सरकार के पास अपने नागरिकों का लेखा जोखा न हो ऐसा कहां हो सकता है। लेकिन आजकल सरकार अपने पास कई संवेदनशील विषयों पर आंकड़े न होने का दावा करने लगी है। अब तक ऐसे कई आंकड़े हैं जिनको मोदी सरकार ने अपने पास न होने की बात कही है। कोरोना में हुई ऑक्सीजन की कमी से मौतों का आंकड़ा, प्रवासी मजदूरों की मौतों का आंकड़ा होने से इनकार करने की बात को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं लेकिन अब सरकार ने किसानों की मौतों का आंकड़ा न होने की बात कह दी है। ये ज्यादा बड़ी बात शायद सरकार के लिए न हो क्योंकि किसानों को तो सरकार ने किसान ही कब माना। वो तो उनकी भाषा में खालिस्तानी और आतंकवादी हैं। मोदी सरकार के मंत्री ने तो इन्हीं किसानों को मवाली भी बता दिया था।
पीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कृषि कानूनों की वापसी के दौरान कहा था शायद हमारी तपस्या में कमी रह गई। यह वही सरकार है जिसने किसानों की एक साल की तपस्या को भी अपने नाम तो कर ही लिया जिसके बाद सरकार झुकी तो थी लेकिन अब उसे इस बात की शर्म या परवाह ही कहां कि लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में कुछ ऐसा बयान न दे जिससे आप या वो किसान आहत न हों जो अपने परिवार के सदस्य को खोकर दिल्ली की सीमाओं पर अभी भी बैठे हैं। इसलिए ही तो सरकार की ओर से संसद में मौखिक तो दूर लिखित में जवाब दे दिया गया कि किसानों की शहादत का उनके पास आंकड़े ही नहीं तो ऐसे में सरकार शहीद किसानों को मुआवजा कैसे दे?
इतना कहते ही इस पर सियासत शुरू हो गई है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज सवाल पूछने वाले विपक्ष को संसद से निलंबित किया जा रहा है। तो क्या सरकार के ऊपर विपक्ष जिस तरह से तानाशाही का आरोप लगा रही है कि सरकार बेहया है तो वही सच मान लें?
राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने किसानों के मुद्दे पर शहीद किसानों के आंकड़े न होने वाली बात पर मोदी सरकार को घेरते हुए कहा कि ये सरकार संवेदनहीन हो गई है।
मोदी सरकार ने बेरोजगारी तक के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया। किसी की मौत का भी आंकड़े कैसे निकालें जो जिंदा हैं सरकार से सवाल कर रहे हैं उनके ऊपर भी यूएपीए और तमाम गंभीर आरोप में मुकदमा दर्ज कर लिये जा रहे हैं। जिसको लेकर आए दिन सरकार की खूब फजीहत हो रही है। इतना ही नहीं अब तो पुलिस हिरासत में भी मौतों का सिलसिला जारी है इस पर भी राज्य की बीजेपी सरकार पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं।
किसान पिछले साल से दिल्ली की सीमाओं पर लगातार धरना दे रहे। इस दौरान सरकार की ओर से उन्हें प्रताड़ित करने का लगातार आरोप लगा। किसानों पर हुए अत्याचारों की रूपरेखा बताना शुरू कर दें तो इसी पर चर्चा होती रहेगी, लेकिन सोचिये कि बॉर्डर पर बैठे न जाने कितने किसानों ने तंग आकर सरकार के ऊपर गंभीर आरोप लगाकर जान दे दी। कुछ किसानों की मौतें लाठीचार्ज से हुई तो वहीं लखीमपुर, यूपी में किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ाई गई क्या वो भी किसान नहीं थे। क्या सरकार के पास इनका भी आंकड़े नहीं जबकि इनको मुआवजा भी दिया गया। अगर सरकार की ओर से ऐसे गंभीर मसलों पर इस तरह की संवेदनहीन बयान दिया जाता रहा तो जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार का सत्ता में बने रहने का औचित्य ही क्या है?
शायद सरकार जनता के सवालों से बचना चाहती और जनता के सवालों का जवाब ना देना पड़े इसलिए ये “नो डेटा” कह कर मुद्दा ही खत्म कर देना चाहती हैं। जबकि किसान अभी तक दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी तमाम मांगों को लेकर बैठे हैं। इनमें किसानों की मौत के मुआवज़े की मांग भी शामिल है।
अब जबकि सरकार की ओर से मुआवज़ा देने की बात तो दूर शहीद किसानों का आंकड़े भी ना होने की बात भी कही जा रही है। तो इस पर सोशल मीडिया पर भी लोग बहस कर रहे हैं।
किसान नेता योगेंद्र यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि सरकार के पास आने वाले समय में किसी भी चीज का डेटा नहीं होगा।
Soon this govt might not have any data at all for anything in the country!https://t.co/jLPka7YbmE
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) December 1, 2021
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि तोमर साहब, नाकामी छुपाने के लिए इतना बड़ा झूठ! सच्चाई- 2020 में 10677 किसानों ने आत्महत्या की। 4090 किसान वो जिनके खुद के खेत हैं, 639 किसान जो ठेके पर ज़मीन ले खेती करते थे, 5097 वो किसान जो दूसरों के खेतों में काम करते थे। पिछले 7 सालों में 78303 किसान आत्महत्या कर चुके”।
तोमर साहब,
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) December 1, 2021
नाकामी छुपाने के लिए इतना बड़ा झूठ!
सच्चाई-
2020 में 10677 किसानों ने आत्महत्या की।
4090 किसान वो जिनके खुद के खेत हैं,
639 किसान जो ठेके पर ज़मीन ले खेती करते थे,
5097 वो किसान जो दूसरों के खेतों में काम करते थे।
पिछले 7 सालों में 78303 किसान आत्महत्या कर चुके। pic.twitter.com/QbFxTBmMZM
वरीष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट करते हुए लिखा कि कोरोनाकाल में प्रवासी मजदूरों के मौतों का डेटा सरकार के पास नहीं, ऑक्सजन की कमी से हुई मौतों का आंकड़ा सरकार के पास नहीं है और अब सरकार के पास किसान प्रदर्शन के दौरान मौतों का आंकड़ा भी नहीं है।
NO data of migrant deaths during COVID 1.0
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) December 1, 2021
NO record of deaths due to lack of oxygen during COVID 2.0
Now, NO record of farm protest deaths. https://t.co/ouZvCnIxTk
राज्यसभा सांसद दिपेंद्र एस हुड्डा ने कहा है कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जी ने जवाब दिया कि उन्हें इस आंदोलन में किसी किसान की मृत्यु होने की जानकारी नहीं है। आप जब कहें, जहां कहें मैं स्वयं सभी 681 किसान-शहीदों का रिकार्ड देने को तैयार हूँ। जान क़ुर्बान करने वाले किसानों को यूँ भुलाने नही देंगे।
कृषि मंत्री @nstomar जी ने जवाब दिया कि उन्हें इस आंदोलन में किसी किसान की मृत्यु होने की जानकारी नहीं है।
— Deepender S Hooda (@DeependerSHooda) December 1, 2021
आप जब कहें, जहां कहें मैं स्वयं सभी 681 किसान-शहीदों का रिकार्ड देने को तैयार हूँ।
जान क़ुर्बान करने वाले किसानों को यूँ भुलाने नही देंगे। pic.twitter.com/srOKrgq0Rc
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