दिल्ली सरकार द्वारा संचालित एससीईआरटी प्रति वर्ष मई/जून में टीजीटी, पीजीटी शिक्षकों के लिए सेमिनार आयोजित करती है। इस बार इसी सप्ताह से टीजीटी व पीजीटी शिक्षकों के लिए सेमिनार आरंभ हुए हैं। इन सेमिनारों के माध्यम से शिक्षकों को पाठ्यक्रम संबंधी नई जानकारी दी जाती है तथा शिक्षा में हो रहे बदलावों से परिचित कराना मुख्य उद्देश्य है।
पिछले कई वर्षों से इन सेमिनार में विश्वविद्यालय/कॉलेजों के शिक्षकों को अपने-अपने विषय के विशेषज्ञों को सब्जेक्ट्स एक्सपर्ट के रूप में बुलाया जाता रहा है लेकिन, पिछले दो साल से विश्वविद्यालय/कॉलेजों के शिक्षकों को लेक्चर के लिए ना बुलाकर अपने ही सेवानिवृत्त या वरिष्ठ शिक्षकों से लेक्चर कराकर खानापूर्ति की जा रही है।
सेमिनार संबंधी जानकारी वेबसाइट पर नहीं डाली गई
हर साल टीजीटी व पीजीटी सेमिनार करने से पूर्व विषय विशेषज्ञों के नाम मंगवाएं जाते थे, उसके बाद उसकी स्क्रूटनी होती थी कि किन्हें बुलाना है, उनके नामों पर विचार किया जाता था लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हुआ जबकि पहले नाम मंगवाकर स्क्रूटनी कर उसे वेबसाइट पर डाला जाता था। इस बार अपनी मनपसंद के व्यक्तियों को जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं या पीजीटी है, को ही बुलाया जा रहा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद के पूर्व सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन ‘ने बताया है कि एससीईआरटी का उद्देश्य जिला स्तरीय टीजीटी, पीजीटी शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की पुनश्चर्या 2005 आवश्यक सेमिनार कराना है।
इन सेमिनार के माध्यम से शिक्षा में गुणवत्ता लाने के उद्देश्य से मई/जून में शिक्षकों के लिए सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। इन सेमिनारों के माध्यम से शिक्षा में हो रहे बदलाव, पाठ्यक्रम में बदलाव और किसी विषय को पढ़ाते समय छात्रों में रुचि उत्त्पन्न करने के उद्देश्यों से उसे और रोचक बनाने के लिए विषय विशेषज्ञों को बुलाकर लेक्चर कराया जाता है।
प्रो. सुमन ने बताया कि वे एससीईआरटी की ओर से आयोजित सेमिनार में विषय विशेषज्ञ और मीडिया एक्सपर्ट के रूप में जाते रहे हैं। पिछले सप्ताह उनके पास फोन आया, संस्थान का नाम और पद पूछने के बाद यह कहा कि ‘पहले हम आपको बुलाते थे लेकिन, नीति में बदलाव किया गया है, अब अपने ही शिक्षकों को बुलाते हैं। हम अपने वरिष्ठ शिक्षकों को ही बुला रहे हैं। उनका कहना है कि सेमिनार में हिंदी, अंग्रेजी, भूगोल, इतिहास, समाजशास्त्र, वाणिज्य, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, विज्ञान, मीडिया के अतिरिक्त स्कूली स्तर पर पढाए जाने विषयों आदि की जानकारी दी जाती थी और उनके उद्देश्य बताएं जाते थे।
प्रो. सुमन ने स्कूली पाठ्यक्रमों पर सेमिनार के उद्देश्य बताते हुए बताया कि इसमें शिक्षकों को पाठ्यक्रम में नई चीजों की जानकारी देना, शिक्षकों की कुशलता को बढ़ाना ताकि छात्रों को अच्छे ढंग से विषय की जानकारी दे पायें। इसके अतिरिक्त सेमिनार में किताबी ज्ञान से दूर देश-विदेश और राज्य स्तर पर क्या हो रहा है उसके सुधार के लिए इस तरह के सेमिनारों में शिक्षकों को जानकारी देना उद्देश्य है।
प्रो. सुमन ने बताया है कि आज जिस तरह से शिक्षा में बदलाव हो रहे हैं, नई शिक्षा नीति का क्या प्रारूप है, इन सेमिनार में सरकार द्वारा “राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पुनश्चर्या-2005 ” के तहत शिक्षकों में ज्ञान के स्रोतों का आदान प्रदान करना, टीचिंग प्रैक्टिस को ढंग से पढ़ाने के लिए ही “दिल्ली सरकार के बाहर से दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, आईपी यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी ” आदि के शिक्षकों को सब्जेक्ट एक्सपर्ट के रूप में बुलाया जाता था।
सरकार ने नीति में किया बदलाव
उन्होंने बताया है कि जब एक नॉडल ऑफिसर से बात हुई तो उनका कहना था कि अब विश्वविद्यालय/कॉलेज के शिक्षकों को नहीं बुला रहे। हालांकि ऐसा क्यों हो रहा इसका जवाब उनके द्वारा नहीं दिया गया।
सेमिनार में जिन शिक्षकों को बुलाया जा रहा है उनमें स्कूलों से सेवानिवृत्त या पीजीटी को बुलाकर लेक्चर दिलाया जा रहा है। सेमिनार दो पाली (सेशन) में हो रहे हैं और शिक्षकों के लिए सुनना अनिवार्य है। उनका कहना है कि एक केंद्र पर 4 से 5 शिक्षक चाहिए और पूरी दिल्ली के सभी भागों में सेंटर बनाए हुए हैं लेकिन, विषय विशेषज्ञों को नहीं बुलाया जा रहा है।
उच्च शिक्षा अर्जित विश्वविद्यालयों से बुलाते थे एक्सपर्ट
उन्होंने बताया है कि पहले इन सेमिनारों में एक स्तर के ऊपर के शिक्षाविदों को सेमिनार में सब्जेक्ट एक्सपर्ट के रूप में बुलाया जाता था। लेकिन, अब अपने ही विभाग के पीजीटी शिक्षकों को बुलाकर सेमिनार कराएं जा रहे हैं। इसमें गेस्ट या कॉन्ट्रैक्ट पर रखे डाइट में पढ़ाने वाले शिक्षकों को नॉडल ऑफिसर बनाया गया है, जबकि स्थायी अध्यापक पहले से सेमिनार कराते रहे हैं।
दिल्ली सरकार से हस्तक्षेप की मांग
प्रो. सुमन ने मांग की है कि शिक्षकों के लिए आयोजित किए जा रहे सेमिनार में ऐसे शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाए जो कॅरिकुलम की समझ रखे और शिक्षा में हो रहे बदलावों को बता सकें। उनका कहना है किपब्लिक स्कूलों के पास तमाम संसाधन है उन संसाधनों की कमी को दूर करने तथा प्राइवेट स्कूलों के स्तर तक सरकारी स्कूलों के शिक्षक कैसे पहुंचे आदि की जानकारी कॉलेजों/विश्वविद्यालयों के शिक्षक देकर जाते थे।
उन्होंने मांग की है कि वे अपनी नीति में बदलाव कर पहले की भांति विश्वविद्यालय/कॉलेज के शिक्षकों को सब्जेक्ट एक्सपर्ट के रूप में मौका दें ताकि उच्च शिक्षा में आ रहे बदलाव, संकटों की सही जानकारी शिक्षकों तक पहुंचा सके।
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