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अमेजन की आग- फेफड़ा जल रहा है और हम धुएं से मोहब्बत कर रहे हैं

तस्वीरः गूगल साभार

रोम जल रहा था तब नीरो बंसी बजा रहा था। किसी सदी का यह वाकया आज कहावत बनकर प्रसिद्ध है। हालांकि, जब ऐसा हो रहा था, तब मैं नहीं था। मैंने नहीं देखा-सुना कि जलते हुए रोम में नीरो ने कैसी और कितनी मधुर बंसी बजाई थी। लेकिन, आज अमेजन के जंगल जल रहे हैं और मैं हूं। मैं देख रहा हूं कि कैसे ब्राजील के दिन-रात एक जैसे लग रहे हैं और इसके समेत 8 अन्य देशों के आसमान पर भी सिर्फ धुएं के काले बादल हैं। इन सभी देशों के साथ पूरी दुनिया नीरो बनी हुई है और बंसी बजा रही है।

जंगलों में आग की बात कोई नई नहीं है। शोध बताते हैं कि आदिमानव के क्रमिक विकास में जंगल की आग ही सहायक सिद्ध हुई थी। गुफा में रहने वाले, कच्चा मांस खाने वाले आदिमानव के जंगल में जब आग लगी तो उसने भोजन को पकाकर खाना सीखा, धातुओं को गलाना सीखा और हथियार व औजार बनाकर खेती भी शुरू की। विकास के इस क्रम में सदियां बीत गईं। एक दिन मानव ने खुद से आग लगाना सीख लिया। बस एक वह दिन था कि उसके बाद से मानव हर जगह आग ही आग लगा रहा है। इसमें उसकी महत्वाकांक्षा ईंधन बन रही है। जमीन चाहिए, घर बनाने हैं, खेती करनी है, कारखाने लगाने हैं। सबका एक उपाय, जंगल जला दो। जो आग जंगल में खुद लगी थी और हमारी सहायक बनी थी, उसे अब हम खुद जंगल में लगाने और जलाने लगे।

ब्राजील की तरफ फैले अमेजन के जंगलों की आग भी ऐसे ही धधक रही है। अगस्त के शुरुआती हफ्ते से उठ रहे गुबार पर पहले-पहल तो किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन 19वें दिन बाद जब इस मामले में वैश्विक हलचल मची तो राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो की आलोचना होने लगी। उन्होंने सारा ठीकरा एक एनजीओ के मत्थे मढ़ा और कहने लगे कि यह उनकी सरकार को बदनाम करने की साजिश है। उन्होंने ही आग लगाई है। हालांकि, सवाल यह भी है कि अगर यह साजिश थी तो अब तक इस पर पानी डालने की कोशिश क्यों नहीं की गई। विश्व स्तर पर आलोचना होने के बाद उन्होंने 22 अगस्त को सेना को इस आपदा से निपटने के आदेश दिए और 23 अगस्त को बोलेविया से सुपर टैंकर 747 मंगवाया गया है।

आलोचना और आरोप-प्रत्यारोप को किनारे रख एक बारगी इस दुर्घटना के वास्तविक और मूल पहलुओं पर नजर दौड़ाना जरूरी है। अमेजन के भारी वर्षा वन क्षेत्र ब्राजील के अलावा आठ अन्य देश कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलेविया, गुयाना, फ्रेंच गुयाना और सूरीनाम तक फैले हैं। इनमें ब्राजील को प्रकृति ने उष्णकटिबंधीय जलवायु बख्शी है। यानी कि यहां गर्मी, वर्षा और शीत का समान प्रभाव होगा। इस तरह की जलवायु में जंगलों का घनापन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अब ब्राजील की अर्थव्यवस्था पर नजर डालें तो यह दुनिया की आठवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। 107 मिलियन से अधिक की श्रमशक्ति वाला यह देश कृषि और खनन में सक्रिय है। मोटा-मोटा समझें तो 6.2 प्रतिशत की बेरोजगारी वाला यह देश लकड़ी कटाई या वानिकी उन्मूलन को मुख्य व्यवसाय की तरह अपनाता है। ऐसे में सीधे-सीधे समझ लीजिए कि अमेजन का जंगल इस देश को मिला प्राकृतिक खजाना है, जिसे वह हर दिन, मिनट और सेकंड के हिसाब से खोद रहा है। एक रिपोर्ट की मुताबिक जिस घने वन प्रदेश में धूप की एक किरण का पहुंचना नामुमकिन था, उसे इस तेजी से काटा जा रहा है कि हर दिन फुटबॉल के तीन मैदान तैयार हो जाएं। जंगलों में लगने वाली प्राकृतिक आग गर्मी के दिनों में घर्षण से लगती है। हरे पेड़ों के कारण नम जमीन और वातावरण में भी नमी होने के कारण वह बड़े भू-भाग में नहीं फैल पाती है। आंकड़ों पर नजर डालें तो इस साल जुलाई तक अमेजन में 73000 बार आग लगने की घटनाएं दर्ज हुई हैं। 2018 के आंकड़ों के हिसाब से यह 83 प्रतिशत की अधिक वृद्धि है। धरती का फेफड़ा कहा जाना वाला यह वन समूह 20 प्रतिशत ऑक्सीजन उत्पादन करता है। लगातार तीन हफ्ते से चल रही इस दहन प्रक्रिया ने जरूर ही इसमें कुछ कमी की ही होगी। निश्चित ही यह वैश्विक जांच का विषय है। विश्व के 60 प्रतिशत वर्षावन अकेले इस समूह में हैं। ब्राजील के जनजातीय समूह कायापो के प्रमुख राउनी मटुकतिरे ने भी राष्ट्रपति पर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि देश 2014 से भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है और दूसरी ओर उन्होंने कभी भी कटाई और खनन पर रोक लगाई ही नहीं है। वे लगातार इसे बढ़ावा दे रहे हैं। हालांकि, राष्ट्रपति अभी भी तमाम आरोप को खारिज ही कर रहे हैं।

अमेजन के जंगलों का मुद्दा मौजूं है तो हम बात कर रहे हैं। दूसरे के घर में झांकने से बेहतर है, हम खुद पर भी एक नजर डाल लें। वनों की कटाई और वन प्रदूषण के मामले में भारत कोई कम पीछे नहीं है। उत्तराखंड की त्रासदी भूली नहीं जा सकती है और हम अभी भी पहाड़ों को तोड़े जाने से बाज नहीं आ रहे हैं। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का कुल 21.34 प्रतिशत भाग वन क्षेत्र है, जिसमें लगातार तेजी से कमी आती जा रही है। एक पारिस्थितिकी वैज्ञानिक ने कहा था कि आग जितनी अच्छी सेवक है, उतनी ही बुरी मालिक साबित होती है। वनों की लगातार कटाई भी वनों की आग को बुलावा देती है। जरूरी है कि प्रकृति से जरूरत भर का ही लें, छेड़छाड़ की तरफ न बढ़ें। अब से भी संभल जाएं तो बेहतर है। हमारे वही हाल हैं कि फेफड़ा जल रहा है और हम धुएं से मोहब्बत कर रहे हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

विकास पोरवाल
पत्रकार और लेखक

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