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इश्क

…इश्‍क़ की किताबों में (कविता)

किसी सफ़े पे थी खिलखिलाती याद उसकी किसी सफ़े पे था उसकी मुस्‍कराहटों का पहरा इश्‍क़ की किताबों में करवटें बदलती रूहों का जागना उंगलियों के पोरों की छुँअन से फिर कहना उनका हौले-हौले से…


इश्क ऐसा जैसे फूल का खिलना (कविता)

-मीनाक्षी गिरी  हमारे इश्क़ के बारे में क्या पूछते हो जनाब, हमारा इश्क़ ऐसा है जैसे फूल का खिलना। कोमल पत्तियों जैसे एहसासों का जाल, रात के गहरे अन्धकार में जुगनुओं का चमकना। जैसे चाँद…


कविताः मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ

अस्सी घाट जैसा तुम में मिलना चाहता हूँ मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ   मंडुआडीह जैसा हवाओं में उड़ना चाहता हूँ मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ  …