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पिछले 3 सालों में जंगलों में आग लगने की घटनाओं में 49.3 फीसद की वृद्धि, समाधान कोई नहीं

तस्वीरः गूगल

वनों में आग लगने की घटनाएं पिछले 3 सालों में बढ़ी हैं। इन घटनाओं में फोरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार 49.3 फीसद की वृद्धि हुई है। प्रति वर्ष लगभग 1,101 करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति का अनुमान है। साथ ही कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां आग की भेंट चढ़ गई है। (जनसत्ता की खबर के अनुसार)

मार्च से लेकर मई तक के तीन महीने में जंगलों में आग लगने से लगभग 2,251 हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो गया है। इस साल अकेले 28 मई को उत्तराखंड के जंगलों में वनाग्नि की 94 घटनाएं हुईं, जिनमें 161 हेक्टेयर का वन क्षेत्र जल कर खाक हो गया। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में 50 से ज्यादा आग लगने के घटनाओं से 90 हेक्टेयर जंगल जलकर तबाह हो गया। 18 साल में 44,518 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग की भेंट चढ़ गया हैं। इन सभी आकड़े की सच्चाई आप जनसत्ता समाचार पत्र में देख सकते हैं।

उत्तराखंड में इस बार गर्मियों में जंगलों के जलने की घटनाएं तीन साल के मुकाबले ज्यादा रहीं और जंगल में आग की घटनाओं ने उत्तराखंड के वन विभाग के आग बुझाने के इंतजामों की पोल खोल के रख दिया है। वन विभाग के अधिकारी उत्तराखंड राज्य गठन से 18 साल बाद तक आग बुझाने के संसाधनों के लिए रो रहे हैं। परंतु कोई भी सरकार वन विभाग की सुनने को तैयार नहीं है।

उत्तराखंड के वन मंत्री- डॉ हरक सिंह रावत का कहना है कि वनों में आग लगने की घटनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं। वन विभाग में संसाधनों की कमी जल्द ही समाप्त कर दी जाएगी। जिन रेंजों में आग लगने की घटनाएं अधिक होंगी, उन रेंजों के अधिकारियों के खिलाफ सख्त कारवाई की जाएगी। दावा किया कि इस साल जंगल में आग लगने की घटनाएं पिछले साल के मुकाबले कम हुई हैं।

कुमाऊं मंडल के नैनीताल और अल्मोड़ा जिलों में आग की सबसे अधिक घटनाएं सामने आई हैं। उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने से ज्यादा नुकसान गढ़वाल मंडल के टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून और पौड़ी, पिथौड़ागढ़ के जंगलों में हुआ। कुमाऊं मंडल में 50 से ज्यादा आग लगने की घटनाओं में 90 हेक्टेयर जंगल जल के तबाह हो गए।

पर्यावरणविद्- डॉ अनिल प्रकाश जोशी का कहना है कि इस साल भी जंगलों में आग लगने की घटनाएं घटित हुईं, परंन्तु हमारे पास इसका कोई समाधान नहीं दिखाई दे रहा है। आग की घटनओं से हमने कभी कोई सबक नहीं सीखा। राज्य गठन के इतने दिन बाद भी आज तक ठोस वन नीति नहीं बनी। वन सर्वेक्षण संस्थान की रिपोर्ट के मुताबित पूरे देश में 2004 से 2017 तक 3 लाख 40 हजार बार वनाग्नि की घटनाएं हुई हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

साहित्य मौर्या
लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पत्रकारिता के छात्र हैं।

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