कोई कह रहा है मोदी सरकार ने शेर को ही बदल दिया। यानी राष्ट्रीय चिह्न के साथ छेड़छाड़ हुई है। अशोक के स्तंभ की जगह संघी चिह्व का इस्तेमाल किया जा रहा है। पुराने भारत की जगह यही नया भारत है। इस तरह के तमाम दावे सोशल मीडिया पर चल रहे हैं। सोशल मीडिया खासकर ट्विटर पर अशोक स्तंभ मत बदलो, ट्रेंड भी हो रहा है। सेंट्रल विस्टा प्रोजक्ट के तहत जिस दिन से नया संसद भवन सहित तमाम भवनों के करोड़ों की लागत से निर्माण कार्य शुरू हुआ, बवाल ही बवाल होता रहा। और अब जब 11 जुलाई को यानी 2 दिन पहले नये संसंद भवन की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक का पीएम मोदी ने अनावरण किया और एक फोटो शेयर की। इसके बाद से इस फोटो में अशोक स्तंभ में दिख रहे शेर की मुद्रा को लेकर तरह-तरह के सवाल उठाये जाने लगे। इतना ही नहीं मोदी के अनावरण करने के बाद फोटो में दिख रहे पूजा-पाठ के तौर तरीकों को लेकर भी सवाल उठाये गए। यहां तक कि शेर वाले विवाद से पहले ये विवाद खडा हुआ था कि अशोक स्तंभ का अनावरण प्रधानमंत्री ने क्यों किया। AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने उस अनावरण के दौरान पीएम मोदी की मौजूदगी पर सवाल उठा दिए थे। उन्होंने इसे संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन बता दिया। उन्होंने कहा था कि संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को अलग करता है। सरकार के प्रमुख के रूप में, प्रधानमंत्री मोदी को नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था। लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता है जो सरकार के अधीनस्थ नहीं है। प्रधानमंत्री ने सभी संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है
Constitution separates powers of parliament, govt & judiciary. As head of govt, @PMOIndia shouldn’t have unveiled the national emblem atop new parliament building. Speaker of Lok Sabha represents LS which isn’t subordinate to govt. @PMOIndia has violated all constitutional norms pic.twitter.com/kiuZ9IXyiv
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) July 11, 2022
11 जुलाई को पत्रकार और लेखक दिलीप मंडल ने नये संसद भवन पर मोदी के द्वारा किये गए पूजा पाठ को असंवैधानिक बताते हुए ट्वीटर पर लिखा-
अशोक स्तंभ बौद्ध प्रतीक है। अब वह राष्ट्रीय प्रतीक है। नए संसद भवन में अशोक स्तंभ की स्थापना करने के लिए ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा और पाखंड करना न सिर्फ इतिहास की परंपरा के खिलाफ है बल्कि असंवैधानिक भी है। बौद्ध भंते जी को बुलाते। या किसी को न बुलाते।
अशोक स्तंभ बौद्ध प्रतीक है। अब वह राष्ट्रीय प्रतीक है। नए संसद भवन में अशोक स्तंभ की स्थापना करने के लिए ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा और पाखंड करना न सिर्फ इतिहास की परंपरा के खिलाफ है बल्कि असंवैधानिक भी है। बौद्ध भंते जी को बुलाते। या किसी को न बुलाते। pic.twitter.com/aLaDTVRWLH
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 11, 2022
इसके बाद एक और ट्वीट में उन्होंने 4 तस्वीरों को शेयर करते हुए लिखा
अशोक स्तंभ का मूल स्वरूप सारनाथ संग्रहालय में रखा है। वही छवि डाक टिकटों से लेकर सरकारी दस्तावेज़ों में है। उनमें शेर की शांत मुद्रा है। आज प्रधानमंत्री ने जिस अशोक स्तंभ की ब्राह्मण रीति से नए संसद भवन में स्थापना की उसमें शेर बहुत नाराज़ और उग्र है। क्या आपने गौर किया?
अशोक स्तंभ का मूल स्वरूप सारनाथ संग्रहालय में रखा है। वही छवि डाक टिकटों से लेकर सरकारी दस्तावेज़ों में है। उनमें शेर की शांत मुद्रा है। आज प्रधानमंत्री ने जिस अशोक स्तंभ की ब्राह्मण रीति से नए संसद भवन में स्थापना की उसमें शेर बहुत नाराज़ और उग्र है। क्या आपने गौर किया? pic.twitter.com/ENL2koZhXX
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 11, 2022
इसके बाद एक के बाद एक दिलीप मंडल और अन्य विपक्षी नेताओं ने ट्वीट और सोशल मीडिया पर पोस्ट के माध्यम से पीएम मोदी को सवालों के घेरे में ला दिया।
दिलीप मंडल ने अन्य तस्वीरों को ट्वीट करते हुए लिखा कि
इस चोरी के सरग़ना माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।
इस चोरी के सरग़ना माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। pic.twitter.com/1aaBPkVHXp
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 11, 2022
ये इतिहास की चोरी है। बौद्ध प्रतीकों का ब्राह्मणीकरण है।
ये इतिहास की चोरी है। बौद्ध प्रतीकों का ब्राह्मणीकरण है। pic.twitter.com/WdBTOddyvt
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 11, 2022
इसके बाद दिलीप मंडल इतने पर ही नहीं रुके उन्होंने एक और ट्वीट 1 दिन पहले ही कियाकि
विवाद चूँकि मैंने शुरू किया है, इसलिए निर्णायक बात मेरी ओर से। मैं नेशनल म्यूज़ियम, नई दिल्ली जाकर अशोक स्तंभ की प्रतिकृति देख आया।
बाएँ वाला मोदी का शेर है। दाहिनी ओर सम्राट अशोक के स्तंभ का शेर है। दोनों फ़ोटो एक ही एंगल से हैं।
निष्कर्ष: मोदी का राष्ट्रीय प्रतीक हिंसक है।
विवाद चूँकि मैंने शुरू किया है, इसलिए निर्णायक बात मेरी ओर से। मैं नेशनल म्यूज़ियम, नई दिल्ली जाकर अशोक स्तंभ की प्रतिकृति देख आया।
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 12, 2022
बाएँ वाला मोदी का शेर है। दाहिनी ओर सम्राट अशोक के स्तंभ का शेर है। दोनों फ़ोटो एक ही एंगल से हैं।
निष्कर्ष: मोदी का राष्ट्रीय प्रतीक हिंसक है। pic.twitter.com/X7gSSpNdFE
ताजा ट्वीट में दिलीप मंडल ने लिखा कि
मोदी का धर्म बोध कमजोर हो सकता है। पर ओवरवेट दिख रहे पुजारियों को तो पता होगा कि जिस अशोक स्तंभ के सामने वे संस्कृत में कुछ अगड़म-बगड़म बोल रहे हैं, वह वैदिक नहीं, बल्कि बौद्ध यानी भारतीय परंपरा का प्रतीक है। चार पैसे दे दो तो ये किसी की भी पूजा कर देते हैं। -पं. वी एस पेरियार
मोदी का धर्म बोध कमजोर हो सकता है। पर ओवरवेट दिख रहे पुजारियों को तो पता होगा कि जिस अशोक स्तंभ के सामने वे संस्कृत में कुछ अगड़म-बगड़म बोल रहे हैं, वह वैदिक नहीं, बल्कि बौद्ध यानी भारतीय परंपरा का प्रतीक है।
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 13, 2022
चार पैसे दे दो तो ये किसी की भी पूजा कर देते हैं। -पं. वी एस पेरियार pic.twitter.com/24wktkV4ug
अब इतने सारे आरोपों के बाद पहले इस अशोक स्तंभ के बारे में जान लीजिये
नए संसद भवन में कांस्य का बना यह प्रतीक 9,500 किलोग्राम वजनी है और इसकी ऊंचाई 6.5 मीटर है।
भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को अशोक स्तंभ को भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया था. मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक ने ये स्तंभ सारनाथ में स्थापित किया था जहाँ महात्मा बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था। असल में देखें तो सारनाथ में अशोक स्तंभ चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तरखंड का बना हुआ है। सारनाथ में अशोक ने जो स्तम्भ बनवाया था उसके शीर्ष भाग को सिंहचतुर्मुख कहते हैं। इस मूर्ति में चार भारतीय सिंह पीठ-से-पीठ सटाये खड़े हैं। अशोक स्तम्भ अब भी अपने मूल स्थान पर स्थित है किन्तु उसका यह शीर्ष-भाग सारनाथ के संग्रहालय में रखा हुआ है। यह सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष ही भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके आधार के मध्यभाग में अशोक चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में बीच की सफेद पट्टी में रखा गया है। अधिकांश भारतीय मुद्राओं एवं सिक्कों पर अशोक का सिंहचतुर्मुख रहता है। अशोक स्तंभ पर मौजूद चार शेर के अलावा इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, एक घोड़ा, एक सांड और एक शेर की उभरी हुई मूर्तियां हैं. इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं. एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर ‘धर्मचक्र’ रखा हुआ है.
वहीं अगर 2D तस्वीर की बात करें तो इसमें तीन शेर ही दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नहीं देता. हालांकि 3D में चारों शेर दिखते हैं.
वहीं सबसे नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में लिखा है, जिसका अर्थ है- ‘सत्य की ही विजय होती है’. भारत के महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेजों, मुद्राओं पर अशोक स्तंभ दिखायी देता है. यह प्रतीक सम्राट अशोक की युद्ध और शांति की नीति को दर्शाता है. सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे. ऐसे कई स्तंभ अशोक ने भारतीय उपमहाद्वीप में फैले अपने साम्राज्य में कई जगह लगवाए थे, जिनमें से सांची का स्तंभ प्रमुख है.
ये तो रही अशोक स्तंभ के बारे में सामान्य जानकारी। अब आप पहले जान लीजिये कि क्या सरकार इस तरह के राष्ट्रीय प्रतीक चिंहों में बदलाव कर सकती है?
भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) अधिनियम 2005 को 2007 में सुधार किया गया था। अधिनियम के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है। हालांकि एक्ट के तहत सिर्फ डिजाइन में बदलाव किया जा सकता है, पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को नहीं बदला जा सकता।
ये तो रही कानून की जानकारी जिससे मामले के बारे में स्पष्ट जवाब मिल जायेगा लेकिन पहले विपक्ष और लोगों के आरोपों को भी जानना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण का कहना है कि मूल राष्ट्रीय चिह्न महात्मा गांधी के साथ खड़ा है तो नया वर्जन महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को दर्शाता है.
प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट में लिखा है, ”गांधी से गोडसे तक, हमारे राष्ट्रीय चिह्न में चारों शेर शान के साथ शांति से बैठे हैं जबकि नए राष्ट्रीय चिह्न जो संसद की नई इमारत की छत पर लगाया गया है; के शेर नुकीले दाँतों के साथ ग़ुस्से में हैं. यही मोदी का नया भारत है!”
From Gandhi to Godse; From our national emblem with lions sitting majestically & peacefully; to the new national emblem unveiled for the top of the new Parliament building under construction at Central Vista; Angry lions with bared fangs.
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) July 12, 2022
This is Modi's new India! pic.twitter.com/cWAduxPlWR
राष्ट्रीय जनता दल ने ट्वीट कर कहा है, ”मूल राष्ट्रीय चिह्न में सौम्यता का भाव और अमृत काल में बनी मूल कृति की नक़ल के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है. हर प्रतीक चिह्न इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है. इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है.”
मूल कृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव तथा अमृत काल में बनी मूल कृति की नक़ल के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है।
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) July 11, 2022
हर प्रतीक चिन्ह इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है। इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है। pic.twitter.com/EaUzez104N
कांग्रेस पार्टी के कम्युनिकेशन प्रमुख जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा है, ”सारनाथ के अशोक स्तंभ में शेरों की प्रकृति को पूरी तरह से बदल दिया गया है. यह भारत के राष्ट्रीय चिह्न का निर्लज्ज अपमान है.”
To completely change the character and nature of the lions on Ashoka's pillar at Sarnath is nothing but a brazen insult to India’s National Symbol! pic.twitter.com/JJurRmPN6O
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) July 12, 2022
प्रज्ञा मिश्रा ने ट्वीटर पर लिखा कि पत्थर का शेर मुंह खोल सकता है दहाड़ नहीं सकता.. मेक इन इंडिया वाला शेर अब तक नहीं दहाड़ा..मेक होते-होते बेच होने लगा..2800 विदेशी कंपनियां देश छोड़कर भाग गईं..5 ट्रिलियन इकोनॉमी की दहाड़ सुनने को कान तरस गए हैं..18 ट्रिलियन वाला चीन सीमा पर खुराफात करता है शेर दहाड़े तो सही..
पत्थर का शेर मुंह खोल सकता है दहाड़ नहीं सकता.. मेक इन इंडिया वाला शेर अब तक नहीं दहाड़ा..मेक होते-होते बेच होने लगा..2800 विदेशी कंपनियां देश छोड़कर भाग गईं..5 ट्रिलियन इकोनॉमी की दहाड़ सुनने को कान तरस गए हैं..18 ट्रिलियन वाला चीन सीमा पर खुराफात करता है शेर दहाड़े तो सही.. pic.twitter.com/y8kRjKnesF
— Pragya Mishra (@PragyaLive) July 12, 2022
विनोद कापड़ी ने लिखा कि सदियों से धीर-गंभीर , गरिमापूर्ण उपस्थिति से अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहे सम्राट अशोक के शेरों को भी उग्र कर दिया गया है। इस देश में कुछ भी हो रहा है और सब लोग चुप हैं ?? ये राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान है।
सदियों से धीर-गंभीर , गरिमापूर्ण उपस्थिति से अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहे सम्राट अशोक के शेरों को भी उग्र कर दिया गया है।
— Vinod Kapri (@vinodkapri) July 11, 2022
इस देश में कुछ भी हो रहा है और सब लोग चुप हैं ?? ये राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान है। #NationalEmblem pic.twitter.com/wGqCYX2nVU
बॉलीवुड के लोग भी इस आरोपों का जवाब दे रहे हैं इसमें अनुपम खेर और विवेक अग्निहोत्री शामिल हैं-
अनुपम खैर ने भी ट्वीट कर कहा है कि अरे भाई! शेर के दांत होंगे तो दिखाएगा ही! आख़िरकार स्वतंत्र भारत का शेर है। ज़रूरत पड़ी तो काट भी सकता है! जय हिंद!
अरे भाई! शेर के दांत होंगे तो दिखाएगा ही! आख़िरकार स्वतंत्र भारत का शेर है। ज़रूरत पड़ी तो काट भी सकता है! जय हिंद! ???? Video shot at #PrimeMinistersSangrahlaya pic.twitter.com/cMqM326P2C
— Anupam Kher (@AnupamPKher) July 13, 2022
इसके जवाब में नीतिन ठाकुर लिखते हैं कि शेर काट भी सकता है. वाह! शेर ही है ना?
शेर काट भी सकता है. वाह! शेर ही है ना? https://t.co/UVdNR3r7I5
— Nitin Thakur (@thenitinnotes) July 13, 2022
द कश्मीर फाइल्स के निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने ट्वीट कर लिखा, ‘सेंट्रल विस्टा पर लगे नए राष्ट्रीय प्रतीक ने एक बात साबित कर दी है कि सिर्फ एंगल बदलकर अर्बन नक्सलियों को बेवकूफ बनाया जा सकता है. विशेष रूप से लो एंगल।’
वहीं एक अन्य ट्वीट में विवेक ने वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण को कोट-ट्वीट करते हुए लिखा, ‘अर्बन नक्सलियों को बिना दांतों वाला खामोश शेर चाहिए। ताकि वे इसे पालतू जानवर की तरह इस्तेमाल कर सकें।’
#UrbanNaxals want a silent lion without teeth. So that they can use it as a pet. https://t.co/85u7mnWBw0
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) July 12, 2022
काग्रेस नेता गुरदीप सिंह सब्बल ने कहा है कि राष्ट्रीय चिन्ह को लेकर बक़ायदा क़ानून है, उसमें चित्रण दिया गया है कि अशोक की लाट का क्या डिज़ाइन होगा। इसे न मानने वालों पर छः महीने से दो साल की सजा का प्रावधान है। सिर्फ़ इसलिए कि एक ग़लत डिज़ाइन मोदी सरकार के दौरान में बना, आपकी की मज़बूरी नहीं होना चाहिये। ग़लत ग़लत ही है।
राष्ट्रीय चिन्ह को लेकर बक़ायदा क़ानून है, उसमें चित्रण दिया गया है कि अशोक की लाट का क्या डिज़ाइन होगा। इसे न मानने वालों पर छः महीने से दो साल की सजा का प्रावधान है।
— Gurdeep Singh Sappal (@gurdeepsappal) July 12, 2022
सिर्फ़ इसलिए कि एक ग़लत डिज़ाइन मोदी सरकार के दौरान में बना, आपकी की मज़बूरी नहीं होना चाहिये। ग़लत ग़लत ही है। https://t.co/kO3bhgV0ga
संजय सिंह ने भी ट्वीट कर कहा कि मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूँ राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को “राष्ट्र विरोधी”बोलना चाहिये की नही बोलना चाहिये।
मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूँ राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को “राष्ट्र विरोधी”बोलना चाहिये की नही बोलना चाहिये। https://t.co/JxhsROGMRi
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) July 11, 2022
मोदी सरकार ने इन आरोपों पर कहा है कि राष्ट्रीय चिह्न में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
हालाँकि केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि संसद की नई इमारत पर राष्ट्रीय चिह्न सारनाथ के शेर का बिल्कुल माकूल प्रतिरूप है।
हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट कर कहा है, ”यह अनुपात और दृष्टिकोण बोध का मामला है। कहा जाता है कि सौंदर्य आपकी आँखों में होता है. यह आप पर निर्भर करता है कि शांति देखते हैं ग़ुस्सा। सारनाथ का अशोक स्तंभ 1.6 मीटर लंबा है और संसद की नई इमारत पर जिस राष्ट्रीय चिह्न को लगाया गया है, वह 6.5 मीटर लंबा है।”
Sense of proportion & perspective.
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) July 12, 2022
Beauty is famously regarded as lying in the eyes of the beholder.
So is the case with calm & anger.
The original #Sarnath #Emblem is 1.6 mtr high whereas the emblem on the top of the #NewParliamentBuilding is huge at 6.5 mtrs height. pic.twitter.com/JsAEUSrjtR
अब इतनी सारी बहस और आरोप प्रत्यारोप के बीच शेर अगर बदल ही दिया गया है तो आपकी क्या राय है? हमें कमेंट करके जरूर बताइये।
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