कविताः बहुरूपिया
-रचना दीक्षित सोचती हूँ माँ है बहुरूपिया या गिरगिट एक ही दिन में बदलती है असंख्य रूप रंग पर सब सार्थक लस्सी शरबत चाय में चीनी बन के घुलना रोटियों पर घी बन के पिघलना…
-रचना दीक्षित सोचती हूँ माँ है बहुरूपिया या गिरगिट एक ही दिन में बदलती है असंख्य रूप रंग पर सब सार्थक लस्सी शरबत चाय में चीनी बन के घुलना रोटियों पर घी बन के पिघलना…