तीनों कृषि कानूनों का विरोध करते हुए आज किसानों को 22 दिन पूरे हो चुके हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर कहा है कि प्रदर्शन किसानों का हक है और उसे रोकने का सवाल नहीं बनता। शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन चल रहा है, इसलिए पुलिस किसानों पर बल का प्रयोग ना करें। हालांकि ये बात सरकार अच्छे से जानती है पर वो नहीं चाहती कि उसकी हुकूमत पर कोई सवाल उठाए। पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ पुलिस और सरकार का जो रवैया रहा वो बेहद शर्मनाक रहा। इससे सीधा संदेश ये जाता है कि सरकार अपने खिलाफ न ही कुछ सुनना चाहती है और न ही अपने लिए गये फैसले को वापस लेना चाहती है।
विपक्ष पूरी तरह से किसान आंदोलन को समर्थन कर रही है आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में कृषि कानूनों की प्रतियों को फाड़ते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि “वो कब तक किसानों की मांग पूरी करेगी। केजरीवाल ने आगे कहा कि अब तक 20 किसान शहीद हो चुके हैं। लगभग रोज एक किसान शहीद हो रहा है। मैं केंद्र सरकार से पूछना चाहता हूँ कि आपको और कितनी शहादत चाहिए? आप कितने और किसानों की जान लोगे, इससे पहले कि आप उनकी बात सुन सको” ।
इस कड़ाके की ठंड के कारण अब तक 20 किसानों की मौत हो चुकी है। आज भी टिकरी बॉर्डर पर पंजाब के एक किसान की ठंड की वजह से मौत हो गई। 16 दिसंबर को संत बाबा राम सिंह ने सिंघु बॉर्डर पर सुसाइड कर लिया। उन्होंने अपने नोट में लिखा है कि “उन्होंने किसानों का दुख देखा। वो अपना हक लेने के लिए सड़कों पर हैं। बहुत दिल दुखा है। सरकार न्याय नहीं दे रही। जुल्म है, जुल्म करना पाप है, जुल्म सहना भी पाप है। किसी ने किसानों के हक में और जुल्म के खिलाफ कुछ नहीं किया। कई लोगों ने सम्मान वापस किए। यह जुल्म के खिलाफ आवाज है। वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह” ।
क्या इन मौतों की जिम्मेदार सरकार नहीं है? क्यों अब तक प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से इस पर बात नहीं की? क्यों इन बिलों को बनाने से पहले किसानों से बात नहीं की गई? क्यों 22 दिन बाद भी सरकार ये बिल वापस लेने को तैयार नहीं। किसानों का कहना है कि सरकार हम से बात करें और हमें इस बिल के फायदें बताएं और अगर नहीं बता सकती तो वो ये कानून वापस लें।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से सरकार को निर्देश दिया गया है कि कमेटी बनाकर जल्दी ही इस मुद्दे को सुलझाया जाए। किसानों के मुद्दे जल्दी हल नहीं हुए तो ये एक राष्ट्रीय मुद्दा बनेगा। किसानों की ओर से ये बात पहले कही जी रही है कि अब ये सिर्फ किसान आंदोलन नहीं रह गया है अब ये एक जनआंदोलन बन चुका है। सरकार और किसान नेताओं की कई बैठकें हो चुकी हैं पर हल नहीं निकल पाया। सरकार कानूनों में संशोधन करने के लिए तैयार है पर कानून वापस लेने को तैयार नहीं। फिर ऐसे में किस तरह से सरकार कमेटी बनाकर किसानों को बहलायेगी। अभी तापमान 12 डिग्री है। कड़ाके की ठंड है, बर्फीली हवाएं चल रही है। बेशक किसानों ने अपनी ओर से हर चीज की इंतजाम वहां कर लिया हो पर रोज बॉर्डर पर हो रही मौतों से सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। बॉर्डर पर खाने पीने से लेकर रात को सोने कर का पूरा इंतजाम है। वहां छोटे छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग सभी इस आंदोलन का हिस्सा है। ये देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि आज देश के अन्नदाता को सड़कों पर रात गुजारने को मजबूर हैं।
Be the first to comment on "सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद क्या सरकार बदलेगी अपना फैसला?"