गुजरात की कवयित्री डॉ. नलिनी पुरोहित के कविता संग्रह ‘स्मृति सरिता’ में संकलित कविताएँ जीवन के इंद्रधनुषी रंगों की छटा को अपनी अनुभूतियों में प्रकट करती हैं. इन कविताओं में संवेदनात्मक धरातल पर जीवन का एक विस्तृत फलक उजागर होता है और काफी जीवंतता से इन कविताओं में प्रकृति की हलचल नारी मन के सुंदर रंग और घर आँगन के जीवन की खुशियाँ ये सारी बातें कविता के नैसर्गिक प्रवाह में समायी हैं. कवयित्री के अमरीका प्रवास की अनुभूतियों से जुड़ी कुछ कविताएँ भी शामिल हैं और इसमें इस महाद्वीप की प्राकृतिक सुंदरता का सुंदर वर्णन है. इसके अलावा जीवन के प्रति आध्यात्मिक चिंतन और भावबोध का भी समावेश हुआ है.
कविता में प्रकृति अपने विभिन्न रूप रंगों से मनुष्य के मन में जीवन के अनंत रूपों की सृष्टि करती है और इसके साथ मनुष्य का निरंतर एकाकार होता जीवन उसके आत्मिक लोक को नैसर्गिक सौंदर्य से सँवारता है। प्रस्तुत संग्रह के प्रथम खंड की कविताओं में प्रकृति के प्रति कवयित्री का सच्चा अनुराग प्रकट हुआ है और इसकी नीरवता में असीम आनंद और गहन शांति से उसका मन भर उठता है–
जीवन संसार रूपी समुद्र में गूँजती लहरों का संगीत है. मनुष्य अपने जीवन का नियंता है और साहस के साथ संघर्ष की धार से उसने अपनी कविता में जीवन की जय का गान किया है. सदियों से उसकी इस यात्रा के यथार्थ की अभिव्यक्ति कविता में होती रही है. डॉ. नलिनी पुरोहित की कविताओं में जीवन के अर्थ के विस्तार को इसी अनुरूप देखा जा सकता है.
कवयित्री प्रकृति की विविध भाव भंगिमाओं की सान्निध्यता में अपने मन की आहट और हलचल को कई कविताओं में सार्थक अभिव्यक्ति प्रदान की है और इनमें सांसारिक जीवन का कोलाहल प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य के अवलोकन से खत्म होता दिखायी देता है और जीवन की नयी रंगत इन कविताओं के कैनवास पर फैली हुई है. प्रकृति की साहचर्यता में एक मौन संवाद इस संग्रह की कविताओं में आकाश की नीलिमा की तरह से दूर-दूर तक फैली प्रतीत होती है.
‘कोयल की कूक से, गूँजता वन…मोर के पंखों सा. नाचता वन. वर्षा की बूँदों से. भीगता वन. सूरज की मुस्कान से. खिलता वन. अमन सुख चैन. बाँटता वन. दुख पीड़ा से. अनजान. -अछूता वन-यह कौन आया. जिसके आते ही-थरथराता. काँपता. गूँज से जूझता. हथियारों से घिरा…बेबस वन. आधुनिकता के दर्प से. रौंदा जाता वन-अश्लीलता के पंख से. फड़फड़ाता वन. शाख टूटती छाल कटते. खून से भीगा वन. कड़कती धूप में. राख होता. दुख पीता. वेदना सहता. सुख से अछूता. तड़पता. ‘एक वन’ (एक वन)
धरती पर सुंदर जीवन को रचती सुरम्य प्रकृति और इसके साथ मनुष्य के जीवन के बदलते संदर्भों ने इसके समग्र रूपरंग के साथ इसके सारे तानेबाने को बदल दिया है और कवयित्री ने इससे उभरे सवालों को अपने काव्य चिंतन में समुचित रूप से समेटा है.
कवयित्री ने धरती पर प्रकृति के सुंदर वितान में हरियाली में बसी वसुंधरा सुप्रभात के साथ लालिमा और धूप नहाई सुबह के साथ प्रेम के वृक्ष में जुदाई के उगते फल दूर बहती एक नदी का ताकना और सब पर मेहरबान होता आकाश समुद्र का नटखटपन और उसका किनारा ऋतु परिवर्तन और वसंत का आगमन इन सबका सुंदर वर्णन किया है.
प्रकृति के विभिन्न तत्वों का स्पंदन जीवन की आभा से धरती को परिपूर्ण करता है इसलिए कवयित्री पेड़, चिड़िया, रेत, लहर, के अलावा पक्षी, जलप्रपात और झरना इन सबके साथ पृथ्वी पर जीवन की गति और लय में शरीक दिखायी देती है.
‘कभी-कभी. एक शब्द. मिटा देता है. कई मीलों की. दूरियों को… कभी – कभी. एक शब्द. पास होते हुए भी. जुदा कर देता है. बरसों से जुड़े. रिश्ते को… कभी- कभी. एक शब्द. झंकृत कर देता है. मन की वीणा के. हर सुर को…कभी-कभी. एक शब्द. लहूलुहान कर देता है. बरसों से सँजोये. दिल को. (एक शब्द)
डॉ. नलिनी पुरोहित के इस काव्य संग्रह के दूसरे खंड: संवेदना में संकलित कविताएँ कवयित्री के जीवन के अन्तर्बाह्य लोक से अवगत कराती हैं और इनमें घर परिवार और समाज के साथ उसके हृदय के राग विराग का प्रवाह समाया है और वह अपने तमाम मानवीय संबंधों को मन के मोती की तरह से जीवन की लय में पिरोती दिखायी देती है. इसलिए उसकी इन कविताओं में जीवंत संवाद के साथ सर्वत्र बेहद आत्मीय आलाप सुनायी देता है. यहाँ जीवन के रोज के सहज प्रवाह क्रम में सुख- दुख की चर्चा के साथ मंजिल की तलाश में चलता रहने वाला सफर और जानी पहचानी बातों के अलावा रोज की नयी जीवनानुभूतियों में बारिश की तरह से दस्तक देकर हृदय को भिगोती रहने वाली बातें ये सब इन कविताओं में किसी नदी के प्रवाह की तरह से सजीव हो उठती हैं.
कवयित्री की गहन चिंतनशीलता से उपजी इन कविताओं में जीवन की सीधी सच्ची राहों के बरख्श कागज की नाव पर समुद्र को पार करने की जद्दोजहद बेहद अकेले होते समय से गुजरते किसी दिन मेहमान की तरह से सबसे सुखद पल के आने की राह अकेले देखना मन के खाली तालाब में अथाह सागर का भी समा नहीं पाना और संबंधों की छोटी से छोटी होती जाती डोरी के बावजूद मानवीय रिश्तों को निभाने की जिद पर अड़े रहना वर्तमान सामाजिक परिवेश और इसके संत्रास में घिरे मनुष्य की जिजीविषा को आत्मीयता से रेखांकित करता है.
भारतीय जीवन संस्कृति में नारी की गरिमा को शास्त्रों में खास कर रेखांकित किया गया है और डॉ. नलिनी पुरोहित ने भी अपने इस कविता संग्रह में नारी विषयक अनुभूतियों को विशेष तौर पर शब्दबद्ध किया है. इनकी कविताओं में नारी कई रूपों में खुद को प्रकट करती सामने आती है और उसके अस्तित्व के विविध रूपों में जीवन की स्रोत और प्रेरणा की छाया के रूप में भी कवयित्री ने चित्रित किया है. वह स्नेह और ममता की प्रतिमूर्ति भी है और करुणा के साथ समर्पण उसके स्वभाव का सबसे महान धर्म है. इस खंड की कविताएँ इन्हीं जीवनमूल्यों और आदर्शों के अनुरूप नारी गरिमा को रेखांकित करती हैं-
‘धुली धूप सी. खिली फूल सी. खुशनुमा सुबह. जो है हमारी. चहकते पंछी सी. नाचते मयूर सी. थिरकाती आँगन. बिटिया जो है हमारी. खुशियों को जोड़ती. अनबन घटाती. पतझड़ को बसंत बनाती. नव ऋतु जो है हमारी’
कवयित्री ने समाज में दहेज और अन्य नारी विषयक प्रचलित समस्याओं को लेकर इन कविताओं में आक्रोश के भाव को प्रकट किया है . पुरुष के समुद्र रूपी जीवन संसार में नारी लहरों की तरह से जीवन के आनंद को इन कविताओं में प्रकट करती खुद के अस्तित्व को साकार करती है .
भारतीय साहित्य की मूल भावभूमि को आध्यात्मिक माना जाता है और इसमें लोकोत्तर विषयों पर आत्मविमर्श की परंपरा सांसारिक विषयों के प्रति मनुष्य के चिंतन को उदात्त रूप प्रदान करता है. हमारे देश के पौराणिक साहित्य को संसार में श्रेष्ठ कहा गया है. डॉ. नलिनी पुरोहित के काव्य लेखन पर पौराणिक चिंतन और आध्यात्मिक चेतना का गहरा प्रभाव परिलक्षित होता है. कवयित्री ने इस काव्य संग्रह के आध्यात्मिक और पौराणिक खंड में जीवन के प्रति सच्चे आत्मिक अनुराग को प्रकट किया है और जीवन का आत्मिक आलोक समाया है –
‘सेतु बनाया . श्री राम ने – . अहंकारी पर . विजय पाने के लिए . सेतु बना रहे हैं हम . अहंकार को – विजयी पाने के लिए !’ (सेतु)
कवयित्री सांसारिक जीवन की क्षुद्र आपाधापी से संपृक्त मनप्राण को अध्यात्म की चिरंतन आभा से दीप्त करती दिखायी देती है. सचमुच इस कोटि की कविताओं में जीवन के अर्थ का विस्तार समाहित है और इनमें शाश्वत सूक्ष्म जीवनतत्वों का समावेश है. कविता में देशकाल की परिस्थितियों से उपजे सवाल भावबोध के धरातल पर रचनाकार को अभिव्यक्ति की प्रेरणा प्रदान करते हैं. डॉ. नलिनी पुरोहित की कविताओं में इन सबका सुंदर समावेश दिखायी देता है.
इस काव्य संग्रह में देशप्रेम की कविताएँ भी संग्रहित हैं और इनमें अपनी मातृभूमि की सुषमा के प्रति कवयित्री के मन का असीम अनुराग समाया है और हृदय के पावन प्रेम में भारत की संस्कृति का कालातीत स्वर प्रवाहित है –
‘किसी ने कहा मुझे- . पहचानोगे कैसे. अपनी मातृभूमि की मिट्टी. कहा था मैंने- . जिसके रूप में ममता की. आस लगे. जिसके रंग में- . पिता सा कर्म का. आदेश लगे. जिसकी सुगंध में- . भाई – बहन, मित्रों की. सुवास लगे. जिसके आकर्षण में. दृरियाँ नगण्य लगे. जिसके साक्षात्कार में. स्नेह बिखरे बन जिद्दी. समझ लो…वही है मातृभूमि की मिट्टी. (मातृभूमि की मिट्टी)
प्रस्तुत काव्य संग्रह में संकलित क्षणिकाएँ कवयित्री के सुंदर सार्थक जीवन चिंतन को अपने भाव विचार में समेटती हैं और इनमें थोड़े से शब्दों के सहारे मन मस्तिष्क के व्यापक चिंतन को प्रकट किया गया है –
”चिंता के अंधकार में. कर्म का प्रकाश. सुख के सागर में. धर्म का आकाश. और… जीवन की दौड़ में. प्रोत्साहन की आस. जरूरी है – कुछ कर दिखाने के लिए।”
कवयित्री की इन क्षणिकाओं को कविता में सिर्फ किसी वक्तव्य के रूप में देखना शायद युक्तिसंगत नहीं होगा और सिमटी जीवनानुभूतियाँ समय और समाज के यथार्थ के साथ जीवन के अनेकानेक लक्षित – अलक्षित प्रसंगों से अवगत कराते हैं और इन्हें पढ़ते ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सागर की अतल गहराई में चमकती मोतियों के समान कवयित्री ने इनसे अपने मन के द्वार को सजाया हो और सुंदर फूलों का सुवास यहाँ सर्वत्र छाया हुआ हो. इस प्रकार डॉ. नलिनी पुरोहित के काव्य संग्रह ‘स्मृति सरिता’ को संग्रहणीय काव्य संकलन के रूप में देखना समीचीन होगा.
किताब के बारे में- स्मृति सरिता (काव्य संग्रह) कवयित्री : डॉ. नलिनी पुरोहित, अमर प्रकाशन, सदर बाजार, मथुरा (उप्र) मूल्य : ₹ 250 .00
कवयित्री के बारे में-
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