कविताः फूले हुए पेट
-सुकृति गुप्ता मैं उन बच्चियों को देखती हूँ बारह, तेरह, चौदह, पंद्रह बरस की उनके चेहरे की मासूमियत उनका चुलबुलापन, उनकी मुस्कुराहट उनका सँजना-सँवरना लड़कों को देखकर खिलखिलाना देखती हूँ कोई और भी है…
-सुकृति गुप्ता मैं उन बच्चियों को देखती हूँ बारह, तेरह, चौदह, पंद्रह बरस की उनके चेहरे की मासूमियत उनका चुलबुलापन, उनकी मुस्कुराहट उनका सँजना-सँवरना लड़कों को देखकर खिलखिलाना देखती हूँ कोई और भी है…