कविताः जब टेस्टोस्टेरोन बढ़ जाता है
मेरा मनोचिकित्सक भी आदमी है मेरे साथ मनोविज्ञान-मनोविज्ञान खेलता है मुझे मनोविज्ञान-मनोविज्ञान खेलना पसंद नहीं क्योंकि वो मुझसे झूठ बोलता कहता है- आदमियों को कोसा न करो शरीर में टेस्टोस्टेरोन बढ़ जाता है बेवकूफ़…
मेरा मनोचिकित्सक भी आदमी है मेरे साथ मनोविज्ञान-मनोविज्ञान खेलता है मुझे मनोविज्ञान-मनोविज्ञान खेलना पसंद नहीं क्योंकि वो मुझसे झूठ बोलता कहता है- आदमियों को कोसा न करो शरीर में टेस्टोस्टेरोन बढ़ जाता है बेवकूफ़…