताप पर टिंडल प्रभाव के कारण कार्बन अणु एक दूसरे से बड़ी तेजी से जुड़कर कोलोइड बनाते है तथा इन गर्म कोलोइड का वाइरस पार्टिकिल से सुपर कोलोइजन होता है, इसके तदोपरान्त उष्मीय ताप के कारण गर्म कोलोइड वाइरस पार्टिकिल को निष्क्रिय कर देते है। कोरोना वाइरस पर हवा में तीन आणविक प्रहार एक साथ होते है। पहला रेडिएशन विकिरण तरंगों का, उष्मीय ततापीय तरंगा का तथा कार्बन कोलोइड का संघटय एवं सगन्ध विषाणु मारक संगध अणुओं द्वारा स्वतः टिंडल प्रभाव के कारण होता हैं जिससे वाइरस का बच निकलना अति मुश्किल होता हैं। दूसरी ओर दीपक के परिक्षेत्र में बैठे रोगी के श्वांस लेने के कारण हवा के साथ संगन्ध अणु श्वास नाली से अन्दर जाते है तथा फेफड़ों में मरने लगते हैं, तथा रोगी के शरीर के आस-पास गर्मी (40-420c) बढ़ने से डायाफ्राम की मांसपेशी द्वाली हो जाती है। फेफड़े फैलते हैं, तथा वायुकोशिकाओं अल्वीओलाई पर हवा की सतह खुल जाती है। ऐसा होने से रोगी की ष्वासनाल में सभी अवरोध साफ हो जाते है तथा रोगी को श्वांस लेने में कोई परेशानी महसूस नहीं होती। इस तरह रोगी को 20 मिलट तक लगातार इसी उष्मा-तापीय सगन्ध-कार्बन क्षेत्र में बैठाने पर उसके नाशाछिद्र, श्वसनाल एवं फेफड़े में श्वास लेने के सभी अवरोध दूर हो जाते है। दिन में दो बार यह प्रक्रिया अपनाने से वायरस का लोड रोगी में काफी कम हो जाता है।

तथा वाह्य एवं आन्तरिक श्वसंन प्रक्रियाएं सामान्य हो जाती हैं। लगातार इस विधि को अपनाने के तीन दिन के अन्दर फेफड़े में सूजन समाप्त हो जाती है। इस उपचार विधि से चिन्हित लक्षण वाले रोगी के अतिरिक्त अचिन्हित व्यक्तियों को यदि दिन में एक बार केवल 10 मिनट का उपचार प्रदान किया जाय तो उनमें कोरोना होने का खतरा काफी कम हो जाएगा। इस विधि का उपयोग ’’हाटस्पॉट’’ के आस-पास रह रहे लोगो की रक्षा करने में अति कारगर सिद्ध होगा। कोई भी व्यक्ति जिसे सर्दी-जुकाम-खांसी की शिकायत हों वह इसका उपयोग कर सकता है।

इसके साथ ही एक अन्य उपचार जिसमें रोगी को गर्म भाप दिलायी जाती है इससे भी नासामार्ग एवं वायु मार्ग के श्वांस अवरोधों को हटाकर श्वांस लेने में हो रही परेशानी से रोगी को निजात दिलायी जाती है। पानी में अजवाइन, हल्दी, पुदिना की पत्ती, नीबू की पत्ती संतरे का छिलका तथा नमक को मिलाकर तेज गर्म करके रोगी को 20 मिनट तक भाप देने से श्वास लेने में आराम मिलता है। नाक बहना तथा छींक आना, खांसी तथा बलगम के फसने की समस्या समाप्त हो जाती है। इसी जल से रोगी को 20 मिनट तक गरम पानी के गलाले करने से गला, नासामार्ग, श्वांसनाल की सूजन को कम किया जाता है। इसके लगातार 15-20 दिन प्रयोग से गले एवं श्वांस सम्बन्धी समस्याएं पूर्णतया समाप्त हो जाती है।

रोगी के आंखों में कोरोना वायरस के संक्रमण को 100 मिली शुद्ध गुलाब जल (आसवित) में फिटकरी की बहुत सूक्ष्म मात्रा 100 मिलीग्राम को मिलाकर दिन में तीन बार डालने पर वाइरस खत्म हो जाती है। इसके अतिरिक्त रोगी को रात में सामान्य नीद लेने, रूधिर प्रवाह सामान्य करने के लिए देशी घी में 100 मिलीग्राम कपूर मिलाकर, गर्म करके रोगी के कान, कनपटी, गला, छाती, पसली, घुटने तथा पैरों के तालू में लगाने से विशेष आराम मिलता है। इससे रोगी के शरीर में पेशीय ऐंठन, जोड़ो का दर्द, सिरदर्द, कन्जेक्शन से काफी राहत मिलती है।

अगली उपचार विधि में कढ़ी पत्ता की पत्तियां, नीबू की नई कोमल पत्तियां तथा चिरायता (उल्टा चुच्चुटा) दूध को कालानमक तथा काली मिर्च आधा लीटर पानी में डालकर खूब गर्म करें तथा 250 मिलीग्राम तक क्वाथ को बचने दें। इसका 50 मिलीलीटर दिन में दो बार सेवन करने से आंत्रीय एवं शरीर के भीतरी अंगों में स्थित वायरस को मारा जा सकता है। इसमें आंत्रों में पीएच के ज्यादा होने से 90 प्रतिशत तक वाइरस निष्क्रिय हो जाता है। इसको दिन में दो बार 20 दिन तक प्रयोग करने से वायरस जनित संक्रमण एवं ज्वर पूर्णतया समाप्त हो जाता है।

इसके अतिरिक्त रोगी को घर पर काढा/सीरप बनाकर नियमित 20 दिन तक दे सकते है। इस सीरप को तैयार करने के लिए मुख्य पादप अवयव है। अजवाइन, तुलसी की पत्ती, पीपर, जिलोय, धृतकुमारी, कालीमिर्च, लौंग चिरायता, अदरक, करीलफल, कड़ीपत्ता, दालचीनी, सतावरी, जायफल, हल्दी कोसकी जड़, केसर, देशी गेन्दा का फूल, पुदीना की पत्ती तथा सफेद फिटकरी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में; 05.1 ग्राम तकद्ध एक लीटर पानी में डालकर खूब गर्म करें तथा इसका आधा पानी जल जाने दें। 500 मिलीलीटर सीरप को छानकर, ठण्डाकर शीशी में भरकर रखें। इस सीरप का 5 मिलीलीटर आधा गिलास गर्म पानी के साथ दिन में 4 बार सेवन करें। 20 दिनों तक लगातार सेवन से रोगी का शरीर फ्लू वाइरस मुक्त हो जायेगा। इस सीरप में हजारों वाइरस को मारने वाले मूल कार्वनिक अणु मौजूद होते है। जिनकी विषाणु वाइरस मारक क्षमता अन्तराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में प्रयोग द्वारा सुनिश्चित की जा चुकी है। यह एक सिद्ध औषधि है, जिससे शरीर में कहीं भी स्थित कोई भी रोगकारी सूक्ष्म जीव बच नहीं सकता है। यह विधि रोगी में होने वाली सेप्सिस को समाप्त कर संक्रमण को जड़ से मिटाने में समर्थ है।

इसके अतिरिक्त एक अन्य औषधीय उपचार जिसमें फ्लू वाइरस को मारने के लिए कार्बनिक भस्म जिसे लौंग, मखाना, नारियल की गिरी को जलाकर बनाया जाता है। सफेद फिटकरी को तवे पर भूनकर फूला बनाया जाता है। इन दोनों को मिलाकर एक ग्राम मिश्रण 20 ग्राम शहद में दिन में तीन बार लेने से रोगी की अंत्र में उपस्थित फ्लू वाइरस संक्रमण को रोका जा सकता है। इसका सेवन करने के एक घण्टे तक रोगी को पानी नहीं पीने दिया जाता। इस तरह शहद में मिश्रित कार्बन कोलोइडस तथा फिटकरी आंत्र की तंतुमय एपीथीसियम कोशिकाओं की सतह पर वाइरस के चिपकने को रोक देती है। इससे वाइरस कोशिका के अन्दर प्रवेश नहीं कर पाता तथा रिफ्लेकट नहीं कर पाता। वाइरस गाढ़े कोलोइड सांद्रण में ट्रैप हो जाता है तथा वाइरस की स्पाइक प्रोटीन रोगी को आंत्र कोशिकाओं पर उपस्थित ACE-2 रिसेप्टर से नहीं बंध पाता है। यहां भी फिटकरी पीएच को बढ़ाती है। जो वाइरस के लिए अतिमारक साबित होती है। इन सभी विधियों से वाइरस को शरीर में होने वाली हर तरीके के संक्रमण, उसके कोशिका, अंत्रको, उपायों पर होने वाले दुष्प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। उपरोक्त सभी उपचार विधियों के द्वारा वायरस लोड को कम करने श्वसन को सामान्य करने, सेप्सिस को रोकने, व्रांकस में म्यूकस काटे coat को समाप्त करने, फेफड़ों की सूजन को कम करने की वृहद क्षमता है। इससे रोगी का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है तथा इन सभी विधियों को लगातार 20 से 27 दिन तक उपचार करने से पुनः कोरोना वाइरस संक्रमण फैलने का खतरा पूर्णतया समाप्त हो जाता है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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