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धर्मं सदैव अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता से परे होता है- प्रो इरफान हबीब

दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल महाविद्यालय में इतिहास विभाग एवं दर्शनशात्र विभाग  द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय एवं अंतरविषयिक सेमिनार, ‘दि डिस्टिंगविश स्पीकर सीरीज’ 23 अक्टूबर 2019 को दो सत्रों में आयोजन किया गया। इसका विषय फॉर्म्स एंड डायनामिक्स ऑफ़ रिलीजियस ट्रांसफॉर्मेशन अक्रोस टाइम, कंटेक्टस एंड लोकेशंस”  था । इस कार्यक्रम को देश और विदेश से आये विभिन्न विश्वविद्यालय के धर्म के विशेषज्ञ प्रोफेसर, धर्म के जानकर एवं चिंतको ने शुशोभित किया। प्रथम सत्र इतिहास विभाग के द्वारा आरम्भ किया गया, जिसके मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता पद्मश्री तथा मध्यकालीन भारत के प्रख्यात् प्रोफेसर इरफ़ान हबीब तथा अन्य पेनालिस्ट प्रो उमा चक्रबर्ती, प्रो शिरीन मूसवी, प्रो जाफ़री ने अपने धार्मिक शोध-मूल्यपरक विचारों से छात्राओं तथा प्राध्यापकों को सम्बोधित किया।

कार्यक्रम का आरम्भ सभी छात्राओं-प्राध्यापकों की उपस्थिति में मुख्य अतिथि तथा अन्य प्रोफेसर, महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ स्वाति पाल, इतिहास विभाग प्रमुख डॉ नताशा नोंगबरी तथा कार्यक्रम संयोजक डॉ मनीषा अग्निहोत्री, डॉ सौम्या गुप्ता एवं प्रो स्मिता मित्रा की उपस्थिति में महाविद्यालय के 60 वर्ष पूरे होने के हीरक जयंती उपलक्ष्य पर पौध रोपण के साथ किया गया।

महाविद्यालय की इतिहास विभाग प्रमुख डॉ नताशा नोंगबरी द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा, उद्देश्य एवं प्रस्तावना प्रस्तुत किया गया। इसके बाद महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ स्वाति पाल ने छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि महाविद्यालय के 60 वर्ष पूरे होने पर ‘हीरक जयंती’ मना रहा है और साथ-साथ यह भी कहा कि धर्म का वास्तविक स्वरूप आज बदल चुका है जिसकी परिभाषा हमारे प्राचीन मनीषियों ने दी थी। प्राचार्या ने यह भी बताया कि धर्म का मूल स्वरूप मानव सेवा है, दूसरों के प्रति सद्भावना और श्रद्धा जगाना है, समाज और अपने कर्तव्य का पालन करना है तथा धर्म को धारण करने के आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि इसे दैनिक जीवन में उतारकर अपने लक्ष्य को साधा जा सकता है।

इसके पश्चात् मुख्य अतिथि प्रो इरफ़ान हबीब ने अपने वक्तव्य में कहा कि धर्मं सदैव अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता से परे होता है, धर्म हमें तर्क करना सिखाता है जिससे कि समाज में विश्वास बढ़ सके। उन्होंने यह भी कहा कि बिना तर्क वाला धर्म अन्धविश्वास को जन्म देता है, तथा प्रो हबीब ने सिन्धु घाटी सभ्यता से लेकर वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, इस्लाम का उद्भव, मध्यकालीन निर्गुण भक्तिधारा के संतों तथा 19वीं सदी में धर्म के विविध आयामों का विस्तृत मूल्यांकन किया। इसके बाद प्रो उमा चक्रबर्ती ने बौद्ध धर्म के विभिन्न तत्वों के बारे में विशद रूप से शील-सदाचार, समाधी, प्रज्ञा एवं दुःख, अनित्य, अनात्म आदि के रूप में प्रकाशित किया. प्रो चक्रबर्ती ने छात्रों को यह भी बताया कि बौद्ध धर्म में निहित तत्वों  यथा- नैतिकता, शील-सदाचार, अहिंसा, सत्य, करुणा आदि को ग्रहण कर अपने जीवन को साकार बनाना चाहिए। इसके पश्चात् प्रो शिरीन मूसवी ने मध्यकालीन मुग़ल शासक अकबर के धार्मिक सहिष्णुता की नीति यथा– सुलह-ए-कुल आदि की विस्तृत चर्चा की जिसमें कहा गया कि वह अपनी समझ से राज्य एवं समय की आवश्यकता अनुसार जनता के हित में धर्म को पल्लवित किया न कि राजनीतिक उद्देश्य के लिए। अंतिम वक्ता के रूप में प्रो जाफ़री ने मध्यकालीन रूढ़िवाद धर्म के विरोध में रहस्यवादी सूफी संतों तथा भक्ती आन्दोलन के संतों के धार्मिक-तार्किक विचार प्रस्तुत किये, जिससे सामाजिक समरसता बनाने में सफलता मिली ।

कार्यक्रम का दूसरे सत्र में प्रथम वक्ता के रूप में लोयला मेरी माउंट यूनिवर्सिटी लॉस एंजेलिस से आए प्रोफेसर क्रिस्टोफर चैपल ने लॉस एंजेलिस में धर्म की बहुलता और अंतर धार्मिक बंधुत्व पर अपना वक्तव्य दिया। अशोका यूनिवर्सिटी के विजिटिंग फैकल्टी प्रोफेसर पुरुषोत्तम बिलिमोरिया ने 21वीं सदी में धार्मिक दर्शन शास्त्र के अंतर्गत सर्वेश्वर वाद और धर्मनिरपेक्षता वाद पर वक्तव्य दिया तथा अंत में लखनऊ विश्वविद्यालय से आए प्रोफेसर राकेश चंद्रा ने रिलीजन, कारण और धर्म पर विशेष रूप से प्रकाशित किया । कार्यक्रम के अंत में छात्राओं तथा प्राध्यापकों द्वारा विषय विशेषज्ञों से अपने-अपने प्रश्न पूछकर समाधान कर संतुष्ट हुए। कार्यक्रम संयोजक द्वारा धन्यवाद् भाषण देकर कार्यक्रम का समापन किया गया ।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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