SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

ईवीएम–वीवीपैट मामला : सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक चला संघर्ष, लेकिन हासिल क्या हुआ?

चुनावों के नजदीक आते ही हर बार की तरह इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में भी ईवीएम-वीवीपैट का मामला उठाया जा रहा है। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 की खास बात यह रही कि ईवीएम -वीवीपैट का मामला केवल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि ईवीएम हटाने और बैलेट पेपर से चुनाव करने को लेकर जनता ने सड़कों पर आंदोलन होते देखा। इस तरह इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि राजनेताओं को भी अपने भाषणों में ईवीएम के मसले को लेकर बोलना पड़ा। जनता भी हर तरफ महत्वपूर्ण मुद्दों की तरह प्रमुखता से इस मुद्दे पर बोलने लगी। सोशल मीडिया के माध्यम से बहस के बाद मेनस्ट्रीम मीडिया को भी इसका जिक्र करना पड़ा। यही नहीं चुनाव आयोग को ईवीएम के इस विवाद पर चुनावों की घोषणा करते हुए प्रेस कांफ्रेंस में फ्री एंड फेयर चुनाव कराने को लेकर सफाई देनी पड़ी। यू-ट्यूब पर ईवीएम की वीडियो के साथ नोटिस देना पड़ा। इतना ही नहीं ईवीएम को लेकर कई यू-ट्यूब चैनलों की वीडियो के रेवेन्यू को रोक दिया गया। कई चैनलों को डिमोनेटाइज्ड कर दिया गया।

सोशल मीडिया पर तमाम एक्टिविस्ट, किसान नेताओं, प्रोफेसर, राजनेताओं औऱ वकीलों ने ईवीएम में तथाकथित गड़बड़ी का मुद्दा उठाना शुरू किया तो धीरे -धीरे विपक्ष की हार को लोगों ने ईवीएम में गड़बड़ी से जोड़ना शुरू कर दिया। तमाम दावे हुए जिसने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए। इस मामले को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पड़नी शुरू हुईं। और इस मसले की सुनवाई काफी देरी से शुरू हई जब पहले चरण के चुनाव नजदीक आ गए। सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई को लेकर तमाम प्रदर्शन 3-4 महीने पहले से शुरू हुए। जिसमें नेतृत्व कर रहे तमाम वकीलों की टीम रही। भानु प्रताप सिंह, महमूद प्राचा, बलराज सिंह मलिक, राजेंद्र पाल गौतम, नरेंद्र मिश्र जैसे तमाम वकीलों ने इस मुद्दे को प्रेस कांफ्रेंस और प्रदर्शन के माध्यम से सड़क तक उठाया।

वहीं एड. प्रशांत भूषण, एड. संजय हेगड़े ने ईवीएम के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बहस की। इस मामले में पहले चरण के चुनाव हो चुके। दूसरे चरण का चुनाव नजदीक है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित है। फैसले में देरी और सुनवाई में फैसले को लेकर ज्यादातर लोग शंका जाहिर कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट शायद इस मसले पर कुछ खास फैसला नहीं देने जा रहा। हालांकि इस फैसले को लेकर शुरू में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के बीच काफी सवाल जवाब हुए जिससे लोग काफी उत्साहित नजर आ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट पर्ची की 100 फीसद मिलान की मांग पर अब 24 अप्रैल को दोबारा चुनाव आयोग से कुछ सवाल पूछकर फैसला सुरक्षित रख लिया। लोक सभा चुनाव का परिणाम 4 जून को आ जाएगा। इसे देखते हुए इस बार के चुनाव को लेकर ईवीएम और वीवीपैट को लेकर सवाल जो उठ रहे थे। उस पर कितना कुछ लगाम लग सकेगा। यह 4 जून को परिणाम के बाद ही पता चल सकेगा। लेकिन विपक्ष इस मुद्दे को जिस तरह से इस चुनावों में बताने की कोशिश कर रहा है। उससे यही लगता है कि इस पर सवाल उठने थमेंगे नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट के ऊपर है कि वो किस तरह से जनता के मन में शंकाएं हैं उनका समाधान करता है।

कैसे ईवीएम-वीवीपैट के मामले ने पकड़ा तूल?

चुनावों से पहले ईवीएम को लेकर विपक्षी पार्टियों की तरफ से काफी विरोध देखने को मिलता है। दरअसल ईवीएम को लेकर संदेह जताया जाता रहा है। ये मामला तब और तूल पकड़ने लगा जब बीते साल नवंबर 2023 में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हुए और 3 दिसंबर को चुनावों के नतीजें आए और मध्यप्रदेश में बीजेपी के जीतने के बाद ईवीएम को लेकर सवाल उठाएं जाने लगे। कांग्रेस पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह ने ईवीएम की विश्वसनियता पर सवाल उठाएं। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकील और एक्टिविस्टों ने मिलकर ईवीएम के खिलाफ आंदोलन करना शुरू किया। जो वकील ईवीएम के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे उन्होंने चुनाव आयोग को चुनौती दी कि हमें ईवीएम मशीनें दो हम ईवीएम हैक करके दिखाएंगे। लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके अलावा विपक्षी पार्टियों की ओर से चुनाव आयोग से मिलने का समय मांगा गया लेकिन चुनाव आयोग ने मिलने तक का समय नहीं दिया ऐसा कांग्रेस नेता दिग्विजय सिहं की ओर से बयान दिया गया। दिग्विजय सिंह ने कई सवाल भी चुनाव आयोग से पूछे कि क्या ईवीएम मशीन की इंटरनेट से कनेक्टिविटी है या नहीं? लेकिन इसका जवाब चुनाव आयोग ने विपक्ष को नहीं दिया न हीं विपक्ष को मिलने को वक्त दिया। इससे चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाए जाने लगे।

चुनाव आयोग लगातार यहीं कह रहा है कि ईवीएम से फ्री और फेयर चुनाव कराए जाते हैं।

जनवरी- फरवरी 2024 में ईवीएम के खिलाफ आंदोलन तेज होने लगे। जगह जगह सभाएं होने लगी। यहां तक कि वकीलों ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट के बाहर भी प्रदर्शन किया, कई पैदल मार्च किए गए। धीरे धीरे सोशल मीडिया के जरिए ईवीएम के खिलाफ पूरे देश से आवाज उठने लगी। ईवीएम के खिलाफ हो रहे आंदोलन को सोशल मीडिया और यूट्यूब के पत्रकारों द्वारा जनता तक पहुचाया जाने लगा। यहां तक कि कुछ इंजिनियर और एक्टिविस्टों की तरफ से इसका लाइव डेमो भी दिखाया गया और कुछ उदाहरणों से समझाने की कोशिश भी की, कि किस तरीके से वीवीपैट में या किसी भी इलेक्ट्रोनिक मशीन को हैक किया जा सकता है।

चुनाव आयोग पहले सवालों से बचता रहा और फिर…

ईवीएम गड़बड़ी की वीडियोज जब सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी तो यूट्यूब पर वीडियो के नीचे चुनाव आयोग का डिस्क्लेमर आने लगा। और धीरे धीरे ईवीएम की वीडियो दिखाने वाले यूट्यूब चैनल को डिमोनेटाइज किया जाने लगा। इससे चुनाव आयोग पर और सवाल खड़े होने लगे।

यही नहीं विपक्षी पार्टियों के नेताओं को चुनाव आयोग ने मिलने का समय नहीं दिया जिसके बाद इस मुद्दे ने तूल पकड़ा। लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा करते समय चुनाव आयोग से प्रेस कॉंफ्रेंस में जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो चुनाव आयोग ने इस पर जवाब दिया।

अपने भाषण के आखिरी हिस्से में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने ईवीएम पर भी बात की। जो लोग ईवीएम में खामी निकालते हैं, उन पर कटाक्ष करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि कुछ लाइनें सुनाई-

अधूरी हसरतों का इल्जाम हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं,

वफा खुद से नहीं होती खता ईवीएम की कहते हो।

राजीव कुमार ने बताया कि ये लाइनें उन्होंने खुद से लिखी हैं।

सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित

दरअसल एक याचिकाकर्ता ने ईवीएम में छेड़छाड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज की। सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम में छेड़छाड़ और विपक्षी पार्टियों के वोट बीजेपी को मिलने को लेकर चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है।

देश में जगह जगह चुनाव आयोग अपनी तरफ से ईवीएम की निष्पक्षता और सुरक्षित चुनाव को लेकर मॉकड्रिल करा रहा है। इसी दौरान केरल में मॉकड्रिल कराई गई थी। जिसमें याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि वहां हर वोट बीजेपी को जा रहा है। ईवीएम में चार वोट बीजेपी को मिले जिसको गंभीरता से लेते हुए सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है और जांच के आदेश दिए हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने इस तरह की खबरों की सत्यता को लेकर किए जा रहे दावों को हमेशा नकारता रहा है।

याचिकाकर्ता की तरफ से प्रशांत भूषण, गोपाल शंकरनारायण और संजय हेगड़े पैरवी कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ चुनाव आयोग की तरफ से वकील मनिंदर सिंह मौजूद थे। कोर्ट ने मनिंदर सिंह से पूछा तो उन्होंने कहा कि ये खबरे झूठी और बेबुनियाद है। फिलहाल तो सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुरक्षित रख लिया है।

आपको बता दें कि ईवीएम की विश्वसनियता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। और इससे पहले भी मामला सुप्रीम कोर्ट में आ  चुका है।

लेकिन इस बार जस्टिस खन्ना की बेंच इस मामले को देख रही है। वीवीपैट पर्चियों की 100% वेरिफिकेशन को लेकर एक याचिका डाली जा चुकी है, जिसमें ये मांग है कि मतदाता खुद बैलेट बॉक्स में पर्ची डालने की सुविधा मिलनी चाहिए। इससे चुनाव में गड़बड़ी की आशंका कम हो जाएगी।

2022 में कर्नाटक में कांग्रेस विधायक एचके पाटिल ने आरटीआई के हवाले से विधानसभा में सवाल किया था कि 2016 से 2018 तक देश में 19 लाख ईवीएम गायब हुई हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने इस दावे को चुनाव आयोग ने फेक और निराधार बताया है। सुप्रीम कोर्ट में ये मामला पहुंचा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पूरी तरह से आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया।

चुनाव आयोग ने अब तक क्या बोला-

सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम – वीवीपैट मामले में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने मामले पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि प्रोग्राम मेमोरी में कोई छेड़छाड़ हो सकती है? इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि इसे बदला नहीं जा सकता, यह एक फर्मवेयर है, जो सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के बीच का है। इसे बिल्कुल भी नहीं बदला जा सकता। पहले रेंडम तरीके से ईवीएम का चुनाव करने के बाद मशीनें विधानसभा के स्ट्रांग रूम में जाती हैं और राजनीतिक दलों की मौजूदगी में लॉक किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब आप ईवीएम को जब भेजते हैं तो क्या उम्मीदवारों को टेस्ट चेक करने की अनुमति होती है? इस पर चुनाव आयोग ने बताया कि मशीनों को स्ट्रांग रूम में रखने से पहले मॉक पोल आयोजित किया जाता है। उम्मीदवारों को रैंडम मशीनें लेने और जांच करने के लिए पोल करने की अनुमति होती है।

चुनाव आयोग के अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि ईवीएम प्रणाली में तीन यूनिट होते हैं, बैलेट यूनिट, कंट्रोल यूनिट और तीसरा वीवीपीएटी। बैलेट यूनिट सिंबल को दबाने के लिए है, कंट्रोल यूनिट डेटा संग्रहीत करता है और वीवीपीएटी सत्यापन के लिए है। चुनाव आयोग के अधिकारी ने बताया कि कंट्रोल यूनिट वीवीपैट को प्रिंट करने का आदेश देती है। यह मतदाता को सात सेकंड तक दिखाई देता है और फिर यह वीवीपीएटी के सीलबंद बॉक्स में गिर जाता है। प्रत्येक कंट्रोल यूनिट में 4 MB की मेमोरी होती है। मतदान से 4 दिन पहले कमीशनिंग प्रक्रिया होती है और सभी उम्मीदवारों की मौजूदगी में प्रक्रिया की जांच की जाती है और वहां इंजीनियर भी मौजूद होते हैं।

चुनाव आयोग ने कहा कि, ईवीएम एक स्वतंत्र मशीन है. इसको हैक या छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता। वीवीपैट को फिर से डिजाइन करने की कोई जरूरत नहीं है। मिसमैच का केवल एक मामला था क्योंकि मॉक का डेटा डिलीट नहीं किया गया था। आयोग ने कहा कि, मैन्युअल गिनती में मानवीय भूल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन मौजूदा सिस्टम  में मानवीय भागीदारी न्यूनतम हो गई है।

याचिकाकर्ताओं की तरफ़ से क्या मांग की गई?

वकील निजाम पाशा ने दलील देते हुए कहा कि यह व्यवस्था होनी चाहिए कि वोटर अपना वीवीपैट स्लिप बैलट बॉक्स में ख़ुद डाले। वहीं जस्टिस खन्ना ने इस पर सवाल किया कि इससे क्या वोटर के निजता का अधिकार प्रभावित नहीं होगा। इस पर वकील निजाम पाशा ने दलील दी कि वोटर की निजता से अधिक जरूरी है उसका मत देने का अधिकार!

इस पर संजय हेगड़े की तरफ से कहा गया कि सभी पर्चियों के मिलान की सूरत में ईसी की तरफ़ से 12-13 दिन लगने की जो बात कहीं जा रही है, वो दलील ग़लत है.

एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि वीवीपैट मशीन में लाइट 7 सेकंड तक जलती है, अगर वह लाइट हमेशा जलती रहे तो पूरी प्रक्रिया मतदाता देख सकता है।

पहले भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की हो चुकी हैं सुनवाई-

2022 में मध्यप्रदेश की जन विकास पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम पर सवाल उठाते हुए एक याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने कहा था कि, ‘जो पार्टी मतदाताओं से मान्यता प्राप्त करने में विफल रही है वो स्पष्ट रूप से याचिका के जरिए मान्यता प्राप्त करने की कोशिश कर रही है.’ इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी की याचिका भी खारिज की और उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

इससे पहले वह 2021 में भी एक याचिका पर दस हजार का जुर्माना लगा चुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मार्च में ईवीएम से जुड़ी दो याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उनमें से एक में 19 लाख से अधिक ईवीएम के गायब होने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से जब इसके सबूत मांगे तो वह पेश नहीं कर पाए। नाराज कोर्ट ने 2016-19 के बीच 19 लाख ईवीएम के गायब होने के जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया और जुर्माना भी लगाया।

दूसरी याचिका में ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए चुनाव को फिर बैलेट पेपर के जरिए कराए जाने की मांग की थी। इस मामले को कोर्ट ने बगैर सुने ही खारिज कर दिया था।

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, 21 विपक्षी दलों ने ईवीएम के वोटों से कम से कम 50 फीसदी वीवीपैट पर्चियों के मिलान की मांग की थी। उस समय चुनाव आयोग हर निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ एक ईवीएम के वोटों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान करता था। हालांकि, चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि ऐसा करने पर नतीजों में पांच से छह दिन की देरी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल, 2019 को मिलान के लिए ईवीएम की संख्या 1 से बढ़ाकर 5 कर दी थी। इसके बाद मई 2019 कुछ टेक्नोक्रेट्स ने सभी ईवीएम के वीवीपैट से मिलान करने की मांग की याचिका लगाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

इसके अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने भी जुलाई 2023 में वोटों के मिलान की याचिका लगाई थी। इसे खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- कभी-कभी हम चुनाव निष्पक्षता पर ज्यादा ही संदेह करने लगते है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट अब तक ईवीएम को लेकर दायर की गई 40 याचिकाओं को खारिज कर चुका है। इस दौरान ज्यादा मामलों में ईवीएम से जुड़ी गड़बड़ी या गायब होने को लेकर कोई सबूत नहीं पेश किए गए थे। गौरतलब है कि चुनावों में ईवीएम का 42 सालों से इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार झूठी शिकायतें अभी भी जारी है।

शक के आधार पर कोई फैसला नहीं सुना सकते- सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने एडवोकेट प्रशांत भूषण से कहा कि अब तक तो ऐसी किसी घटना की रिपोर्ट नहीं आई है। हम इलेक्शन को या किसी और संवैधानिक अधिकारी को नहीं संभाल सकते। 5% वीवीपैट गिनी जाती हैं। अगर किसी कैंडिडेट को समस्या आती है तो वो आ सकता है।

एडवोकेट संतोष पॉल ने जब कहा कि देश में ऐसे सॉफ्टवेयर मौजूद हैं, जिनसे जालसाजी की जा सकती है। इसके जवाब में जस्टिस दत्ता ने कहा कि क्या हम शक के आधार पर कोई बड़ा फैसला सुना सकते हैं?

इस तरह से सुप्रीम कोर्ट के टिप्पणी और ईवीएम पर याचिकाओं के खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के रवैये से ईवीएम पर सवाल उठाने वालों को ज्यादा राहत मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही है। फिलहाल फैसले का इंतजार करना होगा कि आखिर सुप्रीम कोर्ट में घंटों चली बहस से क्या कुछ हासिल होगा।

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

Be the first to comment on "ईवीएम–वीवीपैट मामला : सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक चला संघर्ष, लेकिन हासिल क्या हुआ?"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*