हर युग में चीर हुआ औरत का,
कपड़ों की कमी न गाओ।
हैवान दरिंदों को तुम सब
मिलकर ऐसे न बढ़ाओ।
अपने-अपने बेटों को भी,
संस्कार शब्द सिखलाओ।
कब तक बेटी दोषी होगी,
बेटों के मन न बढ़ाओ।
रिश्ते नाते कोई भी हो,
इंसानियत को दिखलाओ।
तुम कृष्ण नहीं बन सकते तो,
इंसान का रूप बन जाओ।
कानून है अंधा बहरा भी,
तुम आशाओं को भुलाओ।
गर आसपास हो अत्याचार,
तुम खुद ही शस्त्र उठाओ।
सरकार सुनेगी नहीं कोई,
तुम हक की गुहार लगाओ।
कब तक चुप रह वंचित होंगे,
अब चुप्पी अपनी हटाओ।
हर युग में…
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