वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?
जब सूनी सड़कों पर बेटी
हो निडर घूम – फिर पायेगी ।
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?
मुखौटा पुरुषों का पहनकर
दानव वहशी बन डोल रहे
लगती नारी भोग की वस्तु
वे समझ न उसका मोल रहे ।
ऐसे विष विचारों से मुक्त
क्या धरा कभी हो पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?
भय नहीं जिनको राज विधि का
मान न जिनको माँ ममता का
रखकर है मनुजता किनारे
कर रहे आचरण पशुता का ।
नर तुम्हारे कलुष रूप से
कभी जगती उबर पायेगी ?
वह सुबह कब यहाँ आयेगी ?
नन्हीं कली तोड़ दी जातीं
खिली पँखुरी मोड़ दी जाती
महकातीं जो सुमन डालियाँ
बीच राह झिंझोड़ दी जातीं ।
चमन के माली घड़ी बताओ
जब कुसुम शाख लहरायेगी !
वह सुबह कब यहाँ आयेगी
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