दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) द्वारा शिक्षकों की 16 अक्टूबर को निर्धारित हड़ताल जिसमें 11 बजे शिक्षक, मंडी हाउस पर एकत्रित हुए। एक घन्टे तक शिक्षकों ने सरकार विरोधी नारे लगाए। उसके बाद मंडी हाउस से संसद भवन तक रैली/प्रदर्शन के माध्यम से नई शिक्षा नीति का विरोध करने, लंबे समय से कार्यरत तदर्थ शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति करने, 3000 शिक्षकों की पदोन्नति, पेंशन आदि मुद्दों को लेकर एमएचआरडी, यूजीसी और सरकार को ज्ञापन सौंपा। इन मुद्दों से एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण, 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर, शॉर्टफाल, बैकलॉग और काले कमेटी की रिपोर्ट लागू कराने जैसे मुद्दे डूटा के बैनर से गायब थे। इन मुद्दे के गायब होने पर शिक्षकों ने पूछा कि डूटा का सामाजिक न्याय कहां है ?
दिल्ली विश्वविद्यालय एससी, एसटी, ओबीसी शिक्षक फोरम और दिल्ली विश्वविद्यालय एससी, एसटी शिक्षक संघ ने डूटा अध्यक्ष पर आरोप लगाया है कि, जब से नई डूटा कार्यकारिणी बनी है तब से आरक्षित शिक्षकों के मुद्दे उनके पैम्फलेट, पोस्टर, बैनर से गायब हो गए हैं। उनका कहना है कि चाहे दिल्ली विधानसभा पर धरना प्रदर्शन हो, कुलपति कार्यालय पर प्रदर्शन, कैंडल मार्च हो या आज हुए मंडी हाउस से जंतर- मंतर तक रैली प्रदर्शन में उनके मुद्दे नहीं रखे जाते जबकि डूटा कार्यकारिणी की मीटिंग में जो मुद्दे तय होते हैं, उन्हें अहमियत ना देते हुए सरकार विरोधी नीति का विरोध करना इनका मकसद है। शिक्षकों की मुख्य मांगों से इनका कोई सरोकार नहीं है। यह अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं पिछले दस साल से एक ही विचारधारा के शिक्षक संघ का डूटा पर कब्जा है।
फोरम के अध्यक्ष डॉ. के.पी सिंह ने बताया है कि आज की हड़ताल में आरक्षित वर्ग के शिक्षकों ने बड़ी संख्या में शामिल होकर, सरकार की शिक्षा विरोधी नीतियों पर आक्रोश जताया है लेकिन उन्होंने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा है कि डूटा के बैनर तले हुए आज की हड़ताल/रैली /प्रदर्शन से आरक्षित वर्गो के शिक्षकों के मुद्दों को सिरे से गायब करना शिक्षकों की एकता खत्म करना है। उनका कहना है कि आरक्षित वर्ग के शिक्षक काफ़ी समय से डीओपीटी के 200 प्वाइंट रोस्टर को लागू करने के लिए सरकार को ज्ञापन देते रहे हैं। वर्तमान डूटा की टीम से भी उन्होंने डीओपीटी के अनुसार 200 प्वाइंट रोस्टर को यथानुरूप लागू करने का दबाव बनाने के लिए कहा था, उनको डूटा से काफी उम्मीदें थी। वर्तमान डूटा टीम जब से बनी है तब से डूटा के पोस्टरों से आरक्षण और 200 प्वाइंट रोस्टर के मुद्दे हटा दिए गए हैं। आरक्षित वर्ग के तदर्थ और स्थायी शिक्षकों में डूटा टीम की इस कार्यशैली को लेकर काफी आक्रोश है।
फोरम के चेयरमैन व पूर्व सदस्य विद्वत परिषद प्रो. हंसराज ‘सुमन ‘ ने कहा कि सितम्बर, अक्टूबर से चल रहे डूटा के धरने/प्रदर्शन से आरक्षित वर्ग के शिक्षकों ने इस उम्मीद के साथ डूटा के आंदोलनों में भाग लेना शुरू किया था कि यूजीसी गाइडलाइंस-2006, डीओपीटी के 200 प्वाइंट पोस्ट बेस करेक्ट रोस्टर की मांग, काले कमेटी की रिपोर्ट को डूटा इन मांगों को अपने बैनर के माध्यम से सरकार के सामने उठाएगी। लेकिन आरक्षित वर्ग के शिक्षकों को निराशा ही हाथ लगी है। उनका कहना है कि वे डूटा अध्यक्ष को आरक्षण के मुद्दे पर कई बार बातचीत कर डूटा की मांग में रखने को कह चुके हैं। अध्यक्ष द्वारा आश्वासन के बाद भी आज की हड़ताल, प्रदर्शन से उनके मुद्दे गायब मिले। उन्होंने आज भी उन मुद्दों की याद दिलाई।
प्रो. सुमन ने डूटा पर खास वर्ग का कब्जा होने का आरोप लगाते हुए कहा कि चुनाव के समय ये लोग सामाजिक न्याय की बातें कहकर हमारे समाज के शिक्षकों की वोट ले लेते हैं लेकिन जीतने के बाद सामाजिक न्याय के मुद्दे उनके बैनर, पोस्टर से गायब होना यह दर्शाता है कि उनके एजेंडे में दलित, पिछड़े व आदिवासियों की मांग जायज नहीं है। उनका कहना है कि इन मुद्दों को लेकर फोरम जल्द ही एक मीटिंग बुलाएगा।
टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. धनीराम अम्बेडकर ने आज की हड़ताल व डूटा बैनर से एससी, एसटी, ओबीसी शिक्षकों की मांगों को गायब करने को सामाजिक न्याय का गला घोंटने जैसा बताया है। उनका कहना है कि डूटा मीटिंग में आरक्षित वर्गों के मुद्दों पर सहमति बनती है लेकिन जब सरकार के समक्ष मांग रखी जाती है तो डूटा के बैनर से गायब हो जाती है। उनका कहना है कि डीटीएफ का असली चेहरा शिक्षकों के सामने लाया जाएगा। उनका कहना है कि अब ये शिक्षक अपनी आरक्षण की मांग को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार के समक्ष खुद ही प्रदर्शन करेंगे। भविष्य में ये आरक्षित वर्ग के शिक्षक डूटा द्वारा आरक्षण और रोस्टर के मुद्दे की उपेक्षा करने पर भी सवाल उठाएंगे। उन्होंने संकेत दिया है कि यदि डूटा का यही रवैया रहा तो भविष्य में डूटा के समानांतर एक और डूटा बन सकती है।
डॉ. धनीराम अम्बेडकर ने यह भी आरोप लगाया है कि जब भी हड़ताल, धरना प्रदर्शन होता है डूटा मंच से शिक्षक प्रतिनिधि को बुलवाने की बात होती है तो एससी, एसटी, ओबीसी के प्रतिनिधियों को बुलवाया नहीं जाता। उनका कहना है कि डूटा अध्यक्ष जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं और जिनके साथ मिलकर कार्यकारिणी बनाई है उन्हें ही बुलवाते है। इसकी हम निंदा करते हैं।
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