केंद्र सरकार ने अब जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। साथ ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किया गया है। इस तरह से जम्मू-कश्मीर की हालत अब दिल्ली जैसे राज्य की तरह हो गई है। अब जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो जाने से उसको मिली सारी आंतरिक शक्तियां खत्म हो गई हैं।
जम्मू-कश्मीर को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ा ऐतिहासिक फैसला लिया है। गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार का संकल्प पत्र पेश किया। शाह ने कहा कि कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटा दिए गए। अब इसके सभी खंड लागू नहीं होंगे। गृहमंत्री ने राज्यसभा में कश्मीर के पुनर्गठन का प्रस्ताव भी पेश किया है।
शिवसेना और बीएसपी ने मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णय का समर्थन किया है।
अनुच्छेद 370 की जरूरत क्यों पड़ी
गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया था। बाद में यह धारा 370 बनी। इन अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले। 1951 में राज्य को संविधान सभा अलग से बुलाने की अनुमति दी गई। नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।
जम्मू कश्मीर के पास थे ये विशेष अधिकार
धारा 370 के तहत संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार थी।
अलग विषयों पर कानून लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती थी।
जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था।
शहरी भूमि कानून (1976) भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था।
जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे।
धारा 370 के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार था।
ये हुए बड़े बदलाव-
जम्मू-कश्मीर अब 2 हिस्सों में बंट गया है- जम्मू कश्मीर व लद्दाख
जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया है।
साथ ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किया गया है।
दोनों केंद्र शासित राज्य बन गए। जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश होगा जहां विधानसभा के चुनाव होंगे। दूसरा लद्दाख ऐसा केंद्रशासित प्रदेश होगा जहां विधानसभा नहीं होगी। यहां एलजी के हाथ में कमान होगी। यानी जम्मू-कश्मीर अब दिल्ली की तरह विधानसभा वाला और लद्दाख, चंडीगढ़ की तरह विधानसभा विहीन केंद्रशासित प्रदेश होगा।
मोदी सरकार के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर को दूसरे राज्यों से मिले ज्यादा अधिकार खत्म ही नहीं बल्कि कम भी हो गए हैं।
दिल्ली की तरह अब जम्मू-कश्मीर में चुनाव होंगे और सरकारें भी होंगी, लेकिन उपराज्यपाल का दखल काफी बढ़ जाएगा। दिल्ली की तरह जिस प्रकार सरकार को सारी मंजूरी उपराज्यपाल से लेनी होती है, उसी प्रकार अब जम्मू-कश्मीर में भी होगा।
अब भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू होगा। जम्मू-कश्मीर का अब अपना अलग से कोई संविधान नहीं होगा।
जम्मू-कश्मीर ने 17 नवंबर 1956 को अपना संविधान पारित किया था, वह पूरी तरह से खत्म हो गई है।
कश्मीर को अभी तक जो विशेषाधिकार मिले थे, उसके तहत इमरजेंसी नहीं लगाई जा सकती है, लेकिन अब सरकार के फैसले के बाद वहां इमरजेंसी लगाई जा सकती है।
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का था। लेकिन देश की तरह यहां भी पांच साल विधानसभा का कार्यकाल होगा।
जम्मू-कश्मीर में वोट का अधिकार सिर्फ वहां के स्थायी नागरिकों को था। किसी दूसरे राज्य के लोग यहां वोट नहीं दे सकते और न चुनाव में उम्मीदवार बन सकते थे। अब सरकार के फैसले के बाद भारत के नागरिक वहां के वोटर और प्रत्याशी बन सकते हैं।
पहले जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था। लेकिन अब राष्ट्रपति को सारे अधिकार मिल गए हैं।
जम्मू – कश्मीर का अब अलग झंडा नहीं होगा। वहां अब तिरंगा लहराएगा।
अब कोई भी भारत का नागरिक वहां जमीन खरीद सकेगा।
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