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किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह दूसरों की देशभक्ति पर शक करे- चंद्रशेखर

समाजवादी आंदोलन से निकल कर अपने तीखे तेवर, विद्वान लेखक, लोकप्रिय नेता  के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों व सामाजिक परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता के साथ राज्य मंत्री या केंद्र में मंत्री बने बिना ही सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले चंद्रशेखर

चंद्रशेखर जी की 93वी जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम!

चंद्रशेखर जी का जन्म 17 अप्रैल 1927 को बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी गाँव मे हुआ था। इनके पिता सदानन्द सिंह और माता द्रौपदी देवी पत्नी द्विजा देवी थी। 1949 में बलिया के सतीश चन्द्र कालेज से बीए और 1951 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए किया। इसी वर्ष शोध-कार्य के दौरान आचार्य नरेन्द्रदेव के कहने पर बलिया जिला सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री बने। चंद्रशेखर समाजवाद के विख्यात मनीषी आचार्य नरेंद्रदेव के शिष्य थे। बलिया में जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय भी उन्हीं के नाम पर है।

चंद्रशेखर अपने बेबाक व्यक्तित्व के लिये जाने जाते है इस वजह से ज्यादातर लोगों की उनसे पटती नहीं थी। कॉलेज समय से ही वे सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए। सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए। सन 1977 में ही वो बलिया जिले से पहली बार लोकसभा के सांसद बने।

वे बेहद सरल जीवन व्यतीत करते थे और श्रम को महत्व देते थे। उनका मानना था कि “हमारी श्रम शक्ति का सहयोग ही, चाहे वह कारखानों में कार्यरत हो या खेतो में इस देश का भविष्य बचा सकता है।”

उनके बेटे नीरज शेखर के अनुसार उनके चलने की गति इतनी तेज थी कि सभी पिछड़ जाते थे, उनका खाना बेहद साधारण होता था जैसे गाँव मे किसानों का भोजन होता है। प्रधानमंत्री होने के दौरान भी वो जब कभी भी बलिया जाते थे ऐसे कमरे में रहते थे जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती। मई के 45-46 डिग्री तापमान में भी वो बिना एसी-कूलर के रहते थे।

कुछ समय पहले ही पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का संस्मरण आया था, जिसमें उन्होंने लिखा था अगर चंद्रशेखर को और मौका मिला होता तो वो देश के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से एक साबित हुए होते।

चंद्रशेखर के प्रधान सचिव रहे एसके मिश्रा ने बीबीसी को बताया, “नवाज शरीफ़ चंद्रशेखर के भाषण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस समय अपने कार्यालय में काम कर रहे रियाज़ खोखड़ से कहा कि काश तुम भी मेरे लिए इतना अच्छी तक़रीर लिखते।”

‘चंद्रशेखर: द लास्ट आइकॉन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश व मेलबर्न (आस्ट्रेलिया) के डिकीन यूनिवर्सिटी से भारत-चीन संबंध पर डाक्टरेट कर रहे रविदत्त वाजपेयी ने लिखी है। इसकी भूमिका पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने तैयार की है। बता दें कि प्रामाणिक जीवनी के रूप में अंग्रेजी में यह पहली किताब है।

उन्होंने दक्षिण में कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट तक लगभग 4,260 किलोमीटर की मैराथन पदयात्रा की थी। 26 जून, 1975 को आपातकाल लागू होने पर गिरफ्तारी। 19 महीने जेल में। 1977 में जनता पार्टी के अध्यक्ष। इसी वर्ष बलिया से लोकसभा के लिए चुने गए। आपातकाल के दौरान जेल में रहते हुए उन्होंने जो डायरी लिखी थी, वह बाद में ‘मेरी जेल डायरी’ के नाम से प्रकाशित हुई। इसमें ‘सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता’ उनके लेखों का एक और प्रसिद्ध संकलन है।

बता दें कि चंद्रशेखर 10 नवम्बर, 1990 को प्रधानमंत्री बने और 21 जून, 1991 तक इस पद पर रहे।12 दिसम्बर, 1995 को उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार मिला। 2004 में बलिया से पुन: लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 2007 की 8 जुलाई को उनका निधन हो गया।

जीवन जैसा जिया, मेरी जेल डायरी, डायनेमिक्स ऑफ सोशल चेंज, रहबरी के सवाल, चन्द्रशेखर से संवाद और सर्वश्रेष्ठ सांसद चन्द्रशेखर (अन्तिम दोनों पुस्तकों के सम्पादक : सुरेश शर्मा) प्रमुख प्रकाशित कृतियों में से एक है।

पीएम मोदी से मुलाकात की यादें

प्रधानमंत्री ने याद करते हुए कहा कि चन्द्रशेखर अटल बिहारी वाजपेयी को गुरूजी कहकर संबोधित करते थे। वह एक सिद्धांत वाले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने समय की मजबूत राजनीतिक पार्टी का विरोध करने में भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई, क्योंकि वे कुछ मामलों पर उस राजनीतिक पार्टी से असहमत थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि मोहन धारिया और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे राजनीतिक नेता चन्द्रशेखर का बहुत सम्मान करते थे।

नरेन्द्र मोदी ने चन्द्रशेखर के साथ अपनी अंतिम मुलाकात का भी स्मरण किया। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री बीमार थे और उन्होंने टेलीफोन पर मुझे मुलाकात करने का आमंत्रण दिया। उस बातचीत में चन्द्रशेखर ने गुजरात के विकास के बारे में पूछताछ की और कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने विचार साझा किए. प्रधानमंत्री ने उनके विचारों की स्पष्टता, लोगों के लिए प्रतिबद्धता तथा लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति समर्पण की सराहना की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों, गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए चंद्रशेखर द्वारा की गई ऐतिहासिक ‘पदयात्रा’ को भी स्मरण किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम उस समय उन्हें वह सम्मान नहीं दे पाए, जिसके वे हकदार थे।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

पूजा वर्मा
कविताएं लिखने का शौक है, कई काव्य संग्रह किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। समसामयिक विषयों पर लेख भी लिखती हैं।

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