दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीन दिवसीय व्याख्यान माला का बुधवार 19 सितंबर को सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत के भाषण के साथ समापन हुआ। इस कार्यक्रम में मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण ‘भविष्य का भारत’ विषय पर आम लोगों के सवालों के जवाब दिए। कार्यक्रम के अंतिम दिन मोहन भागवत ने हिंदुत्व समेत गोरक्षा, मॉब-लिंचिंग, आरक्षण, अंतरजातीय विवाह, शिक्षा और हिन्दी भाषा पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार रखे।
पिछले चार सालों में संघ को लेकर जिस प्रकार से आम लोगों में धारण बनी हुई थी, इसके विपरीत कार्यक्रम में रवैया दिखा। समापन के दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जिस तरह से आरक्षण के प्रति, मॉब-लिंचिंग और अन्य मामलों में नम्रता दिखाई, ये कहीं न कहीं आम जनता में फैले आक्रोश का डर ही रहा होगा। वहीं धारा 370 और अनुच्छेद 35-ए पर विचार साफ़ करते हुए भागवत ने कहा कि ये दोनों नहीं रहने चाहिए। यह हमारा मत है। जम्मू-कश्मीर के तीन टुकड़े होने चाहिए या नहीं, इसपर प्रशासन विचार करे। लेकिन, समाज सुरक्षित रहे। राम मंदिर, महिला सुरक्षा, समलैंगिकता, शिक्षा जैसे कई मुद्दों पर संघ प्रमुख ने अपने विचार साझा किए।
हाल में ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शिकागो में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण की 125वीं वर्षगाँठ की स्मृति में एक बड़ा बयान दिया था। उन्होंने मंच से पूरे विश्व के हिंदुओं से अपील की है कि प्रताड़ित हिंदू एकजुट हों और आगे कहा कि ‘अगर शेर अकेला हो तो जंगली कुत्ते उस पर हमला कर उसे शिकार बना लेते हैं’।
इन दोनों कार्यक्रमों में जिस तरह से संघ नेता मोहन भागवत का विचार और समाज के प्रति झुकाव बदला है इसके कई राजनीतिक मायने हो सकते हैं साथ में ही इसे एक बड़ा तबक़ा 2019 के आम चुनाव से भी जोड़ के देखा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिस तरह से मोहन भागवत ने बीजेपी से अलग करने की कोशिश की है यह आने वाला वक़्त ही बताएगा कि संघ और बीजेपी किसी मुद्धे को लेकर किस तरह अपना रूख रखती हैं। जिस तरह मोहन भागवत ने मॉब-लिंचिंग को आड़े हाथों लिया। अब देखना है कि देश में अगर कोई ऐसी घटना होती है तो क्या संघ परिवार इसके विरोध में खड़ा होता है या नहीं।
(लेखक साहित्य मौर्या, जामिया मिल्लिया, दिल्ली के छात्र हैं)
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