‘गांधी और आज का भारत’ विषय पर 9 जून को एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार के माध्यम से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश ने वर्तमान समय में गांधी के विचार और दर्शन की प्रासंगिकता से सभी को अवगत कराया। उन्होंने अपने वक्तव्य के दौरान बताया कि आज के समय में गांधी किस प्रकार प्रासंगिक हो सकते हैं? सामान्यतः यह कहा जाता है कि गांधी नगरीकरण, औद्योगिकरण, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के खिलाफ थे। वे पश्चिमी विचारधारा के विरोधी थे। उन्होंने 1909 में रेल, अस्पताल, अदालतों का विरोध किया। वे तो यहाँ तक कहते थे कि रेलगाड़ी के कारण हमारे देश में भी महामारी फैल जाएगी। बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र रामानंद शर्मा और उनकी टीम की ओर से डूडा के फेसबुक पेज पर इन दिनों रचनात्मक और ज्ञानवर्धक कंटेंट के साथ देश विदेश के अपने क्षेत्रों में विद्वानों का वेबिनार करवाया जा रहा है। इसी श्रृंखला में यह वेबिनार भी आयोजिन कराया गया था।
गांधी आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहते थे
प्रो. शुक्ला बताते हैं कि गांधी ने हमेशा मशीनीकरण का विरोध किया। वस्तुतः गांधी यंत्र के खिलाफ न होकर यांत्रिकता के खिलाफ थे, मशीन के खिलाफ न होकर मशीनीकरण के खिलाफ थे। गांधी चाहते थे कि मनुष्य यंत्रों द्वारा निर्देशित न हो। वे यंत्र को सहायक के रूप में देखने के पक्षधर थे।
प्रो. शुक्ला विकास के मानकों पर भी विचार करते हुए विकास की दो श्रेणियों की चर्चा करते हैं- मानवीय विकास और भौतिक विकास।
आज का भारत उपभोक्तावादी दुनिया के किसी भी देश से होड़ लेने को तैयार है, लेकिन आज वो बुरी तरह भहराया हुआ दिख रहा है। सत्तर वर्षों से हम जिस प्रकार से बेतहाशा वृद्धि के नाम पर अनियोजित शहरीकरण को बढ़ावा दे रहे थे, इस महामारी के समय वह बुरी तरह ध्वस्त हो गया।
प्रो. शुक्ला आगे कहते हैं गांधी ग्राम केंद्रित विकास की अवधारणा की बात करते हैं। वे आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहते थे। वे बताते हैं कि 2021 का भारत वैश्विक व्यवस्था पर आश्रित न होकर आत्मनिर्भर भारत होगा। वह लोकल के प्रति वोकल होगा एवं वह आत्मनिर्भरता स्थानीय विकास की नीतियों के आधार पर बनेगा। सरकार को विकास का मॉडल समाज के अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर बनाना होगा तब जाकर वास्तविक विकास की नीति बनेगी। गांधी भी सम्पूर्ण राष्ट्र के उत्थान की बात करते हैं। गांधी के समान ही डॉ आंबेडकर, सावरकर, लोहिया भी ऐसी ही व्यवस्था की निर्मिति की बात करते हैं।
आज आत्मनिर्भरता के खिलाफ बुद्धजीवी वैसे ही खड़ा है जैसे गांधी के हिन्द स्वराज और ग्राम केंद्रित अर्थव्यवस्था के खिलाफ उस समय कांग्रेस खड़ी थी। वे तो यहां तक कहते हैं कि गुरु गोखले ने गांधी से इस किताब ‘हिन्द स्वराज’ को किनारे रख देने को कहा था और नेहरू ने भी उसे छोड़ देने या कहें दफना देने को कहा था।
तमाम मतभेदों के बाद गांधी ने 1934 में कांग्रेस छोड़ दिया था जबकि कांग्रेस ने गांधी को नहीं छोड़ा था। गांधी ने 1934 के बाद कांग्रेस की सदस्यता नहीं स्वीकार की।
प्रो. साहब ने बताया कि किस प्रकार गांधी ने कांग्रेस पार्टी में इस्तीफा देने के पश्चात रचनात्मक कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। समाज की रचनात्मक शक्ति को जगाते हुए वे मनुष्य की बेहतरी के लिए आजीवन प्रयत्नशील रहे।
आचार्य शुक्ल कहते हैं कि हिन्द स्वराज ही रामराज्य है और रामराज्य ही धर्मराज्य।
उनका कहना है कि दुनिया में केवल गांधी का रास्ता ही एकमात्र ऐसा है जिसमें किसी का शोषण नहीं है, जिसमें सबके लिये शांतिपूर्ण और गरिमामयी जीवन की संभावनाएं हैं।
गांधी सत्य, शील, मर्यादा को उपकरण बनाकर दुनिया की सबसे ताकतवर यूरोपीय सभ्यता से टकराते हैं और अल्बर्ट आइंस्टीन के शब्दों में उससे ‘बेहतर’ होकर दिखाते हैं। प्रो. शुक्ला जी कहते हैं आज के भारत में बेहतरी की संभावनाएं जीवित हैं। वह ग्रामीण समाज ज़िंदा है, जरूरतों तक सीमित रहने वाली मनुष्य की वृत्ति ज़िंदा है। प्रो. शुक्ला जी ने गांधी के आप्त वाक्य को दोहराते हुए कहा कि ‘अंत्योदय के रास्ते ही सर्वोदय आएगा’। समाज के अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर जिस व्यवस्था का निर्माण होगा, वह विकेंद्रीकरण की व्यवस्था होगी जिसमें स्थानीय जरूरतों के हिसाब से उत्पादन भी होगा, उपभोग भी होगा। इस प्रकार की सभ्यता की निर्मिति गांधीवादी दृष्टिकोण द्वारा ही संभव है। यह दृष्टिकोण भारत के साथ सम्पूर्ण दुनिया को बेहतर बनाने के लिए उपयोगी हो सकता है।
कार्यक्रम समापन के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा शशि शर्मा कहती हैं कि ‘बापू से और भी ज्यादा प्यार हो गया’ और डूडा के फाउंडर रामानन्द शर्मा जी अपनी टिप्पणी देते हुए कहते हैं कि गांधी की प्रासंगिकता इसलिये भी पूरे विश्व में अनोखी है क्योंकि जब पूरा विश्व हिंसा और युद्ध की बात कर रहा था तब केवल गांधी ही अहिंसा और सत्याग्रह की बात कर रहे थे और अपने उसी मूल्य के आधार पर आंदोलनों की नींव रखते हैं।
वे आगे कहते हैं आज गांधी के वो शब्द याद आ रहे हैं जो उन्होंने भारत और भारतीयता पर कहा था कि ”हिंदुस्तान हर उस इंसान का है जो यहां पैदा हुआ और यहां पला-बढ़ा, जिसके पास कोई देश नहीं, जो किसी देश को अपना नहीं कह सकता उसका भी। स्वाधीन भारत हिंदूराज नहीं, भारतीय राज होगा जो किसी धर्म, संप्रदाय या वर्ग विशेष के बहुसंख्यक होने पर आधारित नहीं होगा, बल्कि किसी भी धार्मिक भेदभाव के बिना सभी लोगों के प्रतिनिधियों पर आधारित होगा।”
-रिपोर्ट-शशि शर्मा
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