आज मकर संक्रांति का त्योहार है और ये पूरे भारत में अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है। कहीं पर ये त्योहार पतंगोत्सव, खिचड़ी आदि विविध रूपों में मनाया जाता है तो वहीं दूसरी ओर ये पर्व खेती – किसानों की मेहनत के साकार होने के उल्लास का भी है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल तो वहीं गुजरात में उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। जबकि कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति किसी न किसी रूप में पूरे भारत और नेपाल में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा भी रही है। लेकिन इस अस्त व्यस्त जीवन में सभी लोग व्यस्तताओं से घिरे हैं इसलिए आसमान आज खाली खाली है। कई जगहों पर काइट फेस्टिवल के रूप में प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती रही हैं।
पतंग उड़ाने की परंपरा
माना जाता है कि मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का जिक्र रामचरितमानस के बालकांड में मिलता है। तुलसीदास ने वर्णन करते हुए लिखा है ‘राम इन दिन चंग उड़ाई, इंद्रलोक में पहुंची जाई’ प्राचीनकाल से ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी, जो इंद्रलोक तक पहुंच गई थी। उस समय से वर्तमान तक पतंग उड़ाने की परंपरा चली आ रही है।
मकर संक्रांति पर खिचड़ी ही क्यों?
मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा चली आ रही है। कई जगहों पर जैसे कि पूरे उत्तर भारत में इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता हैं। मकर संक्रांति के मौके पर लोग गंगा यमुना या पवित्र सरोवरों, नदियों में स्नान करते हैं। तिल-गुड़ के लड्डू एंव खिचड़ी देने और खाने की रीति है। खिचड़ी से हमें पौष्टिक आहार मिलता है। उसमें ऐसे कई तत्व मौजूद होते हैं जिससे हमें कई स्वास्थ्य समस्याओं में भी फायदा होता है। ये पाचन को बेहतर करता है। इसके अलावा, खिचड़ी के सेवन से पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है। खिचड़ी एक आयुर्वेदिक आहार का एक प्रधान है और इसे सही डिटॉक्स भोजन के रूप में जाना जाता है। यह त्राइडोशिक है जिसका अर्थ है कि यह शरीर में पृथ्वी, पानी और आग जैसे मूल तत्वों को संतुलित करने में मदद करता है, जो डाइजेस्टिव एंजाइम्स को बेहतर करता है जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और प्रतिरक्षा स्तर में वृद्धि होती है।
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