पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न और बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी पंचतत्व में विलीन हो गए। बेटी नमिता ने हिंदू परंपरा से अंतिम संस्कार किया।
-पूजा कुमारी
देश का अनमोल सितारा
मौन…मौन…मौन; शब्द…शब्द…शब्द … न शब्द, न मौन, न कोई साधन इस घड़ी को समेट सकता है, लेकिन कोई शब्द न कहूं तो खुद से गद्दारी करूंगी और मौन ना रहूं तो उस विराट को महसूस न कर सकूंगी । उस व्यक्तित्व को व्यक्त करने के लिए शब्दयुक्त मौन और मौनयुक्त शब्द की ज़रूरत है।
“हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।”
-अटल बिहारी वाजपेयी
भारत रत्न, अजातशत्रु, मां भारती के सच्चे सुपुत्र अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म २५ दिसंबर १९२४ को ग्वालियर में हुआ था। वे लेखक, कवि, पत्रकार, राजनेता और सबसे बढ़कर इंसान (आज के संदर्भ में सबसे ज्यादा प्रासंगिक) थे।
वाजपेयी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं,” मैं निःशब्द हूं, शून्य में हूं लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है। उनकी कमी पूरी नहीं की जा सकती है। उनका निधन एक युग का अंत है। उनका जाना ऐसा लग रहा है मानो सिर से कोई साया उठ गया हो।”
अटल बिहारी वाजपेयी का देश के प्रति योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने देश को परमाणु शक्ति संपन्न बनाया तो कारगिल विजयी भी। भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए’ स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना’ की शुरुआत की तो नदी जोड़ परियोजना की परिकल्पना भी बनाई। वे शांति के दूत थे, तो शक्ति के स्रोत भी। उनमें एक ही समय में भगवान बुद्ध के अहिंसा (दुश्मन को भी गले लगाना) एवं भगवान कृष्ण के युद्ध नीति का अद्भुत सामंजस्य देखने को मिलता है। उनके जैसा केवल ‘अटल’ ही हो सकते हैं। उन्होंने राजनेता के लिए एक मानदंड स्थापित किया जिसपर चलना आज के नेताओं के लिए चुनौती है तो साथ ही साथ जरूरी भी। सरहदें न उनके व्यक्तित्व में थी, न कृतित्व में और न ही नेतृत्व में थीं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ का कहना था कि, ‘अगर वे पाकिस्तान में चुनाव लड़ें तो भी जीत जायेंगे’। कश्मीर पर उनका एजेंडा ‘इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत ‘ हमेशा प्रासंगिक रहेगा और यही एक मात्र समाधान भी है।
अटल का कवि हृदय
अटल बिहारी वाजपेयी ने कवि हृदय भी पाया था। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियों, राजनीतिक संघर्ष, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल- जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी। वे कहते हैं, “मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य – निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय- संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं आत्मविश्वास का जयघोष हैं।”
अटल का जाना एक अपूरणीय क्षति है लेकिन, मैं मानती हूं कि यह समय मात्र शोक का नहीं; उनको सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में स्वयं ‘अटल बिहारी वाजपेयी’ बनकर देश को अर्पित करने का है। यह कहना कि अटल जी का निधन हो गया उचित नहीं है। वह अमर हो गए हैं। अटल थे, अटल हैं और अटल रहेंगे। शुरू करते हैं उन्हीं के शब्दों से “आओ फिर से दिया जलाएं “।
जय हिन्द, जय भारत
(पूजा कुमारी दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा हैं)
Very nice…
Comprehensive statement of his personality with lesson for whole humanity.