‘लोकतंत्र खतरे में हैं’, ये शुरुआती पंक्ति है इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर डिमोक्रेसी ऐंड इलेक्टोरल असिस्टांस (International-IDEA) संस्था की 2021 के रिपोर्ट की जो इस सोमवार को जारी हुई है। 1995 में स्थापित स्वीडन की ये संस्था दुनियाभर में लोकतंत्र की हालत पर अध्ययन करती है। भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से एक है। इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में तानाशाही की तरफ जाने वाले देशों की संख्या लोकतंत्र के तरफ जाने वाले देशों से अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में 20 देश तानाशाही की ओर अग्रसर हैं और सिर्फ 7 देश लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि लगातार 5 वर्षों से ये ट्रेंड बना हुआ है। रिपोर्ट में भारत में गिरते लोकतंत्र को महत्वपूर्ण रूप से रेखांकित किया गया है।
भारत में तेजी से कमजोर हो रहा है लोकतंत्र
भारत के लिए ये पिछले एक साल में तीसरी रिपोर्ट है जिसने भारत में गिरते लोकतंत्र को उजागर किया है। इस साल मार्च के महीने में वी-डेम इंस्टिट्यूट (V-DEM) की रिपोर्ट ने भारत को चुनावी लोकतंत्र (Electoral Democracy) से चुनावी निरंकुशता (Electoral Autocracy) की श्रेणी में रखा था। वहीं फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट में भारत को स्वतंत्र देशों की सूची से हटाकर ‘आंशिक स्वतंत्र’ (Partly free) देशों की सूची में रखा था। जिसके बाद काफी हंगामा हुआ था। हालिया जारी रिपोर्ट में भारत, ब्राज़ील, अमेरिका के साथ दुनिया में सबसे तेजी से गिरते लोकतंत्र के मामले में टॉप-3 देशों में है। पिछले 5 साल में लोकतंत्र कमजोर होने के मामले में भारत इस क्षेत्र में कंबोडिया के बाद दूसरे नंबर पर है। हालाँकि भारत अभी भी ‘मध्यम प्रदर्शन वाला लोकतंत्र’ (मिड लेवल परफार्मिंग डेमोक्रेसी) की श्रेणी में बना हुआ है।
लोकतंत्र के गिरावट को मिल रहा है लोगों का समर्थन
रिपोर्ट के अनुसार विश्व की दो तिहाई आबादी या तो अलोकतांत्रिक देशों में रहती है या फिर ऐसे देशों में जहां लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारें, स्थापित लोकतान्त्रिक देशों सहित, तेजी से तानाशाही रणनीति को अपना रही हैं। अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक गिरावट को अक्सर लोगों का समर्थन मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है, “संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के तीन सदस्य हंगरी, पोलैंड और स्लोवेनिया में भी लोकतंत्र का स्तर गिरा है।” स्लोवेनिया 2021 में यूरोपीय संघ का अध्यक्ष रहा है।
महामारी से लोकतंत्र के गिरावट को मिली तेजी
रिपोर्ट में दुनिया भर में लोकतंत्र के गिरावट में कोरोना महामारी की महत्वपूर्ण को भूमिका रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकतंत्र खतरे में, बाहर और अंदर की तानाशाही प्रवृत्तियों से लोकतंत्र के अस्तित्व को कड़ी चुनौती मिल रही है। कोविड महामारी ने इन चुनौतियों को कई गुना बढ़ा दिया है। जिसमें राज्यों के द्वारा थोपे गए आपातकाल, गलत सूचनाओं का प्रसार, स्वतंत्र मीडिया और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रहार शामिल हैं। महामारी का सरकारों ने अतिरिक्त दमनकारी रणनीति और आलोचकों को चुप कराने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया। बेलारूस, क्यूबा म्यांमार, निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे देशों में इसके स्पष्ट प्रमाण देखने को मिले हैं।
हर आधार पर पिछड़ा भारत
ये संस्था लोकतंत्र का अध्ययन 5 प्रमुख आधारों पर करती है: प्रतिनिधि सरकार, मौलिक अधिकार, सरकार पर नजर रखना, निष्पक्ष प्रशासन और जन भागीदारी।
प्रतिनिधि सरकारों के मानक पर भारत का स्कोर 1975 में 0.59 था। 2015 तक इसमें तेजी देखी गई, यह बढ़कर 0.72 तक पहुंच गया था, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से ही इसमें गिरावट देखी जा रही है। 2020 में यह 0.61 रह गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि ये आंकड़ें इमर्जेंसी के समय के बराबर है।
मौलिक अधिकारों की बात करें तो इस मानक पर भारत का स्कोर 2010 में 0.58 था। 2020 तक यह गिरकर 0.54 पहुंच गया। नागरिक स्वतंत्रता के मानक पर भी गिरावट देखी गई। 2010 में 0.65 से गिरकर यह 2020 में 0.53 तक पहुंच गया। धार्मिक स्वतंत्रता के मानक में भी अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, इंडोनेशिया श्रीलंका समेत कई देशों की राजनीति में धर्म का प्रवेश हो गया है। जिससे लोकतंत्र कमजोर होता है। इसमें कहा गया है कि लगातार चुनाव का जिक्र करके अकसर लोकतंत्र कमजोर होने के सवाल पर परदा डाल दिया जाता है। साफ-सुथरे चुनाव के मामले में भी पिछले 5 साल में गिरावट देखी गई है, 2015 इस मानक पर स्कोर 0.85 था, जो कि 2020 में गिरकर 0.65 हो गया है।
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