खबर का शीर्षक थोड़ा आप को विचलित कर सकता है। लेकिन, इसका अर्थ साफ है कि आज के चुनावी रणभेद में जिसके पास अथाह पैसा है वोट उसका ही है। हालिया दिनों में ऐसे अनेकों खबर आए हैं जहां पैसे और अन्य सामानों का लोभ दे कर आम जनता का वोट खरीदने की कोशिश की जा रही है। हालांकि आजकल वोट के पहले लोगों में पैसा के अलावा अन्य चीजों को बांटना कोई नई बात नहीं है। भारतीय राजनीति का यह सबसे बड़ा कलंक है कि हर चुनाव में वोट से पहले करोड़ों रुपया वोटरों में गलत तरीके से बांटा जाता है और मतदाता को प्रभावित किया जाता है।
तमिलनाडु के वेल्लोर लोकसभा क्षेत्र से तक़रीबन 11 करोड़ नकदी बरामद होने के बाद यहां मतदान रद्द कर दिया है। इससे पहले आयकर विभाग के छापे को संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने इस संबंध में राष्ट्रपति को सिफ़ारिश भेजी थी, जिसकी मंज़ूरी मिलने के बाद बाद चुनाव आयोग से यह फैसला आया है।
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु ने विभिन्न क्षेत्रों में शानदार काम करके मिसाल कायम की है। भोजन से लेकर सामाजिक कल्याण की योजनाओं, संगीत, फ़िल्म तकनीक और उत्पादन तक में वह अग्रणी रहा है। लेकिन, मतदाताओं को रिश्वत लेकर लुभाने के मामले में नए आयाम स्थापित करने को लेकर भी इसकी छवि बेहद ख़राब है। गैरक़ानूनी 11 करोड़ नगदी मिलना किसी भी क्षेत्र और राज्य के लिए बेहद ही दुखद समाचार है।
चुनावी माहौल में किसी एक राज्य और एक क्षेत्र पर गंभीर आरोप लगाना भी उचित नहीं है। इस कड़ी में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू का भी नाम लिया जाता है। हाल में ही उनके काफिले से 1.8 करोड़ रुपये बरामद होने का कथित आरोप लगाया गया है। अप्रैल महीने के शुरुआती दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रैली से ठीक एक दिन पहले अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के काफिले से 1.8 करोड़ रुपये बरामद होना अगर सही है तो यहां भी तमिलनाडु की तरह ही वोटरों को पक्ष में करने की कोशिश हो सकती है।
बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे ऐसे कई बड़े राज्य हैं जहां पैसे के बल पर मतदताओं को खरीदना का अब आम बात है। कभी शराब के नाम पर तो कभी कपड़े के नाम पर तो कभी सोने-चांदी के नाम पर तो कभी बर्तन के नाम पर आज हर पार्टियां वोटरों को खरीने में लगी है। हाल में ही बिहार में तक़रीबन बहत्तर हज़ार से अधिक लीटर शराब सड़क पर स्थानीय प्रशासन ने बरामद किया।
अब सवाल यह है कि क्या देश का चुनाव अब पारदर्शिता और साफ-सुथरा चुनाव न रहकर पैसे का लेनदेन और बिकाऊ चुनाव रह गया है? जिस तेजी से सभी चुनावों में पैसे और अन्य सामानों से वोटरों को खरीदने का प्रयास हो रहा है इसका सीधा अर्थ यही है कि कोई भी पार्टियां अपने काम से संतुष्ट नहीं हैं इसलिए आज उन्हें पैसे के बदौलत वोट को खरीदना पड़ रहा है। लिहाज़ा सभी राजनीतिक पार्टियों को इस विषय में गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है, जिससे चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाया जा सके।
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