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मुझे पता है बिखराव के ये मौसम फिर से आयेंगे

तस्वीर- गूगल साभार

हालात, वक़्त, यादों का ढेर,

दुःख, उदासी से पुते हुए पन्ने और वो।

इक शाम आई और चली गई रात से डरकर।

“मैं कौन हूँ” सोचते हुए अरसा बीत गया

और जब जवाब आने को होता है।

मैं बदल जाता हूँ।

मैं कभी एक सा नहीं रहा,

वक़्त दर वक़्त बदलता रहा।

मेरा कद, मेरा रंग, मेरी सोच,

चेहरे की लकीरें सब कुछ।

ज़िन्दगी में अकेलेपन को छोड़कर

सब धीरे-धीरे धुँधले पड़ गए

और अकेलेपन ने कभी साथ नहीं छोड़ा।

पहले मैं बिखरा और टुकड़ो में फैल गया,

हर टुकड़ा इंतजार करता की कोई आएगा

और जोड़ेगा मुझे, फिर से मेरे अंदर जान डालेगा,

अपने हाथों से मेरे दोनों होठो को खींचकर

एक हँसी चिपका देगा मेरे मुँह पे।

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

जब इंतजार की सीमा खत्म हुई

सारे टुकड़े एक दूसरे के पास आये

और खुद-ब-खुद जुड़ते गए।

थोड़ी आस थोड़ी उम्मीद ने मिलकर

मेरे अंदर नई ज़िन्दगी को जन्म दिया

और मैं उठ गया।

थोड़ी हँसी आई होठों पे

और थोड़ी मैंने बचा के रख ली

मुझे पता है बिखराव के ये मौसम फिर से आयेंगे

और मुझे तैयार रहना है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

राम बिश्नोई
लेखक जेएनयू के छात्र हैं।

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