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प्रेमचंद के साथ मुंशी गलती से जुड़ गया, जानिए कई अजब गजब बातें: प्रेमचंद जयंती पर खास

तस्वीरः गूगल साभार
“चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ।”  -मुंशी प्रेमचंद
बनारस के पास स्थित लमही गाँव में आनंदी देवी और मुंशी अजायबराय के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, नाम रखा गया, ‘धनपत राय’। इसी पुत्र को हम और आप प्रेमचंद के नाम से जानते है।
आज मुंशी प्रेमचंद के बिना हिंदी की कल्पना भी करना मुश्किल है, लेकिन लेखन की शुरुआत प्रेमचंद ने उर्दू से की थी। उन्होंने पहला उपन्यास उर्दू में लिखा था। उन्होंने ‘सोज-ए-वतन’ नाम की कहानी संग्रह भी छापी थी जो काफी लोकप्रिय हुई। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन, जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी।
उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया।
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं के बारे में तो काफी पढ़ा और लिखा गया है। लेकिन उनके निजी जीवन के बारे में लोगों को बहुत कुछ मालूम नहीं है। उनके जीवन के अनछुए पहलू को उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने अपनी किताब ‘प्रेमचंद: घर में’ उजागर किया है।
जब एक लड़के के कान काट दिए
एक बार बचपन में वह मोहल्ले के लड़कों के साथ नाई का खेल खेल रहे थे। मुंशी प्रेमचंद नाई बने हुए थे और एक लड़के का बाल बना रहे थे। हजामत बनाते हुए उन्होंने बांस की कमानी से गलती से लड़के का कान ही काट डाला।
भड़क गया इंस्पेक्टर
उन दिनों मुंशी प्रेमचंद शिक्षा विभाग के डेप्युटी इंस्पेक्टर थे। एक दिन इंस्पेक्टर स्कूल का निरीक्षण करने आया। उन्होंने इंस्पेक्टर को स्कूल दिखा दिया। दूसरे दिन वह स्कूल नहीं गए और अपने घर पर ही अखबार पढ़ रहे थे। जब वह कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे तो सामने से इंस्पेक्टर की गाड़ी निकली। इंस्पेक्टर को उम्मीद थी कि प्रेमचंद कुर्सी से उठकर उसको सलाम करेंगे। लेकिन प्रेमचंद कुर्सी से हिले तक नहीं। यह बात इंस्पेक्टर को नागवार गुजरी। उसने अपने अर्दली को मुंशी प्रेमचंद को बुलाने भेजा। जब मुंशी प्रेमचंद गए तो इंस्पेक्टर ने शिकायत की कि तुम्हारे दरवाजे से तुम्हारा अफसर निकल जाता है तो तुम सलाम तक नहीं करते हो। यह बात दिखाती है कि तुम बहुत घमंडी हो। इस पर मुंशी प्रेमचंद ने जवाब दिया, ‘जब मैं स्कूल में रहता हूं, तब तक ही नौकर रहता हूं। बाद में मैं अभी अपने घर का बादशाह बन जाता हूं।’
उनके नाम के साथ ‘ मुंशी’ कैसे जुड़ा
प्रेमचंद के नाम के साथ मुंशी विशेषण जुड़ने का प्रामाणिक कारण यह है कि ‘हंस’ नामक पत्र प्रेमचंद एवं ‘कन्हैयालाल मुंशी’ के सह संपादन में निकलता था। जिसकी कुछ प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम न छपकर मात्र ‘मुंशी’ छपा रहता था साथ ही प्रेमचंद का नाम इस प्रकार छपा होता था- (हंस की प्रतियों पर देखा जा सकता है)।
संपादक
मुंशी, प्रेमचंद
‘हंस के संपादक प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे। परन्तु कालांतर में पाठकों ने ‘मुंशी’ तथा ‘प्रेमचंद’ को एक समझ लिया और ‘प्रेमचंद’- ‘मुंशी प्रेमचंद’ बन गए। यह स्वाभाविक भी है। सामान्य पाठक प्राय: लेखक की कृतियों को पढ़ता है, नाम की सूक्ष्मता को नहीं देखा करता। आज प्रेमचंद का मुंशी अलंकरण इतना रूढ़ हो गया है कि मात्र ‘मुंशी’ से ही प्रेमचंद का बोध हो जाता है तथा ‘मुंशी’ न कहने से प्रेमचंद का नाम अधूरा-अधूरा सा लगता है।
प्रेमचंद जी की अधिकतर कहानियों में हम निन्म व माध्यम वर्ग का चित्रण पाते है। उनके नाटक बेहद संवेदनशील थे लेकिन उनकी कहानियों और उपन्यासों ने इतनी ऊंचाई प्राप्त कर ली थी कि नाटक के क्षेत्र में उन्हें कोई ख़ास सफलता नहीं मिली। कहानियों और उपन्यासों के साथ ही उन्होंने’हंस’ , ‘माधुरी’ , ‘जागरण’ आदि पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया और साथ ही साथ विभिन्न पत्रिकाओं में सामाजिक चिंताओं को लेखों और निबंधों के माध्यम से अभिव्यक्त किया।
उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। उनकी प्रमुख कृतियां इस प्रकार है-
उपन्यास : गोदान, गबन, सेवा सदन, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, निर्मला, प्रेमा, कायाकल्प, रंगभूमि, कर्मभूमि, मनोरमा, वरदान, मंगलसूत्र (असमाप्त)
कहानी : सोज़े वतन, मानसरोवर (आठ खंड), प्रेमचंद की असंकलित कहानियाँ, प्रेमचंद की शेष रचनाएँ
नाटक : कर्बला, वरदान
बाल साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी
विचार : प्रेमचंद : विविध प्रसंग, प्रेमचंद के विचार (तीन खंडों में)
अनुवाद : आजाद-कथा (उर्दू से, रतननाथ सरशार), पिता के पत्र पुत्री के नाम (अंग्रेजी से, जवाहरलाल नेहरू)
संपादन : मर्यादा, माधुरी, हंस, जागरण
प्रेमचंद की हिंदी साहित्य में एक महान छवि है, वो एक ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तिगत के धनी थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य की काया पलट दी। वो समय के साथ बदलते गए और हिंदी साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान किया। कई कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए भी उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी , वो सिर्फ लेखक ही नही बल्कि एक महान साहित्यकार, कहानीकार , उपन्यासकार थे। साहित्य के प्रति उनका  समर्पण उनके इन शब्दों में साफ दिखाई देता है
जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे,आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले,हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

पूजा वर्मा
पूजा वर्मा परास्नातक की छात्रा हैं और लिखने का शौक रखती हैं।

2 Comments on "प्रेमचंद के साथ मुंशी गलती से जुड़ गया, जानिए कई अजब गजब बातें: प्रेमचंद जयंती पर खास"

  1. Kumar kaushal | July 31, 2019 at 2:41 PM | Reply

    Bahut khubsurat likha h pooja badhai avam shubkamnaye ?????

  2. Thank you

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