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वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

तस्वीर आभार- गूगल

वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

जब सूनी सड़कों पर बेटी

हो निडर घूम – फिर पायेगी ।

वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

 

मुखौटा पुरुषों का पहनकर

दानव वहशी बन डोल रहे

लगती नारी भोग की वस्तु

वे समझ न उसका मोल रहे ।

ऐसे विष विचारों से मुक्त

क्या धरा कभी हो पायेगी ?

वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

 

भय नहीं जिनको राज विधि का

मान न जिनको माँ ममता का

रखकर है मनुजता किनारे

कर रहे आचरण पशुता का ।

नर तुम्हारे कलुष रूप से

कभी जगती उबर पायेगी ?

वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?

 

नन्हीं कली तोड़ दी जातीं

खिली पँखुरी मोड़ दी जाती

महकातीं जो सुमन डालियाँ

बीच राह झिंझोड़ दी जातीं ।

चमन के माली घड़ी बताओ

जब कुसुम शाख लहरायेगी !

वह सुबह कब यहाँ आयेगी

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

डॉ रीता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर, एनकेबीएमजी (पीजी) कॉलेज , चन्दौसी, उत्तर प्रदेश।

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