सुकूं की तलाश में हूं
शायद मिल जाए कहीं
मेरे आंसुओ में
या तेरी पलकों के साए में
तुझे याद करने में
या खुदके लिए लड़ने में
सुकूं की तलाश में हूं
शायद मिल जाए कहीं
चुप रहकर तुझे हर पल
महसूस करने में
या ग़लत बन कर भी
तुझसे वफादारी निभा कर
खुश रहने में
सुकूं की तलाश में हूं
शायद मिल जाए कहीं
तेरे संग ना रहकर भी
सिर्फ तेरी होकर रहने में
या तेरे साथ साथ
हवा सी बन बहने में
सुकूं की तलाश में हूं
शायद मिल जाए कहीं
ये जो दरमियान फासले हैं
इनमें भी इश्क़ भरने में
सिर्फ तेरी ही होकर रहने की
अपनी ख्वाहिश पूरी करने में
तो क्या हुआ जो तू कभी मुझे सबकुछ समझता था
आज बेवफ़ा कह देता है
तो क्या हुआ
जो तू मुझमें हज़ार कमियां निकलता है
पर सच तो यही है
की सुकूं मिलता है मुझे
बस तुम्हारी “प्रीत” रहने में।
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